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गुरुवार, 11 अगस्त 2016

ज्ञान की बात

ज्ञान की बात

अगर आटा आज जो गीला सना
दुखी हो क्यों कर रहे मन अनमना
आड़ी तिरछी आज बनती रोटियां,
गोल  रोटी भी  कल  लोगे  बना

मुश्किलें तो आएगी और जायेगी
जिंदगी की जंग चलती   जायेगी
खुश न हो,बीबी अगर मइके गयी,
चार दिन में लौट कर फिर आएगी

कभी दुःख है तो कभी फिर हर्ष है
यूं ही  जीवन में सदा    संघर्ष   है
एक तारीख को भरा ,इतरा रहा,
तीस तक हो जाता खाली पर्स है

सेक लो रोटी,तवा जब गर्म है
अवसरों का लाभ,अच्छा कर्म है
मज़ा देते सिर्फ पापड़ कुरकुरे,
देर हो जाती तो पड़ते  नर्म   है

घोटू

पति पत्नी-संगत का असर

पति पत्नी-संगत का असर

एक दूजे का एक दूजे पर  ,ऐसा मुलम्मा चढ़ता है
हो जाती सोच एक जैसी और प्यार चौगुना बढ़ता हो 
एक दूजे की बातें और इशारे वो ही  समझते है
बूढ़े होने तक  पति पत्नी ,भाई बहन से लगते है
अलग अलग दो कल्चर के,प्राणी मिल रहते बरसों संग
नो निश्चित एक दूसरे पर,चढ़ जाता एक दूजे का रंग
उनके चेहरे के हाव भाव ,उनकी बोली और चाल ढाल
एक जैसी ही हो जाती है ,जैसे एक सुर और एक ताल
वो एकाकार हुआ करते, इस तरह आदतें मिल जाती
उनको ही मालूम होता है ,किसको है क्या चीजें भाती 
यूं तो कहते ,ऊपरवाला ,खुद जोड़ी बना भेजता है
पर ये जोड़ी ,जब जुड़ जाती,आ जाती बहुत एकता है
एक दूसरे की छवि मन में ,ऐसी बसती ,कहीं कहीं
धीरे धीरे होने  लगता ,चेहरा, मोहरा, आकार वही
इतने सालों का मेलजोल,इतना तो असर दिखाता है
बूढ़े बुढ़िया का प्यार हमेशा ,कई गुना बढ़ जाता है
बच्चे अपने में मस्त रहे, ये आश्रित एक दूसरे पर
इसलिए बुढापे में तू तू ,मैं मैं भी कम होती अक्सर
आदत पड़ती संग रहने की,मन ना लगता एक दूजे बिन
 करते है याद ,जवानी की ,बातें,किस्से और बीते दिन
साथ साथ दुःख और पीड़ा में ,साथ साथ ही थकते है
बूढ़े होने तक  पति पत्नी ,भाई बहन से   लगते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सोमवार, 8 अगस्त 2016

पत्र पुष्प में खुश हो जाते

हरीभरी दूर्वा चुनचुन कर ,लाया हूँ मैं ख़ास
                         प्रभूजी ,तुम्हे चढाऊँ घास 
हे गणेश,गणपति गजानन
हराभरा कर दो मम जीवन
अगर आपका वरदहस्त हो,
खुशियों से महके घर,आंगन
भोग चढायेगा मोदक का,ये तुम्हारा दास
                      प्रभूजी ,तुम्हे चढाऊँ घास    
हे भोले बाबा शिव शंकर
मै बिलपत्र चढ़ाऊँ तुम पर 
आक,धतूरा ,भाँग चढ़ाऊँ ,
प्रभूजी कृपा करो तुम मुझपर
मनोकामना पूरी होगी ,मन में है विश्वास
                       प्रभूजी ,तुम्हे चढाऊँ घास 
शालिग्राम ,विष्णू,नारायण
तुलसी पत्र करूं  मै अर्पण
पत्र पुष्प से खुश हो कर के ,
इतनी कृपा करो बस भगवन
मेरे घर में ,लक्ष्मी मैया का हो हरदम वास
                          प्रभूजी,तुम्हे चढ़ाऊँ घास
देव ,तुम्हे प्यारी हरियाली
तुम दाता हो,दो खुशहाली
हरे हरे नोटों से भगवन ,
भर दो,मेरी झोली खाली
मेरी सारी परेशानियां ,झट हो जाए खलास
                      प्रभूजी,तुम्हे चढाऊँ घास

घोटू
            

अहंकार से बचो

        अहंकार से बचो

अहंकार से बचो ,महान मत समझो खुद को,
वरना गलतफहमियां तुमको ले डूबेगी
सारी दुनिया मुर्ख,तुम्ही बस बुद्धिमान हो,
ऐसी सोच तुम्हे बस दो दिन ही सुख देगी
'अहम् ब्रह्म 'का ही यदि राग अलापोगे तुम,
धीरे धीरे सब अपनों से कट जाओगे
कभी आत्मगर्वित होकर इतना मत फूलो,
अधिक हवा के गुब्बारे से फट जाओगे
मेलजोल सबसे रखना ,हिलमिल कर रहना ,
इससे ही जीवन जीने में आसानी है
एक दूसरे के सुख दुःख में साथ निभाना ,
अच्छा है,क्योंकि हम सामाजिक प्राणी है
तुम रईस हो,बहुत कमाए तुमने पैसे ,
पास तुम्हारे दौलत है ,हीरा मोती है
इसका मतलब नहीं ,करो बेइज्जत सबको,
हर गरीब की भी  अपनी इज्जत होती है
तुम्हारा धन कुछ भी काम नहीं आएगा ,
वक़्त जरूरत में कोई आ, ना पूछेगा
अगर किसी का साथ न दोगे ,यूं ही अकड़ में,
मुश्किल पड़ने पर कोई भी साथ न देगा
इसीलिये सबसे हिलमिल कर रहना अच्छा ,
यही सफलता की सच्ची कुंजी होती है
सबके सुख दुःख में तुम अपना हाथ बटाओ ,
मिलनसारिता बहुत बड़ी पूँजी होती है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

ना तुम हारे ,ना मैं जीता

ना तुम हारे ,ना मैं जीता

तुमने अगर कहा कुछ होता, मै कुछ कहता ,
तुमने कुछ भी नहीं कहा ,तो मैं भी चुप हूँ
ना तुम हारे ,ना मै जीता ,बात बराबर ,
शायद इससे ,तुम भी खुश और मैं भी खुश हूँ
इसमें ना तो कोई कमी दिखती तुम्हारी ,
ना ही जाहिर होती कुछ मेरी लाचारी
यूं ही शांति से बैठे हम तुम ,सुख से जीएं ,
क्यों आपस में हमको करनी ,मारामारी
तुम मुझको गाली देते ,मैं  तुमको देता ,
हम दोनों की ही जुबान बस गन्दी होती
बात अगर बढ़ती तो झगड़ा हो सकता था,
कोर्ट कचहरी में जा नाकाबन्दी  होती
कुछ तुम्हारे दोस्त  साथ तुम्हारा देते  ,
मेरे मिलने वाले  ,मेरा साथ निभाते
रार और तकरार तुम्हारी मेरी होती,
लेकिन दुनियावाले इसका मज़ा उठाते
हो सकता है कि कुछ गलती मेरी भी हो,
हो सकता है कि कुछ गलती हो तुम्हारी
तुम जो तमक दिखाते  बात बिगड़ सकती थी ,
मैं भी अगर बिगड़ता ,होती मारामारी
इसीलिये ये अच्छा होता है कि जब जब ,
गुस्से की अग्नि भड़के तो उसे दबाओ
सहनशीलता का शीतलजल उस पर छिड़को,
एक छोटी सी चिगारी को मत भड़काओ
क्रोध छोड़ ,शान्ति रखना सबके हित में है,
तुम भी सदा रहोगे खुश और मैं भी खुश हूँ
तुमने खुद पर किया नियंत्रण ,कुछ ना बोले ,
तुमने कुछ भी नहीं कहा तो मैं भी चुप हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

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