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शनिवार, 6 सितंबर 2025

नाश्ता 

आओ डियर करें नाश्ता 
मैं खाऊंगा पूरी कचोरी ,
और तुम पिज़्ज़ा और पास्ता 
आओ डियर करें नाश्ता 

मुझे दही संग अच्छे लगते 
गरम पराठे आलू वाले 
गरम टोस्ट पर लगा के मक्खन 
साथ जाम के तू भी खा ले 
मुझे बेड़मी आलू भाते 
और साथ में गरम समोसा 
तुझे चाहिए इडली सांभर 
आलू भरा मसाला डोसा 
भले हमारे दिल मिलते हो 
खान-पान का अलग रास्ता 
आओ डियर करें नाश्ता 

तुझे विदेशी चीज भाती
देसी स्वाद मेरा मन मोहे 
मुझे चाहिए गरम जलेबी 
और साथ इंदौरी पोहे 
पोहे में नींबू निचोड़कर 
साथ सेव के जो खाएगी
तो फिर चाऊमीन चोप्सी 
स्प्रिंग रोल भूल जाएगी 
खाले छोले और भटूरे 
बड़ा चटपटा मज़ा स्वाद का 
आओ डियर करें रास्ता 

गरम-गरम गुलाब जामुने
या फिर मूंग दाल का हलवा 
थोड़ा तू भी चख ,देखेगी 
देसी ब्रेकफास्ट का जलवा 
भूलेगी एस-प्रेसो कॉफी 
दही की लस्सी जो पी लेगी 
तो फिर इटली चाइनीज का 
स्वाद विदेशी सब भूलेगी 
मेरे देसी ब्रेकफास्ट का 
हर एक आइटम बड़ा खास था 
आओ डियर करें नाश्ता

मदन मोहन बाहेती घोटू 
पत्नी का मैके जाना 

मेरी पत्नी गई है मैके 
है हाल मेरे कुछ ऐसे 
सुख बोलूं या दुख बोलूं 
जो मुझे गई वो मुझको देके 

सुख उसे इसलिए कहता
मैं आजादी से रहता 
मैं अपने मन का मौजी
मन चाहे वैसा रहता

ना रोक ना टोका टाकी 
और ना अनुशासन बाकी 
स्वछंद गगन में उड़ता 
मै बंद पिंजरे का पांखी 

 बस एक-दो दिन या राती 
 आजादी मन को भाती 
फिर हर पल हर क्षण रह रह,
 पत्नी की याद सताती 

हो जाती शुरू मुसीबत 
खाने पीने की दिक्कत 
खुद खाओ खुद ही पकाओ 
बर्तन मांजो की आफत 

एकाकी मान ना लगता 
मैं रात रात भर जगता 
करवट बदलो तो बिस्तर 
खाली-खाली सा लगता 

बेगम जो नहीं तो गम है 
तन्हाई का आलम है 
बीवी को कहीं ना भेजो 
अब खा ली मैंने कसम है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

सोमवार, 1 सितंबर 2025

डर लगता एकाकीपन से 

रह गया अकेला जीवन में 
डर लगता एकाकीपन से 

मैं डरता बहुत बुढ़ापे से, 
मुझ पर छाये इस दुश्मन से 

रिमझिम रिमझिम कर बरस रहे 
इस मुझे चिढ़ाते सावन से 

देते हैं व्यर्थ सांत्वना जो,
 कुछ अपनों के अपनेपन से 

उचटी नींदें,बिखरे सपने,
नैनो से बहते अंसुवन से 

मालूम नहीं कब छूटेगा 
इस मोह माया के बंधन से 

डर लगता एकाकीपन से

मदन मोहन बाहेती घोटू 

प्रभु भवसागर से पार करो 


 हे प्यारे दीनानाथ प्रभो 

काटो मेरे सब पाप प्रभो 

श्री राम राम श्री कृष्ण कृष्ण

करता मैं हरदम जाप प्रभो 

प्रभु जी मेरा उद्धार करो 

और भवसागर से पार करो 


मैं मोह माया में फंसा हुआ 

मैं दुख पीड़ा से डसा हुआ 

आया में शरण तिहारी हूं 

और तुम्हें नमाता माथ प्रभो 

प्रभु जी मेरा उद्धार करो 

और भवसागर से पार करो 


क्षण क्षण जर्जर होता है तन 

दुनियादारी में उलझा मन 

मैं भटक रहा हूं इधर-उधर 

है अच्छे ना हालात प्रभो 

प्रभु जी मेरा उद्धार करो 

और भवसागर से पार करो 


सब पुण्य पाप जीवन भर के 

लाया हूं झोली में भर के 

माफ़ी देना ,दंडित करना ,

सब कुछ है तुम्हारे हाथ प्रभो 

प्रभु जी मेरा उद्धार करो 

और भवसागर से पार करो 


मैं भी संतान हूं तुम्हारी 

और तेरे प्यार का अधिकारी 

मेरे सर रख दो हाथ प्रभो 

और दे दो आशीर्वाद प्रभो 

प्रभु जी मेरा उद्धार करो 

और भवसागर से पार करो 


तुम भक्तों के दुख करते हो 

और मदद सभी की करते हो 

मैं हाथ जोड़कर मांग रहा 

दो मुझे मोक्ष सौगात प्रभो 

प्रभु जी मेरा उद्धार करो 

और भवसागर से पर करो 


मदन मोहन बाहेती घोटू

विश्व पत्र लेखन दिवस पर विशेष

 लाल डब्बे की पीर

ख़ून के आंसू लाल डब्बा रो रहा है 
जुल्म उसके साथ क्या-क्या हो रहा है 

था जमाना रौब जब उसका बड़ा था
चौराहों पर शान से रहता खड़ा था

उसकी लाली करती आकर्षित तभी तो 
खोल कर मुख करता आमंत्रित सभी को

अपने सारे सुखऔर दुख पत्र में लिख 
मेरे मुंह में डाल मुझको करते अर्पित  

बुरे या अच्छे तुम्हारे हाल सारे 
पहुंचाता था सभी अपनों को तुम्हारे 

प्रेमी अपने प्यार के सारे संदेशे 
डालते थे लिफाफे में बंद करके 

मेघदूतों की तरह उड़ान भर के 
पहुंचा देता पास में लख्ते जिगर के 

खबर दुःख की जैसे कोई के मरण की 
या खुशी नवजात कोई आगमन की 

कोई अर्जी भेजता था नौकरी की 
मेरी झोली संदेशों से ही भरी थी 

सुहागन सा लाल वस्त्रों से सजा था 
चिट्ठियों से हमेशा रहता लदा था 

वक्त ने लेकिन किया ऐसा नदारद 
कहीं भी आता नजर ना किसी को अब

अपनी सारी अहमियत वह खो रहा है 
ख़ून के आंसू लाल डब्बा रो रहा है

मदन मोहन बाहेती घोटू 

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