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मंगलवार, 12 अगस्त 2014

धन्यवाद

                धन्यवाद

आज अपने बुजुर्गों का ,किया है सन्मान तुमने ,
               ये तुम्हारे विचारों की,सोच की, उत्कृष्टता है
लोग करते है तिरस्कृत ,जिन्हे बीता हुआ कल, कह,
             कर रहे उनको नमन तुम,ये तुम्हारी शिष्टता है
अनुभवों का मान करके,उम्र का सन्मान करके,
              सभी अपने वरिष्ठों को ,दिया है आल्हाद तुमने    
हमेशा सब खुश रहें ,फूलें ,फलें ,हो सुखी जीवन ,
             पा लिया अपने बड़ों का ,आज आशीर्वाद तुमने
 जिस तरह ऑरेन्ज में फांकें कई,पर सब बंधी है ,
              वैसे ही बंध  प्रेम डोरी से रहें,परिवार बन हम
हमारे इस परिसर में ,सदा फैले भाईचारा,
             एकता और संगठन हो ,रहें मिलजुल,प्यार बन हम

घोटू

रविवार, 10 अगस्त 2014

इसीलिये मां लाती है हमारे लिये बहन....


मां हमसे बच्चों की तरह
लड़ - झगड़ नहीं सकती न,
गुस्सा होने पर हमारे
बाल नहीं नोच सकती न,
मस्तियां और शरारतें भी
नहीं कर सकती न,
उल्टे - पुल्टे सपने और
ऊल जुलूल बातें भी
नहीं कर सकती न,
इसीलिये लाती है
हमारे लिये बहन,
जो होती तो है 
स्नेह और ममता में
मां का ही प्रतिरूप,
पर उसका बचपना
उसकी शरारते - उसकी मस्तियां
उसका लड़ना - झगडना
उसका रूठना - उसका गुस्सा
उसकी बेसिर - पैर की बातें
बनाती हैं उसे खास,
और यही चीज देती है
भाई - बहन के रिश्ते को
एक खास एहसास,
और इस एहसास को ही
तरोताजा करने के लिये
आता है रक्षाबंधन,
जो लाता है ये संदेश कि -
रिश्ते बदलें - मौसम बदले
या बदले संसार
पर एक चीज कभी ना बदले
भाई - बहन का प्यार....

रक्षाबंधन की स्नेहिल बधाई सहित...

कितना सुख होता बंधन में

      कितना सुख होता बंधन में

 लौट नीड़ में पंछी आते ,दिन भर उड़, उन्मुक्त गगन में
                                     कितना  सुख होता बंधन में
दो तट बीच ,बंधी जब रहती ,नदिया बहती है कल कल कर
तोड़ किनारा ,जब बहती है , बन  जाती है , बाढ़   भयंकर
मर्यादा के  तटबन्धन में,  बंधा उदधि ,सीमा में रहता
भले उछल ,ऊंची लहरों में , तट की ओर भागता रहता 
रोज उगा करता पूरब में ,और पश्चिम मे ,ढल जाता है
रहता बंधा,प्रकृति नियम में,सूरज की भी मर्यादा   है
अपने अपने ,नियम बने है,हर क्रीड़ा के,क्रीडांगन  में
                                       कितना सुख होता बंधन में  
इस दुनिया में,भाई बहन का ,रिश्ता होता, कितना पावन
बहना, भाई  की  कलाई पर  ,बाँधा करती , रक्षा बंधन
कुछ बंधन ,ऐसे होते है ,सुख मिलता है ,जिनमे बंध कर
पिया प्रेम बंधन में बंधना ,सब को ही ,लगता है सुखकर
नर नारी ,गठबंधन में बंध ,जब पति पत्नी,बन जाते है
ये वो बंधन है जिसमे बंध  ,सारे  बंधन  हट  जाते  है
घिस घिस ,प्रभु मस्तक पर चढ़ती,बंधी हुई ,खुशबू चन्दन में
                                              कितना सुख होता बंधन में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

गुरुवार, 7 अगस्त 2014

ये राजनीति है

 
            ये राजनीति है

थे दुश्मन दांतकाटे ,कोसते थे ,एक दूजे को,
वो लालू और नितीश भी बन गए है दोस्त अब फिर से,
स्वार्थ में ना किसी को, किसी से परहेज होता है ,
               गधों को और घोड़ों को,मिलाती राजनीति है
चुने जाते है करने देश की सेवा ,मगर नेता ,
 है करने लगते , सबसे पहले अपने आप की सेवा
लूट कर देश को ,अपनी तिजोरी भरते दौलत से,
                बहुत ही भ्रष्ट इंसां को ,बनाती  राजनीति है
नशा ये एक ऐसा है ,जो जब एक बार लगता है,
छुटाओ लाख पर ये छूटना ,मुश्किल बहुत होता ,
गलत और सही में अंतर,नज़र आता नहीं उनको,
               नशे में सत्ता के अँधा ,बनाती   राजनीति है
यहाँ पर रहके भी चुप ,दस बरस ,सदरे रियासत बन,
 चला सकता है कोई  देश को  ,बन कर के कठपुतली ,
  यहाँ चमचे चमकते है ,चाटुकारों की चांदी है,
                बड़े ही अच्छे अच्छों को,नचाती राजनीति है
पड़ गयी सत्ता की आदत,तो कुर्सी छूटती कब है,
रिटायर हो गए तो गवर्नर बन कर के  बैठे है,
किसी की पूछ जब घटती ,बने रहने को चर्चा में,
                  किताबें लिख के,राज़ों को,खुलाती राजनीति है  
कई उद्योगपति भी ,घुस रहे ,इस नए धंधे में ,
क्योंकि इससे न केवल ,नाम ही होता नहीं रोशन,
नए कांट्रॅक्ट मिलते,लीज पर मिलती खदाने है ,
                 कमाई के नए साधन ,दिलाती राजनीति है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पत्थर दिल

       पत्थर दिल

कहा उनने  हमें एक दिन ,आपका दिल तो है पत्थर
कहा हमने ,ये तारीफ़ या कोई इल्जाम है हम पर
कोई पत्थर है नग  होता ,अंगूठी में जड़ा  जाता
चमकता कोई हीरे सा ,सभी के मन को है भाता
कोई पत्थर ,पुजाता है ,देवता बन  के मंदिर  में
कोई पत्थर है संगमरमर ,लगाया जाता घर घर में
कोई पत्थर है रोड़ी का,बने  कंक्रीट जो ढल कर
कोई  पत्थर ,जो फेंको तो,फोड़ देता ,किसी का सर
कोई को वृक्ष पर फेंको ,तो मीठे फल है खिलवाता 
ज़रा सी किरकिरी बन कोई , आँखों में  चुभा जाता
कोई  रस्ते में टकराता  ,लगाता  पाँव में  ठोकर
कोई मंजिल बताता है ,जब बनता मील का पत्थर
मैं पत्त्थर दिल,मगर ये तो बताओ कोन सा पत्थर
कहा उनने  'तुम हीरे हो' ,मुझे बाहों में अपनी भर

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

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