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बुधवार, 15 अक्टूबर 2014

राजनीति के चश्मे से लोगों के चार प्रकार...


वैसे तो अपन राजनीति पर बहुत कम बोलते हैं... पर जब बोलते हैं तो हमेशा अलग सुर में ही बोलते हैं... काहे से कि न तो हम कमल वाले हैं, न पंजा वाले, न झाड़ू वाले, न घड़ी वाले, न साइकिल वाले, न हाथी वाले, न रेल इंजन वाले, न हंसिया वाले और न लालटेन वाले... इसीलिये राजनीति से नहाये धोये लोगों को लगता है कि 'क्या बोल रहा है बे, पढ़ाई- लिखाई नहीं किया का'... इसीलिये कुछ बोलने में थोड़ा घबराहट फील होता है... लेकिन पिछले काफी दिनों से महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार की वजह से कानों में कुलबुलाहट और आज लोगों में चुनावी जोश देखकर बोलने से अपने आप को रोक नहीं पाया... 

हमारे हिसाब से कुल 4 तरह के लोग हैं हमारे देश में... 

1) एक वो जो पूरी तरह से राजनीति में सक्रिय हैं... जिनके लिये मोदी जी विष्णु के ग्यारहवें अवतार के रूप में धरती पर आये है...सोनिया जी - राहुल जी -  प्रियंका जी ही देश के असली तारनहार... केजरीवाल जी संसार के समस्त देवी देवताओं के मिक्स अवतार लगते है... कहने का मतलब ये है कि इनको अपना नेता साक्षात भगवान का अवतार लगता है तो दूसरी पार्टी वाला 'कुत्ता या कुतिया' (ये बात तमाम नेताओं के मुंह से सुनने के बाद कह रहा).... 

2) अब दूसरे प्रकार के लोगों की बात... ये वो लोग हैं जो किसी पार्टी या नेता के परम भक्त होते हैं... ये अपना सब काम छोड़ के दिन-रात अपने नेता के भजन में व्यस्त रहते हैं... अगर इनके नेता को छींक भी आये तो तुरंत कीर्तन शुरू 'वाह - वाह क्या छींके हैं भइया, आप से पहले न तो किसी ने ऐसा छींका होगा और न आपके बाद कोई ऐसा छींक पायेगा'... ये लोग अपने इस कार्य को देश की सेवा बताते हैं... भले ही अपने माता - पिता - भाई - बहनों - रिश्तेदारों - मित्रों - कर्मचारियों और पड़ोसियों की सेवा में कमी रह जाये पर देश की सेवा में कमी नहीं होनी चाहिये... सच कहें तो ऐसे लोगों के बल पर ही सभी पार्टियों की पूरी खिचड़ी पकती है और सत्ता में आने के बाद इन्हीं लोगों में मलाई भी बंटती है... मलाई यानी कि पद, प्रमोशन, ठेका, कौड़ियों के भाव में सरकारी जमीन, कमीशनखोरी, डरा - धमका के हफ्तावसूली आदि - आदि... 

3) अब बारी है तीसरे प्रकार के हम जैसे राजनीतिक अछूत लोगों कि... जो पहले दो महा - प्रकारों की नस - नस से वाकिफ होते हैं इसलिये इनकी न तो बातों में आते हैं और न ही इनके सुर में सुर मिलाते हैं... ये वहीं बोलते हैं जो निस्पक्ष और निःस्वार्थ होता है.... इन्हे न तो किसी मलाई की चाह होती है और न ही किसी हराम के पद की... अपनी मेहनत से जो - जितना मिल जाये उसमें संतुष्ट.... अपनी क्षमता अनुसार बिना देश प्रेम का शोर मचाये लोगों की सेवा में मस्त रहने वाले... 

4) और अब बात करते हैं चौथे प्रकार के लोगों की... तो ये वो लोग हैं जिन्हें वास्तव में जनता जनार्दन और आम आदमी कहा जाता है... जिन्हें कुछ पता नहीं होता है... इन्हें वही सही लगता है जो बार - बार और ऊंची आवाज में सुनाई पड़े... जो टीवी और अखबार पार बार - बार दिखाई पड़े... जो बहुत जल्दी भूल जाते हैं पुरानी बातें - पुराने घाव - पुराने धोखे - पुराने घोटाले... इनके भोलेपन का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 'घर भरता है नेता का, खुश होते हैं ये'... 'बीमार पड़ता है नेता, तो दुखी होते हैं ये'... 'शादी पड़ती है नेता के यहां, तो नाचने लगते हैं ये'... नेता का फरमान आता है कि 'चलो दिल्ली' तो चल दिये...'जाति - धर्म के लिये लड़ना है' तो लड़ पड़े... कहने का मतलब है कि इन्हें बड़ी आसानी से बहला - फुसला कर के अपना उल्लू सीधा किया जाता है... हम ये नहीं कहते कि सब ऐसे ही हैं पर ज्यादातर तो हमने ऐसा ही पाया है....खैर, इस तरह खत्म हुई 'राजनीतिक कथा'... अब बारी है आप सबकी टिप्पणियों की... और पहले दो प्रकार के लोगों की 'मन ही मन गालियों की'.... :D

चाँद- सूरज

             चाँद- सूरज

आसमां में चमकते है ,सूर्य भी और चाँद भी ,
     रोशनी दोनों में है,फिर भी जुदा कुछ बात है
एक में ऊष्मा भरी है ,एक है शीतल बहुत ,
     एक जग को जगाता ,एक जगाता जज्बात है
जगत का यह चक्र इनकी ही बदौलत चल रहा ,
जल बरसता ,अन्न पकते और पलती जिंदगी ,
एक तन को तपाता है ,एक शीत का भण्डार है
     एक लाता सुहाने दिन,एक मिलन की रात है
सूर्य में भण्डार ऊर्जा का विपुल है इसलिए,
चाँद उससे मांग लेता ,उधारी में रोशनी,
चाँद भी है अजब दानी,उधारी का माल सब ,
बाँट ,करता रोशनी की रात भर बरसात है
दोनों की आशिक़ मिज़ाजी ,हर तरफ मशहूर है
खिड़कियों से हमेशा ये सबके घर में झांकते ,
एक रहता किरण के संग ,एक के संग चांदनी ,
एक आता निशा के संग ,एक उषा साथ  है
 
मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

कैसे कह दूँ ?

        कैसे कह दूँ ?

माना दोस्त नहीं तुम मेरे ,पर दुश्मन भी कैसे कह दूँ
दो मीठी बातें करने को,मै अपनापन  कैसे  कह दूँ
तुम हमको अच्छे लगते हो,हम भी तुमको अच्छे लगते
जब भी नज़रें टकराती है,मन मे है झांझर से बजते 
लेकिन ये बस आकर्षण है ,ये तो कोई प्रेम नहीं है ,
सबके ही मन को भाते है ,जब बगिया में फूल महकते
हर एक गली और चौबारे को निज आँगन कैसे कह दूँ
माना दोस्त नहीं तुम मेरे ,पर दुश्मन भी कैसे कह दूँ
मेरे पीछे पड़े हुए तुम,क्यों हो  पागल दीवाने से
यूं सम्बन्ध नहीं बनते है ,केवल मिलने ,मुस्काने से
लेख लिख रखा है नियती ने ,कौन ,कहाँ,कब ,किसका होगा,
हो पाता  है पूर्ण समर्पण ,उस बंधन में  बंध  जाने   से
एक किसी भी अनजाने को,अपना प्रियतम कैसे कह दूँ
माना दोस्त नहीं तुम मेरे,पर दुश्मन भी कैसे कह दूँ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

शाम आ रही है

            शाम आ रही है

दिन ढल रहा है और शाम आ रही है,
तभी साये अब लम्बे होने लगे  है
बदलती ही करवट ,जहाँ यादें रहती ,
सलवट भरे वो बिछौने   लगे है
बुझने को होता दिया जब है कोई,
सभी कहते है वो भभकता बहुत है,
हमें लगता है शायद ये ही वजह है ,
कि हम और रोमांटिक होने लगे है
चेहरे पे झुर्री है,आँखों में  जाले ,
नहीं दम बचा,हसरतें पर बड़ी है
इसी आस में कुछ निकल आये मख्खन,
मथी  छाछ,फिर से बिलोने लगे है 
बड़े चाव से वृक्ष रोपा था हमने ,
बुढ़ापे में खाने को फल देगा मीठे ,
फल लग रहे हैं,मगर खा न पाते ,
उमर के सितम ऐसे होने लगे है
बहुत व्यस्त अपनी गृहस्थी में बच्चे,
सुखी है सभी अपनी मस्ती में बच्चे ,
समझते हमें फालतू बोझ लेकिन,
जमाने के डर से ,वो ढोने लगे है
सूरज किरण संग कभी खेलते थे ,
अभी संध्या संग है और रजनी बुलाती ,
कहते है नींद ,मौत की  है सहेली ,
बड़ी देर उसके संग ,सोने लगे है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 12 अक्टूबर 2014

प्यार की परिक्षा -मेंहदी

            प्यार की परिक्षा -मेंहदी
अबकी बार
करवाचौथ पर पत्नी ने लगाईं गुहार
सुनोजी!कम होता जा रहा है आपका प्यार
हमने कहा, क्या बात करती हो मेडम
हमारा प्यार बढ़ रहा है ,नहीं होरहा है कम
हर साल टरका  देते थे ,साडी दिला कर
 अबके से हीरे की अंगूठी दी है लाकर
पत्नी बोली ये तो ठीक है ,पर ऐसा है कहा जाता
पति जितना प्यार करता है ,
उतना गहरा  मेंहदी का रंग है आता
पर अबकी बार ,मेंहदी का रंग  कम  आया है
कहीं आपने कोई दूसरा चक्कर तो नहीं चलाया है
हम ने सर पीट लिया और सोचा ,
औरतें होती है कितनी होशियार
साल में तीन चार बार ,जब आते है त्योंहार
हाथों में लगवाती मेंहदी है
और इस तरह पति की परीक्षा लेती है
परचा कोई लिखता है,देता है कोई एक्ज़ाम
और पास फ़ैल का , पति पर लगता है इल्जाम
वैसे भी   जो  उम्र भर पत्नी से  डरे
अब मेंहदी ना रचे तो बेचारा पति क्या करे ?

 मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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