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गुरुवार, 26 नवंबर 2015

सब कुछ -बीबी के भाग्य से

        सब कुछ -बीबी के भाग्य से
 
सास कहती है बेटी मेरी भाग्यशाली है
तुम्हारे घर की इसने शक्ल बदल डाली है
लक्ष्मी सी है ये ,पैरों में इसके बरकत  है
पड़े है जबसे पाँव ,जाग गई  किस्मत है
माँ भी कहती है हुआ जबसे इसका पगफेरा
लाखों में खेलने लग गया है बेटा मेरा
चलाने वंश दिए ,पोते ,दो दो हीरों से
आजकल ठाठ से जीते है हम अमीरों से
हमारे पास आज ,इतना धन और दौलत है
बहू का भाग्य है ,सब उसकी ही बदौलत है
और भी रिश्तेदार ,जितने घर पर आते है
बहू के भाग्य के ही ,सबके सब गुण गाते है
रोज जब सुनता हूँ मैं लोगों की ऐसी बातें
पेट में फड़फड़ाने लगती है मेरी   आंतें
पढाई मैंने की,दिनरात जग कर मेहनत की
मिली है तब कहीं डिग्री ये काबलियत की
सुबह से शाम तक ,खटता हूँ रोज दफ्तर में
तब कहीं आती है ,इतनी कमाई इस घर में
बॉस की डाट सुने ,टेंशन हम झेलें  है
मुफ्त में यूं ही सारा यश मगर ये ले ले है
बिचारे मर्द  की दुर्गत हमेशा होती है
चैन से घर में बीबी,मौज करती ,सोती है 
मैं  जो मेहनत न करू, ख़ाक भाग्य चमकेगा
उसकी तक़दीर से ,पैसा न यूं ही बरसेगा
लोग पतियों के बलिदान को भुलाते है
भाग्य की सारी  वजह ,बीबी को बताते है
मैं भी ये मानता हूँ,बीबी भाग्यशाली है
तभी बन पायी ,मुझ कमाऊ की घरवाली है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

नई जनरेशन के भाव

    नई  जनरेशन के भाव

ना तो देती भाव किसी को ,
उस पर भाव सभी से खाती ,
बड़ी भावना शून्य हो गयी
        अरे आज की ये जनरेशन
ब्रांडेड शोरूमों में जा कर ,
सीधे से परचेसिंग  करती ,
मोल भाव करना ना जाने ,
        सिर्फ देखती ताज़ा फैशन
सबको आदर भाव  दिखाना 
प्रेम  और सदभाव  दिखाना
भूल  गई सब संस्कार को,
         ऐसा अजब स्वभाव हो गया
उल्टा सीधा रहन सहन है
उल्टा सीधा खाना पीना ,
वेस्टर्न कल्चर  का उन पर,
         इतना अधिक प्रभाव  हो गया
 इतनी ज्यादा आत्मकेंद्रित ,
और गर्वित रहती है खुद पर ,
मातपिता और भाई बहन के ,
         भुला दिए है रिश्ते  सारे
 ये सब माया की माया है
जिसने उनमे अहम भर दिया ,
ढलने जब ये उमर  लगेगी,
           दूर बहम तब होगें सारे    

  मदन मोहन बाहेती 'घोटू'           



 

बोनसाई

      बोनसाई

अपनी जड़ें कटवाने के बाद,
पनपे हुए पौधे ,
बोनसाई हो जाते है
उनकी मानसिकता भी बौनी हो जाती है
उनके पत्ते ,फूल या फल ,
सजावट के लिए सुंदर दिखते है ,
पर उनकी उपयोगिता ,शून्य हो जाती है
इसलिए ,जड़ों से जुड़े रहो ,
जड़ें मत कटवाओ
वरना संगेमरमर की टेबल मे ,
जड़े हुए रत्नो की तरह ,
तुम भी जड़ हो जाओगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

माँ की पीड़ा

          माँ की पीड़ा

बेटा,तेरी ऊँगली पकड़े ,तुझे सिखाती थी जब चलना,
मैंने ये न कभी सोचा था , ऊँगली मुझे दिखायेगा तू 
माँ माँ कह कर,मुझको पल भर ,नहीं छोड़ने वाला था जो,
ख्याल स्वपन में भी ना आया ,इतना मुझे सताएगा तू
तुझको अक्षर ज्ञान कराया ,हाथ पकड़ कर ये सिखलाया ,
कैसे ऊँगली और अंगूठे ,से पेंसिल पकड़ी  जाती है
कैसे तोड़ी जाती रोटी ,ऊँगली और अंगूठे से ही ,
कैसे कोई चीज उठा कर , मुंह तक पहुंचाई जाती है
जब भी शंशोपज में होती ,मैं दो ऊँगली तेरे आगे ,
रखती ,कहती एक पकड़ ले,मेरा निर्णय वो ही होता
तुझे सुलाती,गा कर लोरी,इस डर से मैं चली न जाऊं ,
तू अपने नन्हे हाथों से ,मेरी उंगली   पकड़े  सोता
ऊँगली पकड़ ,तुझे स्कूल की बस तक रोज छोड़ने जाती,
बेग लादती,निज कन्धों पर,तुझ पर बोझ पड़े कुछ थोड़ा
मेला,सड़क,भीड़ सड़कों पर ,तेरी ऊँगली पकड़े रहती ,
इधर उधर तू भटक न जाए,तू मुझको देता था  दौड़ा   
मैं ये  जो इतना करती  थी ,मेरी ममता और स्नेह था,
और कर्तव्य समझ कर इसको,सच्चे दिल से सदा निभाया
जब वृद्धावस्था आएगी,  तब तू मुझे सहारा देगा  ,
हो सकता है  भूले भटके ,ऐसा ख्याल जहन  में आया
बड़े चाव से हाथ तुम्हारा ,थमा दिया था  बहू हाथ में ,
मैं थोड़ी निश्चिन्त हुई थी, अपना ये कर्तव्य निभा कर
मेरी ऊँगली  छोड़ नाचने ,लगा इशारों पर तू उसके ,
मुझको लगा भूलने जब तू,पीड हुई,ठनका मेरा सर
लेकिन मैंने टाल दिया था  ,क्षणिक मतिभ्रम ,इसे समझ कर,
सोचा जोश जवानी का है ,धीरे धीरे समझ आएगी
फिर से कदर करेगा माँ की,तू अपना कर्तव्य समझ कर,
मेरी शिक्षा ,संस्कार की,मेहनत व्यर्थ नहीं जायेगी
लेकिन तूने मर्यादा की ,लांध दिया सब सीमाओं को ,
ऐसे मुझे तिरस्कृत करके ,शायद चैन न पायेगा तू
बेटा तेरी ऊँगली पकड़े,तुझे सिखाती थी जब चलना ,
मैंने ये न कभी सोचा था ,ऊँगली मुझे दिखायेगा  तू

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 


सोमवार, 23 नवंबर 2015

रास्ते में इम्तहान होता जरूर है...

क्या हुआ जो
कुछ मिला तो
कुछ नहीं मिला,
क्या हुआ जो
कुछ खो गया तो
कुछ छिन गया...
देखो तो जरा गौर से
रह गया होगा बहुत कुछ
अब भी तुम्हारे पास,
देखो आ गया होगा 
कुछ कीमती-कुछ खास
चुपके से तुम्हारे पास...
और अगर नहीं 
तो रुको जरा 
थोड़ा सब्र करो,
क्योंकि -
देर या सबेर 
वो देता जरूर है,
उजाला कभी ना कभी
होता जरूर है,
याद रहे मकसद 
छोटा हो या बड़ा हो,
पर रास्ते में इम्तहान
होता जरूर है...

- विशाल चर्चित

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