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शुक्रवार, 7 जून 2013

दुनिया के रंग

           दुनिया के रंग 
        
इस दुनिया के कई रंग है 
कोई का दिल बड़ा  तंग है 
कोई के मन में  उमंग  है 
सबके अपने पृथक ढ़ंग है 
             बाहर से दिखता सफ़ेद पर 
              देखो यदि त्रिपार्श्व लगा कर 
             सतरंगी  दिखता है  मंज़र 
             खूब मज़ा लो इसका जी भर 
ये दुनिया तो सतरंगी है 
तृप्त कभी,भूखी नंगी  है 
कभी अजब है ,बेढंगी है 
दानी भी है,भिखमंगी  है 
              कोई मुहब्बत में है डूबा 
              तो कोई नफरत में डूबा 
              कोई इस दुनिया से ऊबा  
               सबका अलग अलग मंसूबा 
कोई लगा कमाने में है 
कोई लगा लुटाने में है 
कोई लगा बनाने  में है 
कोई लगा गिराने में है 
                कोई मालामाल बहुत है
                तो कोई कंगाल बहुत है 
                कोई तो खुशहाल बहुत है  
                तो कोई बदहाल बहुत है 
कोई भूखा रहे बिचारा 
तो फिर कोई अपच का मारा 
खा न सके ,तरसे बेचारा 
कोई फिरता मारा मारा 
                  तो कोई बीमार बहुत है 
                   दुखी और लाचार बहुत है 
                   तो कोई दमदार  बहुत है 
                    बहुरंगी  संसार  बहुत है 
मीठा मीठा सबसे बोलो 
अंतर्मन की आँखें खोलो 
सबके मन में प्यार संजोलो  
सबको एक तराजू तौलो 
                     सदविचार का चश्मा पहनो 
                      संस्कार का चश्मा  पहनो 
                      सदा  प्यार का चश्मा पहनो 
                       सदाचार का चश्मा पहनो 
धुन्धलाहट सब मिट जायेगी 
दुनिया साफ़ नज़र आयेगी 
प्रेम लगन जब लग जायेगी 
सदा जिन्दगी मुस्कायेगी 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

                               

जिन्दगी -चार मुक्तक

         जिन्दगी-चार मुक्तक 
         
                        १ 
 जिन्दगी थी ,खूबसूरत ,जिन पलों में 
  रहे उलझे,सांसारिक , सिलसिलों में 
   फेर में नन्यान्वे के रहे फंस  कर ,
  फायदे  ,नुक्सान की ही अटकलों में 
                         २ 
   हमें अच्छा या बुरा कुछ  दिख न पाया 
  भटकता  ही रहा ये मन, टिक न पाया 
  अभी तक  हिसाब ये हम कर न पाये ,
  हमने क्या क्या खोया और क्या क्या कमाया 
                          ३    
   जिन्दगी का मुल्य हम ना जान पाये 
    आपाधापी में यूं ही बस दिन बिताये 
    व्यर्थ की ही उलझनों में रहे उलझे ,
    अधूरी रह गयी मन की कामनायें 
                           ४ 
    सांझ आयी ,सूर्य ढलने लग गया है 
    उम्र का ये दौर  ,खलने  लग गया है 
    जितना भी हो सके,जीवन का मज़ा लें,
    ख्याल मन में ये  मचलने लग गया है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुढापे की खुराक

          बुढापे की खुराक 
          
खा लिया करते थे 'घोटू',पाच छह गुलाब जामुन ,
                उम्र का एसा असर है ,सिर्फ  जामुन खा रहे है 
दिल जलाया ,जलेबी ने,और रसगुल्ला हुआ गुल,
                  खीर खाना अब मना है,सिर्फ खीरा   खा रहे है 
भूल करके गर्म हलवा ,करेले का ज्यूस कड़वा ,
                    लूखी रोटी ,फीकी सब्जी, कैसे भी गटका रहे है  
तली चीजों पर है ताला ,चाय ,काफी पड़ी फीकी ,
                      शुगर  ना बढ़ जाए तन में,इसलिये घबरा रहे है 

  'घोटू'

बुजुर्गों का आशीर्वाद

                  
                       बुजुर्गों का आशीर्वाद 

प्रगति पथ पर जब भी बढ़ता आदमी ,
                        चढ़ने लगता तरक्की की सीढियां 
एक उसके कर्म से या भाग्य से ,
                         जाती है तर ,कई उसकी  पीड़ियाँ 
बनाता पगडंडियो को है सड़क ,
                         साफ़ होती राह जिसके काम से 
उसकी मेहनत का ही ये होता असर ,
                          सबकी गाडी  चलती  है आराम से 
बीज बोता ,उगाता है सींचता ,
                            वृक्ष होता तब कहीं फलदार  है 
खा रहे हम आज फल ,मीठे सरस ,
                             ये बुजुर्गों का दिया  उपहार  है 
आओ श्रद्धा से नमाये सर उन्हें ,
                               आज जो कुछ भी है,उनकी देन है 
उनके आशीर्वाद से ही हमारी ,
                                जिन्दगी में अमन है और चैन  है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'     

गुरुवार, 6 जून 2013

प्यार की बरसात करदे

      
        प्यार की बरसात करदे 

छा रहे बादल घनेरे 
पास आकर मीत मेरे 
घन भले ,बरसे न बरसे ,प्यार की बरसात कर दे 
चाँद बादल में छुपा है 
मुख तुम्हारा चंद्रमा है 
चांदनी में नहा कर हम,सुहानी ये रात  कर दें 
उष्म मौसम है ,उमस है 
बड़ी मन में कशमकश है 
पास आओ,साथ मिल कर,पंख फैला कर उड़े हम 
मै हूँ पानी ,तुम हो चन्दन 
बाँध कर बाहों का बंधन 
एक दूजे में समायें, एक दूजे संग  जुड़े  हम 
हर तरफ बस प्यार बरसे 
प्रीत की मधु धार बरसे 
हवाएं शीतल बहे और हो हरेक मौसम सुहाना 
पुष्प विकसे,मुस्कराये 
बहारे हर तरफ  छाये 
और भवरे गुनगुनाये ,प्यार का मादक खजाना 
मिलन रस में माधुरी है 
जिन्दगी खुशियाँ भरी है 
जिन्दगी महके सभी की ,कोई ऐसी बात कर दें 
छा रहे बादल घनेरे 
पास आकर मीत मेरे 
घन भले बरसे न बरसे ,प्यार की बरसात कर दें 

 मदन मोहन बाहेती 'घोटू'     

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