आओ फिर लड़ लें,झगड़ लें
बहुत दिन से तुम न रूठी ,
और ना मैंने मनाया
फेर कर मुंह नहीं सोये,
एक दूजे को रुलाया
देर तक भूखी रही तुम,
और मैं भी न खाया
फिर सुलह के बाद वाला ,
नहीं सुख हमने उठाया
रूठने का, मनाने का ,
बहाना हम कोई गढ़ ले
आओ फिर लड़ लें,झगड़ ले
चलो फिर से याद कर ले ,
उम्र वह जब थी जवानी
दिन सुनहरे हुआ करते,
और रातें थी सुहानी
पागलों सा प्यार था पर ,
एक दूजे की न मानी
चाहते ना चाहते भी ,
हुआ करती खींचातानी
हुई अनबन रहे कुछ क्षण,
राह कुछ ऐसी पकड़ ले
आओ फिर लड़लें ,झगड़लें
सिर्फ मीठा और मीठा ,
खाने से मन है उचटता
बीच में नमकीन कोई ,
चटपटा है स्वाद लगता
इस तरह ही प्यार में जो ,
झगड़े का तड़का न लगता
तो मनाने बाद फिर से ,
मिलन का सुख ना निखरता
रुखे सूखे होठों पर वह ,
मिलन चुंबन पुनः जड़ लें
आओ फिर लड़लें, झगड़लें
मदन मोहन बाहेती घोटू