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रविवार, 4 मई 2025

मेरे भगवान,मेरे माता-पिता 

मेरे माता-पिता भगवान है 
मेरा शत-शत उन्हे प्रणाम है 

उनने मुझको जन्म दिया है 
पाल पोस कर बड़ा किया है 
मैं रोया तो दूध पिलाया 
गोदी में ले मुझे सुलाया 
मुझपे उनके बहुत एहसान है 
मेरे माता-पिता भगवान है 

उंगली पकड़ सिखाया चलना 
अक्षर ,गिनती ,लिखना,पढ़ना 
मुझे सिखाई ,दुनियादारी 
कितनी बातें प्यारी प्यारी 
दिया उनका सभी कुछ ज्ञान है 
मेरे माता-पिता भगवान है 

मेरे सुख-दुख के हर क्षण में 
मेरा साथ दिया जीवन में 
आगे बढ़कर दिया सहारा 
साथ निभाया ,भाग्य संवारा 
उनका हरदम ही गुणगान है 
मेरे माता-पिता भगवान है 

उनसे जो कुछ सीखा , पाया
काम बहुत जीवन में आया 
उनकी आशीषों का फल है 
मेरा जीवन हुआ सफल है 
उनने हरदम दिया वरदान है 
मेरे माता-पिता भगवान है 

मदन मोहन बाहेती घोटू 
पत्नी जी के जन्मदिन पर 

जन्मदिन आया तुम्हारा 
 प्यार तुमको ढेर सारा 
डूबते मेरे हृदय को, 
दिया तुमने आ सहारा 

आई तुम तकदीर बनकर 
मरुस्थल में नीर बनकर
 जिंदगी मेरी संवारी ,
मेरे दिल की हीर बनकर

 प्यार हो तुम प्रेयसी तुम
 मेरे दिल में आप बसी तुम 
जिंदगी महकाई तुमने,
मेरे जीवन की खुशी तुम

कई जन्मों के हम साथी 
मैं दिया हूं, तुम हो बाती 
रहो हरदम खुश हमेशा 
प्यार ऐसे ही लुटाती

मदन मोहन बाहेती घोटू 

पाबंदी 


 मिष्ठान और मीठे फल ,

खाने को यदि वर्जित है 

कभी-कभी चखने पर 

पाबंदी नहीं होनी चाहिए 


सुंदर जवान लड़कियों से,

 छेड़छाड़ ठीक नहीं 

मगर उन्हें तकने पर ,

पाबंदी नहीं होनी चाहिए 


दहेज का आदान-प्रदान,

 शादी में गलत रीत,

प्रेमपत्र के आदान प्रदान पर 

पाबंदी नहीं होनी चाहिए 


दिल तो बावरा है ही,

 जाने क्या-क्या चाहता है

आशिकाना मिजाज रखने पर 

पाबंदी नहीं होनी चाहिए 


मदन मोहन बाहेती घोटू 

शुक्रवार, 18 अप्रैल 2025

मैंने तुझको देख लिया है 


मैंने पंखुड़ी में गुलाब की , हंसती बिजली ना देखी थी 

बारह मास रहे जो छाई,ऐसी बदली ना देखी थी

ना देखे थे क्षीर सरोवर,उन में मछली ना देखी थी 

सारी चीजें नजर आ गई ,मैंने तुझको देख लिया है 


तीर छोड़ कर तने रहे वो तीर कमान नहीं देखे थे

पियो उमर भर पर ना खाली हो वो जाम नहीं देखे थे 

गालों की लाली में सिमटे , वो तूफान नहीं देखे थे 

सारी चीजें नजर आ गई मैंने तुझको देख लिया है 


ढूंढा घट घट, घट पर पनघट, घट पनघट पर ना देखे थे 

कदली के स्तंभों ऊपर ,लगे आम्र फल ना देखे थे 

सरिता की लहरों में मैंने,भरे समंदर ना देखे थे 

सारी चीजें नजर आ गई ,मैंने तुझको देख लिया है


मदन मोहन बाहेती घोटू

बुधवार, 16 अप्रैल 2025

मुक्तक 

1
अचानक एक दिन यूं ही तमाशा कर दिया मैंने 

 खुलासा करने वालों का खुलासा कर दिया मैंने

 वो तड़फे, तिलमिलाए पर,नहीं कुछ कर सके मेरा ,
बहुत बनते थे बस नंगा जरा सा कर दिया मैंने
2
बड़े तुम बोल,ना बोलो अपनी तारीफ मत हांको 

कभी भी दूसरों को अपने से छोटा नहीं आंकों

तुम्हारी क्या हकीकत है की दुनिया जानती है सब, 
फटा का गरेंबां हो जब, फटे दूजे में मत झांको 

मदन मोहन बाहेती घोटू

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