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गुरुवार, 23 मई 2013

वाटर ऑफ़ गेंजेस

   

जादूगर,अक्सर एक जादू दिखाते रहते है
जिसे वाटर ऑफ़ गेंजेस कहते है
जिसमे जादूगर एक खाली बर्तन दिखाता है
थोड़ी देर में उसमे पानी भर आता है 
वो उसे फिर खाली कर देता है
और जादू से ,थोड़ी देर में फिर भर देता है
इस तरह बर्तन खाली होता और भरता  रहता है
पूरे खेल तक ये सिलसिला चलता रहता है   
माननीय मनमोहनसिंह जी के हाथ
नौ बरस पहले आया था खाली गिलास
उन्होंने जादूगर की तरह उसे पानी से भर दिया
पर कामनवेल्थ गेम के घोटाले ने उसे खाले कर दिया
उन्होंने जादू  से फिर भरा
अबकी बार टू जी के घोटाले ने खाली करा
अगली बार फिर भरा
तो कोल गेट ने खाली करा  
पिछले नौ साल से ये ही सिलसिला चल रहा है
गिलास खाली हो हो कर भर रहा है
गिलास अब भी खाली का खाली है ,
पर कोई बात ना चिंता की है
'वाटर ऑफ़ गेंजेस 'का खेल ख़तम होने में ,
एक बरस बाकी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 21 मई 2013

बदलती दुनिया

         

इलास्टिक ने नाडे  को गायब किया ,
और ज़िप आई,बटन को खा गयी 
परांठे ,पुरियों को पीज़ा का गया ,
सिवैयां ,चाइनीज नूडल खा गयी 
दादी नानी की कहानी खा गए,
टी वी पर ,दिनरात चलते सीरियल 
चिट्ठियां और लिफाफों को खा गए ,
एस एम् एस और ई मेल ,आजकल 
स्लेट पाटी ,गुम  हुई,निब भी गयी ,
होल्डर,श्याही की बोतल और पेन 
आजकल  ये सब नज़र आते नहीं ,
बस चला करते है केवल जेल  पेन 
फोन काले चोगे वाला खो गया ,
सब के हाथों में है मोबाईल हुआ 
नज़र टाईप राईटर आते नहीं,
कंप्यूटर है  ,इस तरह काबिज हुआ 
लाला की परचून की सब दुकाने,
बड़े शौपिंग माल सारे खा गए 
बंद सब एकल सिनेमा हो गए ,
आज मल्टीप्लेक्स इतने छा  गए 
ग्रामोफोन और रेडियो गायब हुए,
सारा म्यूजिक अब डिजिटल हो गया 
इस कदर है दाम सोने के बढे ,
चैन से सोना भी मुश्किल  हो गया 
एक पैसा,चवन्नी और अठन्नी ,
नोट दो या एक का अब ना मिले 
दौड़ता है मशीनों सा आदमी ,
जिन्दगी में चैन भी अब ना मिले 
चोटियाँ और परांदे गुम  हो गए ,
औरतों के कटे ,खुल्ले  बाल है 
नेताओं ने देशभक्ती छोड़ दी ,
लगे है सब लूटने में माल है 
अपनापन था,खुशी थी ,आनंद था 
होते थे संयुक्त सब परिवार जब 
छह डिजिट की सेलरी तो हो गयी ,
सिकुड़ कर एकल हुए परिवार अब 
सभी चीजें ,छोटी छोटी हो गयी ,
आदमी के दिल भी छोटे हो गए
समय के संग ,बदल हम तुमभी गए  
मै हूँ बूढा ,जवां तुम भी ना रहे 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

आप आये



बहुत तडफा ,मन अभागा 
कई,कितनी रात जागा 
जब सपन  तुमने चुराये 
आप आये 
पावडे ,पलकें पसारे 
राह तुम्हारी  निहारे 
मिलन को मन छटपटाये 
आप आये 
नींद नैनों से रही जुड़ 
देख कर तुमको गयी उड़ 
प्रेम अश्रु ,डबडबाये
आप आये 
बांह में, मै  तुम्हे भरके 
तन ,बदन मन एक करके 
एक दूजे में समाये 
आप आये 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

बरसों बीते

           
 बरसों बीते ,बरस बरस कर 
कभी दुखी हो ,कभी हुलस कर 
जीवन सारा ,यूं ही गुजारा ,
हमने मोह माया में फंस कर 
कभी किसी को बसा ह्रदय में ,
कभी किसी के दिल में बस कर 
कभी दर्द ने बहुत रुलाया ,
आंसू सूखे,बरस बरस कर 
और कभी खुशियों ने हमको ,
गले लगाया ,खुश हो,हंस कर 
हमने जिनको दूध पिलाया ,
वो ही गए हमें  डस डस  कर 
यूं तो बहुत हौंसला है पर,
उम्र गयी हमको बेबस  कर 
और बुढ़ापा ,लाया स्यापा ,
कब तक जीयें,तरस तरस कर 
ऊपर वाले ,तूने  हमको ,
बहुत नचाया,अब तो बस कर 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

बुढापे की थकान

    

आजकल हम इस कदर से थक रहे है 
ऐसा लगता ,धीरे धीरे   पक रहे  है 
बड़े मीठे और रसीले हो गये  है,
देखने में पिलपिले  से लग रहे है
दिखा कर के चेहरे पे नकली हंसी ,
अपनी सब कमजोरियों को ढक रहे है 
अपने दिल का गम छुपाने के लिए,
करते सारी कोशिशे  भरसक रहे  है 
नहीं सुनता है हमारी कोई भी , 
मारते बस डींग हम नाहक रहे है 
सर उठा कर आसमां को देखते,
अपना अगला आशियाना  तक रहे है 
'घोटू'करना गौर मेरी बात पर ,
मत समझना यूं ही नाहक बक रहे है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 

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