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रविवार, 27 अक्तूबर 2013

फूल और पत्थर

         फूल और पत्थर

      तुम कोमल सी कली प्रिये और मै हूँ पत्थर
      तुम महको गुलाब सी और मै संगेमरमर
मै छेनी की चोंटें खाकर ,बनता मूरत ,
                      और तीखी सी सुई छेदती बदन तुम्हारा
श्रद्धा और प्रेम से होती मुझ पर अर्पण ,
                       मेरे उर से आ लगती तुम,बन कर  माला
         दोनों को ही चोंट ,पीर सब सहनी पड़ती ,
         तब ही होता ,मिलन हमारा ,प्यारा ,सुखकर
        तुम कोमल सी कली प्रिये और मै हूँ  पत्थर
मै धरता शिव रूप,कृष्ण या राम कभी मै ,
                          कभी तुम्हारा रूप धरू बन सीता,राधा
तुम आती ,मुझ पर चढ़ जाती ,और समर्पण ,
                            तुम्हारा प्यारा ,मेरा जीवन महकाता
             कितना प्रमुदित होता मन,मेरी प्रियतम तुम,
              मिलती मुझसे ,कमल,चमेली ,चम्पा बन कर
              तुम कोमल सी कली प्रिये और मै हूँ पत्थर
मै चूने के पत्थर जैसा ,पिस पिस करके ,
                              ईंट ईंट जोड़ा करता हूँ,घर बनवाता
और कभी भट्टी में पक कर बनू सफेदी ,
                              घर भर को पोता करता ,सुन्दर चमकाता
                और पान के पत्ते पर लग ,कत्थे के संग
                 तुम्हे चूमता ,लाली ला ,तुम्हारे लब  पर
                तुम कोमल सी कली प्रिये और मै हूँ पत्थर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बात -कल रात की

       बात -कल रात की

रात सुहानी सी प्यारी थी ,मन में भरी मिलन अभिलाषा
तुम मुझसे नाराज़ हो गए ,मैंने किया मज़ाक जरा सा
तुमने भी एक चादर ओढ़ी ,मैंने भी एक चादर ओढ़ी
तुम उस करवट,मै इस करवट ,ना तुम बोले ,ना मै बोली
पौरुष अहम् तुम्हारा जागा ,फेरा मुंह,सोये दूरी पर
इस आशा में,मै मनाउंगी ,पड़े रहे यूं ही मुंह ढक  कर
मुझे बड़ा गुस्सा था आया ,मै  भी खिसक ,दूर जा लेटी
तुममे भी थोडा गरूर था ,मुझ में भी थी थोड़ी हेठी
कोई किसी को तो मनायेगा ,जायेंगे हम डूब प्यार में
नींद आगई हम दोनों को,बस ऐसे ही ,इंतज़ार में
उचटी मेरी नींद जरा जब ,तुम सोते थे,खर्राटे भर
अपने सीने पर रख्खा था ,तुमने मेरा हाथ पकड़ कर
मै पागल सी हुई दीवानी ,लिपटी तुमसे और सो गयी
बंधा रहा बाहों का बंधन ,आँख खुली ,जब सुबह हो गयी
छुपा प्यार एक दूजे के प्रति,हो जाता है प्रकट हमेशा
हम अपने अवचेतन मन में ,आ जाते है निकट हमेशा
मेरा जीवन सदा अधूरा ,अगर तुम्हारा संग  नहीं है
कभी रूठना ,कभी मनाना ,जीवन का आनंद यही है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शनिवार, 26 अक्तूबर 2013

चवन्नी

             चवन्नी

चलन जिसका हो गया है बंद बिलकुल आजकल,
हमारी तो हैसियत है  ,उस चवन्नी  की  तरह
वो तो उड़तीं है हवा में ,लहलहाती पतंग सी ,
पकड़ कर हमने रखा है ,उनको कन्नी की तरह
वो हैं सुन्दर ,गिफ्ट प्यारी और बेहद कीमती ,
ढक  रखा है हमने कि लग जाए ना उनको नज़र ,
दिखते तो चमचमाते पर ,दिये  जाते फाड़ है ,
आवरण हम ,गिफ्ट की पेकिंग की पन्नी की तरह
घोटू  

पुताई

       पुताई

चमक आ जाती है थोड़ी ,कुछ दिनों के वास्ते ,
पुताई से पुराना घर ,नया हो सकता  नहीं
खून में मुश्किल है होता,फिर से आ जाना उबाल ,
बाल रंगवाने से बुड्ढा ,जवां हो सकता नहीं 
कितनी 'ओवरऑयलिंग ',सर्विस करा लो दोस्तों,
कार का मॉडल पुराना,पुराना ही रहेगा ,
क्रीम कितने ही लगालो,मिटेगी ना झुर्रियां,
लाख कोशिश करे इंसां ,खुदा हो सकता नहीं
घोटू

शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2013

रह गया मैं एक निरा भावुक इंसान......



होता अगर मैं
एक धुरंधर नेता
तो सोचता कि
वाह क्या दृश्य है
गरीबी यहां भुखमरी यहां
इसलिये अपनी
सियासत यहां...

होता अगर मैं
मीडिया का खिलाड़ी
सनसनीखेज खबर बनाता
दिनरात दिखाता
विज्ञापनों की बरसात करवाता....

होता अगर मैं
एक गिद्धदृष्टि फोटोग्राफर
अलग-अलग कोणों से
ऐसी तस्वीरें लेता
कि दुनिया के तमाम पुरस्कार
अपनी झोली में बटोर लेता....

होता अगर मैं
एक निर्माता निर्देशक
इस विषय पर एक
अच्छी सी फिल्म बनाता
ऑस्कर अपने घर ले आता...

होता अगर मैं
एक होशियार समाज सेवक
इन गरीबों के नाम पर
करोड़ों का अनुदान लाता
थोड़ा बहुत इनको खिलाता
बाकी सब माल अंदर हो जाता...

होता अगर मैं
एक परम बुद्धिजीवी
इस विषय पर खूब
गहन अध्ययन करता
विवादास्पद आंकड़े जड़ता
एक दमदार किताब लिखता
फिर तो नोबल पुरस्कार से
आखिर कम क्या मिलता...

होता अगर मैं
एक पाखंडी पंडित - मुल्ला
ये दृश्य देख कर सोचता
'छि - छि -छि -छि
जाने कहां से इतनी
गंदगी फैला रखी है,
इन जाहिल गँवारों ने ही
ये दुनिया नर्क बना रखी है....

लेकिन रह गया मैं एक
निरा भावुक इंसान
कुछ भी नहीं कर पाया
ये दृश्य देखकर ह्रुदय भर आया
और एक सवाल ये आया कि
'हाय रे ईश्वर तूने ये जहां
इतना विचित्र क्यों बनाया....?!'

- विशाल चर्चित

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