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गुरुवार, 5 सितंबर 2013

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जब भी मै विज्ञापन देखता हूँ,सोचता हूँ,
जब सफोला नहीं होता था ,
लोग अपने दिल का ख्याल कैसे रखते थे
जब हिट नहीं होता था,
मलेरिया के मच्छर से कैसे बचते थे
जब होर्लिक्स या बोर्नविटा नहीं होता था ,
बिना विटामिन डी के ,
दूध का केल्शियम कैसे मिलता होगा
बिना लक्स या ब्यूटी क्रीमों  के,
औरतों का रूप कैसे खिलता होगा
बिना शेम्पू के ,बाल कैसे धोये जाते होंगे
बिना टी वी के लोग वक़्त कैसे बिताते होंगे
बिना मोबाईल के ,बात कैसे होती होगी
बिना बिजली की रोशनी के,रात कैसी होती होगी
घर में ढेर सारे बच्चे और संयुक्त परिवार सारा
इतनी भीड़ में कैसे करते होंगे गुजारा
पर ये सच है ,बिना इन सुविधाओं के भी,
खुशी खुशी जीते थे  ,लोग सारे
हाँ,वो थे ,पुरखे हमारे
घोटू 


हमारा धर्म-हमारे संस्कार

            हमारा धर्म-हमारे संस्कार

हम जब भी गुजरते है ,किसी मंदिर,मस्जिद ,
या  किसी अन्य  धार्मिक स्थल के आगे से ,
सर नमाते  है 
क्योंकि हमारे संस्कार ,हमें ,
सभी धर्मो का आदर करना सिखलाते है
बचपन से ही हमारे मन में भर दी जाती,
यह आस्था और विश्वास है
कि हर चर अचर में,इश्वर का वास है
भगवान ने भी जब अवतार लिया
तो सबसे पहले जलचर मत्स्य याने मछली ,
और फिर  कश्यप याने कछुवे का रूप लिया
फिर वराह बन प्रकटे ,पशु रूप धर
फिर नरसिंह बने,याने आधे पशु ,आधे नर
गणेश जी ,जिनकी हर शुभ  कार्य में,
पहले पूजा की जाती है
नीचे से नर है,ऊपर से हाथी है
हम आज भी गाय को गौ माता कहते है
और वानर रुपी हनुमानजी का
 पूजन करते रहते है
अरे पशु क्या ,हम तो वृक्ष और पौधों में भी ,
करते है भगवान का दर्शन
इसीलिए करते है ,वट,पीपल,
आंवला और तुलसी का पूजन 
हम पर्वतों को भी देवता स्वरूप मानते है ,
कैलाश पर्वत हो या गोवर्धन
पत्थर की पिंडी या मूर्ती को भी ,
देव स्वरूप मान कर करते है आराधन
पूजते है सरोवर
अमृतसर हो या पुष्कर
नदियों को  देवी का रूप मान कर ,
स्नान, पूजा, ध्यान करते रहते है
गंगा को गंगा मैया और,
 यमुना को यमुना मैया कहते है 
नाग को भी देवता मान कर दूध पिलाते है
कितने ही पशु पक्षियों को ,
देवी देवता का वाहन बतला कर ,
उनकी महिमा बढाते है
प्रकृति की हर कृति का करते सत्कार है
ये हमारा धर्म है,हमारे संस्कार है

मदन मोहन बाहेती'घोटू '

मंगलवार, 3 सितंबर 2013

आँख का क्या ,लड़ गयी सो लड़ गयी

      आँख का क्या ,लड़  गयी सो लड़ गयी

इधर दिल धड़का ,उधर धड़कन बढ़ी ,
हुआ कुछ कुछ,बात आगे  बढ़ गयी
नहीं इस पर बस कभी भी ,किसीका ,
आँख का क्या,लड़ गयी सो लड़ गयी
बहुत हसरत थी कि उनसे हम मिलें
बढ़ें आगे,प्यार के फिर सिलसिले
ललक उनसे मिलने की मन में लगी ,
चाह का क्या, जग गयी सो जग गयी
लालसा थी लबों की मदिरा  पियें
जिन्दगी भर झूम मस्ती से जियें
इस तरह आगोश में उनके बंधे,
प्यास का क्या ,बढ़ गयी सो बढ़ गयी
भावनाएं,आई,ठहरी ,बह गयी,
चाह मन की ,कुछ अधूरी रह गयी
सुहानी  यादें मधुर के भरोसे,
उम्र का क्या ,कट गयी सो कट गयी

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

बुढापे की झपकियाँ

            बुढापे की झपकियाँ

बचपन में ऊंघा करते थे जब हम क्लास में,
टीचर जगाता था हमें तब चाक  मार  कर
यौवन में  कभी दफ्तरों में  आती झपकियाँ ,
देता था उड़ा नींद ,बॉस ,डाट  मार कर
लेकिन बुढ़ापा आया,जबसे रिटायर हुए ,
रहते है बैठे घर में कभी ऊंघते है हम,
कहती है बीबी ,लगता है डीयर तुम थक गए,
कह कर के सुलाती हमें ,वो हमसे प्यार कर

घोटू

दावतों का खाना

        दावतों का खाना

हालत हमारी होती है कैसी क्या बताये,
                    जब भी बुलाये जाते बड़ी  दावतों में हम 
खाने का शौक है बहुत ,पर हाजमा नहीं,
                   मुश्किल से काबू पाते ,दिल की चाहतों पे हम
टेबल पर बिछे सामने ,पकवान  सैकड़ों ,
                     मीठा है कोई चटपटा  ,लगते  लज़ीज़ है
जी चाहे जितना खाओ तुम,ये छूट है खुली,
                       पर खा न पाते,मन में होती बड़ी खीज है
मनभाती चाट सामने ,ललचाती है हमें,
                      जब देशी घी में सिकती है ,आलू की टिक्कियाँ
 गरमागरम जलेबियाँ,हलवा बादाम का,
                        मुंह में है आता पानी भर ,दिखती जब कुल्फियां
ढेरों लुभाती सब्जियां,पूरी है ,नान है,
                            पुलाव,दाल माखनी ,और बीसियों सलाद
भर लेते चीजें ढेर सारी ,अपनी प्लेट में,
                          मिल जाती सारी इस तरह,आता अजीब स्वाद   
होती है कुफ्त ,ढंग से ,खा पाते कुछ नहीं,
                            चख चख के भरता पेट,होता बुरे  हाल में 
पर मन नहीं भरता है मगर सत्य है यही ,
                                मिलती है सच्ची तृप्ती घर की रोटी दाल में
दावत में मज़ा ले न पाते ,किसी चीज का,
                                ये खाएं या वो खाएं ,इसी पेशोपश में हम
हालत हमारी होती है,ऐसी क्या बताएं,
                                 जब भी बुलाये जाते बड़ी दावतों में हम

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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