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मंगलवार, 4 नवंबर 2014

धरम-करम

          धरम-करम

धर्म के नाम पर केवल,हजारों खर्च कर देंगे
मगर भूखे गरीबों को,चवन्नी तक नहीं देंगे
मोक्ष की कामना या लालसा ले स्वर्ग की मन में,
तीर्थ और देव दर्शन में ,बिता सारी उमर देंगे
पुजारी पंडितों ने बुन रखे है जाल कुछ ऐसे ,
बनाये उस शिकंजे में ,फंसा हम अपना सर देंगे
पेट भूखे का भर दो गर ,मदद निर्धन की करदो गर
तहे दिल से दुआएं वो ,तुम्हे सारी  उमर  देंगे
मगर पाखंडियों के फेर  में जो रहोगे  उलझे ,
पता ना कल को क्या होगा ,बुरा वो आज कर देंगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शोर या रौनक

             शोर या रौनक

डालों पर पंछी बैठे हो ,और नहीं हो कुछ कलरव
सन्नाटा छाया हो तरु पर ,नहीं कभी भी यह संभव
चार औरतें यदि मिल बैठे ,और छाई हो चुप्पी सी
वैसे ये तो नामुमकिन है ,क्या हो सकता  ऐसा भी
मंदिर में घंटा ध्वनी ना हो,और नहीं संकीर्तन हो
मन भक्तों का नहीं लगेगा ,न ही रुचेगा  भगवन को
बच्चे वाले घर में ना हो,शोर शराबा ,चहल पहल
ऐसे घर में मुश्किल होता ,हमें बिताना ,पल,दो पल
बीबी की हरदम की बक बक ,हमको बड़ा सुहाती है
इसी बहाने घर में  थोड़ी ,   रौनक तो हो जाती  है
बच्चे और बीबी  की बातें ,रौनक है,मत शोर कहो
है जीवन का ये सच्चा सुख ,सुन आनंद विभोर रहो

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

नव कविता

          नव कविता

मैंने  उनकी  सुंदरता  पर
चार पंक्तियाँ लिख दी केवल
उनने मुझे दे दिया उत्तर
एक प्यारा सा चुम्बन देकर
मेरी कलम सख्त,मसि काली
उनके होंठ नरम और लाली
मैंने शब्दों में उलझाया
उनने  जुल्फों में उलझाया
मेरी भाषा अलंकार की
उनकी भाषा शुद्ध प्यार की
मेरे शब्द पड़  गए बौने
जब उनके नाजुक होठों ने
मन का सारा प्यार घोल कर
मेरे कागज़ से कपोल पर
अपनी सुन्दर,प्यारी लिपी में
बड़े प्यार से, धीमे ,धीमे
ऐसा सुन्दर कुछ लिख डाला
जिसने किया  मुझे मतवाला
सिर्फ लेखनी की छुवन ने
उनकी मदमाती चितवन ने
ऐसी कविता मुझे सुना  दी
मेरे तन में आग लगा दी
दीवाना होकर पागल मैं
कलम छोड़ कर प्रत्युत्तर में
उनकी अपनी ही शैली में
प्यारी,मनहर,अलबेली में
उनकी ही भाषा में सुन्दर
उनके तन पर ,उनके मन पर
जगह जहाँ भी पायी खाली
मैंने नव कविता लिख डाली

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 2 नवंबर 2014

रंग-ए-जिंदगानी: शेर के आगे पर मेमने का हाल

रंग-ए-जिंदगानी: शेर के आगे पर मेमने का हाल: नलकु की टुटी-फुटी छत। रातों की मुसलाधार बरसात। आँधियों का चहुँ और शोर था बहार की तरह अंदर भी अंधेरा घनघोर था। बिजली की दहाड़ के...

सर्दी का आगाज

           सर्दी का आगाज

कल नारियल के तैल की शीशी में ,हिमकण से दिखलाये
कल दादी ने रात को ओढ़ने को ,कम्बल थे निकलाये
कल.अल्पवस्त्रा ललनाएँ ,वस्त्र से आवृत  नज़र आयी
कल सवेरे सवेरे ,कुनकुनी  सी धूप थी मन को भाई 
कल ठन्डे पानी से नहाने पर ,सिहरन सी आने लगी थी
कल से  पूरे बदन में कुछ खुश्की  सी  छाने लगी थी
कल पंछी अपने अपने  नीड़ों में कुछ जल्दी जा रहे थे
कल बिजली के पंखे के तीनो  ही पंख नज़र आ रहे थे
कल रात थोड़ी लम्बी और दिन लगा  ठिगना  था
कल हमारे बदन से भी हुआ गायब  सब पसीना  था
कल सुबह कुछ कोहरा था , बदन  ठिठुराने लगा है 
ऐसा लगता है कि अब सर्दी का मौसम आने लगा है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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