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गुरुवार, 7 नवंबर 2013

दीवाली पर एक नवगीत



क्यों रे दीपक
क्यों जलता है,
क्या तुझमें
सपना पलता है...?!

हम भी तो
जलते हैं नित-नित
हम भी तो
गलते हैं नित-नित,
पर तू क्यों रोशन रहता है...?!

हममें भी
श्वासों की बाती
प्राणों को
पीती है जाती,
क्या तुझमें जीवन रहता है...?!

तू जलता
तो उत्सव होता
हम जलते
तो मातम होता,
इतना अंतर क्यों रहता है...?!

तेरे दम
से दीवाली हो
तेरे दम
से खुशहाली हो,
फिर भी तू चुप - चुप रहता है...?!

चल हम भी
तुझसे हो जायें
हम भी जग
रोशन कर जायें,
मन कुछ ऐसा ही करता है...!!

- विशाल चर्चित

गुरुवार, 31 अक्तूबर 2013

अपनी ऑरेंज काउंटी

              अपनी ऑरेंज काउंटी

जगमगाती  है ये चमचम , अपनी ओरंज काउंटी
सजी है जैसे हो दुल्हन ,  अपनी ओरंज काउंटी
फल है ये ओरंज जैसा ,पंद्रह टॉवर ,फांक है,
रसीला है इसका कण कण ,अपनी ऑरेंज काउंटी 
इसके सब वासिंदों के मन में अमन हो,चैन हो ,
भरा खुशियों से हो दामन ,अपनी ओरंज काउंटी
प्यारा  मंदिर,क्लब निराला ,बच्चे झूला   झूलते,
मोह लेती सभी का मन ,अपनी ओरंज  काउंटी
सभी बहनो ,भाइयों को ,हो मुबारक दिवाली,
लक्ष्मी ,बरसाए आ धन, अपनी ऑरेंज काउंटी
रौनके कायम रहे और फले ,फूले ,रातदिन ,
रहे ये हरदम सुहागन ,अपनी ओरंज काउंटी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
७०१,टावर-1
 

बुधवार, 30 अक्तूबर 2013

उम्र है मेरी बहत्तर

   उम्र है मेरी बहत्तर

उम्र है मेरी बहत्तर
है बड़े हालत बेहतर
उंगलिया पाँचों है घी में,
और कढ़ाई में मेरा सर
        न तो चिंता काम की है
        ना कमाई ,दाम की है
        मौज है ,बेफ़िक्रियां  है,
           उम्र ये आराम की है 
कोई भी बोझ न सर पर
उम्र है मेरी बहत्तर
         बच्चे अपने घर बसे है 
         अब हैम दो प्राणी बचे है
        मैं हूँ और बुढ़िया है मेरी ,
         मस्तियाँ है और मज़े है
देखते है टी वी दिन भर
उम्र मेरी है बहत्तर
            अच्छी खासी पेंशन है
             नहीं कोई  टेंशन है
             हममें  बस दीवानापन है,     
             करते जो भी कहता मन है
खाते बाहर ,देखें पिक्चर
उम्र मेरी है बहत्तर
              जब तलक चलता है इंजिन
               सीटियां बजती है हर दिन 
               खूब जी भर ,करे मस्ती ,
               गाडी ये रुक जाये किस दिन
क्या पता ,कब और कहाँ पर
उम्र मेरी है बहत्तर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

अपना हर दिन

        अपना हर दिन

सुन्दर ,प्यारा और सुहाना ,तुम्हारा चेहरा मुस्काता
मुख से जब हटता घूंघट पट ,मुझको चाँद नज़र है आता
                                       अपना तो हर दिन पूनम है
मैं गहरी यमुना सा बहता ,तुम गंगा की उज्जवल धारा
रहता गुप्त,प्रकट ना होता ,सरस्वती सा प्यार  हमारा
                                       अपना तो हर दिन संगम है
मैं घनघोर घटा सा छाता ,कभी गरजता हूँ बादल बन
तुमशीतलजल की बूंदों सी,बरसा करती रिमझिम रिमझिम
                                        अपना तो हर दिन सावन है
मैं कान्हा सा ,यमुना तट पर ,करता मधुर बांसुरी वादन
आती खिंची चली दीवानी ,रास रचाने तुम ,राधा  बन
                                         अपना हर दिन वृन्दावन है
मैं सूखी चन्दन की लकड़ी ,तुम पानी की बूंदे पावन
हम तुम आपस में विलीन हो ,प्रभु चरणो चढ़ते चन्दन बन
                                          अपना हर दिन आराधन है
बाँधा हमें सात फेरों ने ,सात जनम का अपना बंधन
मिलन सरिता का सागर से,नीर क्षीर से एक हुए हम
                                            अपना हर दिन मधुर मिलन है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   

अंगूर


         अंगूर

पत्नी थी चन्दरमुखी
पतिदेव थे बन्दरमुखी
बहुत उछल कूद करते
रोज गुलाटी भरते
पत्नी से रोज नयी ,
डिश की  फरमाइश करते
पत्नी थी बहुत दुखी  
पति बोले चंद्रमुखी
क्या नयी डिश बनायी
पत्नी अंगूर लायी
बोली ये डिश चखो
मुंह में अंगूर रखो
खाकर के बतलाओ ,
कैसी है मेरे हजूर
पति बोले डिश का नाम ,
पत्नी बोली 'लंगूर के मुंह में अंगूर'
घोटू  

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