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बुधवार, 30 नवंबर 2016

हम भूल गये

                
                हम भूल गये  
                         
हो गए आधुनिक हम इतने,संस्कृती पुरानी भूल गए 
मिनरल वाटर के चक्कर में,गंगा का पानी  भूल  गए 
पिज़ा बर्गर पर दिल आया ,ठुकराया पुवे ,पकोड़ी को,
यूं पोपकोर्न से प्यार हुआ ,कि हम  गुड़धानी  भूल गए 
एकल बच्चे के  फैशन में, हम भूल गए  रक्षाबन्धन ,
वो भाई बहन का मधुर प्यार ,और छेड़ाखानी भूल गए 
वो रिश्ते चाचा ,भुआ के, हर एक को आज नसीब नहीं,
परिवारनियोजन के मारे , मौसी  और मामी भूल गए 
मोबाइल में उलझे  रहते,मिलते है तो बस 'हाय 'हेल्लो',
रिश्ते  नाते ,भाईचारा ,वो प्रीत  निभानी  भूल गए 
हुंटा ,अद्धा, ढईया ,पोना ,ये सभी पहाड़े ,पहाड़ हुए,
केल्क्युलेटर के चक्कर में ,वो गणित पुरानी भूल गए 
जीवन की क्रिया बदल गयी,बदलाव हुआ दिनचर्या में,
रातों जगते,दिन में सोते वो सुबह सुहानी भूल गए 
कोड़ी कोड़ी जोड़ी माया ,ना कभी किसी के साथ गयी ,
बस चार दिनों की होती है, जीवन की कहानी भूल गए 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   

शुक्रवार, 18 नवंबर 2016

मेरी कवितायें

 
मेरी कवितायें,
जलेबी की तरह ,
टेडी,मेड़ी ,अतुकांत है 
पर चख कर देखो,
इनमे कुछ बात है 
ये चासनी से भरी हुई है 
इनमे मिठास है
 
ये गोल गोल छंद नहीं,
रस में डूबे हुए ,गुलाबजामुन है 
जो एक नया स्वाद भर देंगे जीवन में  

जब भी जीवन में ,शीत  का मौसम सताये 
इन्हें गरम गरम पकोड़ियों की तरह ;
प्यार की चटनी के साथ खा लेना ,
बड़ी स्वादिष्ट लगेगी,मेरी कवितायें 

ये तो मन की विभिन्न भावनाओं की ,
मिली जुली भेलपुरी है 
बड़ी चटपटी और स्वाद से भरी है 

या इन्हें आलूबड़ा समझ कर ,
रोज रोज की ऑफिस और घर की 
भागदौड़ के पाव के बीच में खा लेना 
अपनी क्षुधा मिटा लेना 

ये तवे पर सिकती हुई ,आलूटिक्कीयाँ है ,
जिनकी सौंधी सौंधी खुशबू तुम्हे लुभाएगी 
ये गरम गरम और चटपटी ,
तुम्हे बहुत भायेगी 

ये गोलगप्पे की तरह ,फूली फूली लगती है 
पर बड़ी हलकी है 
इनमे थोड़ी सी खुशियां,
और थोड़ी सी परेशानियों का खट्टा मीठा पानी ,
भर कर के खाओगे 
बड़ी तृप्ति पाओगे 

ये कोकोकोला की तरह झागीली नहीं है ,
कि ढक्कन  खोल कर बोतल से पियो,
ये तो प्याऊ का पानी है ,
अपने हाथों की ओक से ,
अंजलि भर भर पीना 
मिटा देगी  तुम्हारी तृषणाये 
मेरी कवितायें   

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हर दुःख का उपचार समय है


हृदयविदारक समाचार है जब से आया 
मुश्किल से भी ,कुछ ना खाया 
चाय हो या दूध,चपाती 
नीचे गले उतर ना पाती 
पिछले कुछ दिन ऐसे बीते 
यूं ही आंसू पीते पीते 
झल्ली गम की ,
बीच गले में एक बन गयी 
भूख थम गयी 
एसा सदमा
 हृदय में जमा 
हिचकी भर भर रोते जाते 
दुःख के आंसू सूख न पाते 
साथ समय के धीरे धीरे 
कम हो जाती मन की पीरें 
चलता गतिक्रम वही  पुराना 
खाना ,पीना,.हंसना ,गाना 
फिर से वही पुरानी लय है 
हर दुःख का उपचार समय है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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