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शनिवार, 12 जुलाई 2014

आपकी जरुरत नहीं है

        आपकी जरुरत नहीं है

सजा कर पकवान हम पर,प्रेम से दावत उड़ाई,
भर गया जब पेट तो फिर ,उठाया और फेंक डाला
समझ कर ,हमको  रखा है ,उनने दोने पत्तलों सा ,
जब नहीं जरुरत रही  तो ,उठाया,घर से निकाला
जब तलक,मधुकोश में था ,भरा संचित ,प्रेम का रस,
तब तलक, अनुराग जतला ,रहे  पीते ,प्रेम अमृत
प्यास अपनी  जब बुझाली ,और हुआ जब कोष खाली,
खो गयी उपयोगिता तो,कर दिया हमको तिरस्कृत
 चाह थी  जब तक अधूरी,रहे करते  जी हजूरी ,
और मतलब निकलने पर ,लोग बस कहते यही है
                                      आपकी जरुरत नहीं है
हवन की लकड़ी समझ कर ,कुण्ड में हमको जलाया
मन्त्र  पढ़ , आहुतियां दी ,पुण्य सब  तुमने  कमाया
यज्ञ जब पूरा हुआ तो ,रह  गए  हम राख बनके ,
और बस ये किया तुमने , हमें  गंगा  में   बहाया
यदि अगन के सात फेरे,लगा लेते  साथ  मेरे,
जिंदगी जगमगा जाती ,दूर होते सब अँधेरे
पर किसी से बाँधना  बंधन, नहीं आदत  तुम्हारी ,
एक जगह रुकते नहीं हो,बदलते रहते बसेरे
लाख बोला ,साथ मेरे ,बसा लो तुम नीड अपना ,
किन्तु तुम उन्मुक्त पंछी,कहा,ये  आदत नहीं है
                                   आपकी जरुरत नहीं है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   

गुरुवार, 10 जुलाई 2014

तीन चतुष्पद

           तीन चतुष्पद
                    १
तुम्हारा रूप प्यारा है,अदाएं शोख और चंचल
तुम्हारी चाल मतवाली, कमर में पड़ने लगते बल
बुलाता,पास ना आती,हमेशा टालती ,कह ,कल
कलेजा चीर देती हो ,जब कहती हो हमें अंकल
                         २
हसीना को पटाने में ,पसीने छूट जाते  है
हसीना मान जाती तो पसीना हम बहाते है
प्यार के बाद शादी कर,बोझ बढ़ जाता है सर पर , 
गृहस्थी को चलाने में ,पसीने छूट जाते है
                            ३
मेरी तारीफ़ करते ,लक्ष्मी घर की बताते हो
कमा कर दूसरी फिर लक्ष्मी तुम घरपे लाते हो  
मेरी सौतन को जब मैं खर्च कर ,घर से भगाती हूँ,
मुझपे खर्चीली होने की,सदा तोहमत लगाते  हो

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

जीवन में कितने अवसर है

     जीवन में कितने अवसर है

जीवन में कितने अवसर है
कैसे,किसका ,लाभ उठायें,
ये सब अपने पर निर्भर है
सूरज वही,धूप भी  आती
चुभती कभी,कभी मन भाती
दिन में तपन,शाम को ठंडक
लेते कभी उसे बादल ढक
कैसे उसका लाभ मिलेगा ,
यह सब मौसम पर निर्भर है
जीवन में कितने अवसर है
हरेक जिस्म का अपना जादू
हर तन की है अपनी खुशबू
हरेक होंठ का स्वाद अलग है
हर क्षण का उन्माद अलग है
पर जब मिलते है दो प्रेमी ,
बहता मधुर प्यार निर्झर है
जीवन में कितने अवसर है
इस दुनिया में सौ सौ दुःख है
इस जीवन में सौ सौ सुख है
दुःख में हम खुद को तड़फ़ाते
या फिर सुख का मज़ा उठाते
कैसे किसका लाभ उठाये,
ये  निर्णय लेना हम पर है
जीवन में कितने अवसर है
लाख महल बांधो सपनो के
लेकिन जब मिलते है मौके
यदि तुम हिचकेऔर घबराये
लाभ समय पर उठा न पाये
वक़्त निकल जाता ,रह जाते,
हम अपने हाथों को  मल है
जीवन में कितने अवसर है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मेरा पहला डेटिंग

         मेरा पहला डेटिंग

हसीना
फंसी  ना
निकल गया ,
पसीना
दिया लंच ,
डिनर भी
दिखलाया ,
पिक्चर भी
इधर उधर ,
टहलाया
गिफ्ट दे ,
बहलाया
आइसक्रीम,
चॉकलेट
मगर नहीं
हुई'सेट'
जेब हो ,
गयी खाली
मगर घास ,
ना डाली
मुफ्त में ,
मज़ा लिया
बेवकूफ ,
बना दिया
न तो प्यार,
नहीं 'किस '
हुई टांय,
टांय फिस्स
कुछ भी ना,
कर पाये
बुध्धू बन,
घर  आये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जल बीच मीन पियासी

                   घोटू के पद           
               जल बीच मीन पियासी
जल बीच मीन पियासी रे 
मोहे सुन सुन आये हांसी रे
एक जमाने में होती थी,जो चरणो की दासी रे
साथ समय के ऐसी बदली,सर पर चढ़ कर नाची रे
लाख मनाओ ,पर ना माने ,मुख पर लाये  उदासी रे
उसे पटाने को हम करते,मेहनत अच्छी खासी  रे
हम समझती है हम जैसे, हो उसके चपरासी  रे
तीखे तेवर दिखलाती है ,सुन कर बात  जरासी रे
जिक्र प्यार का ,जब भी छेड़ो,आये उसे उबासी रे
वो इस करवट ,हम  करवट ,जल बीच मीन पियासी रे
हर पति की ऐसी  हालत,मोहे सुन सुन आये हांसी रे 

घोटू

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