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गुरुवार, 29 अगस्त 2024

बुढ़ापे का कम्युनिकेशन 


इस बढ़ती हुई उम्र में यूं ,

कम हुआ हमारा कम्युनिकेशन 

कुछ गला हमारा बैठ गया ,

कुछ तुम भी ऊंचा सुनने लगे 


पहले जब भी हम लड़ते थे 

तो बोलचाल बंद हो जाती 

पर अब तो ऐसा लगता है 

हम रोज-रोज ही लड़ने लगे 


इस तरह खत्म है भूख हुई 

एक रोटी में पेट भर जाता 

या तो तुम पकाना भूल गई 

या फिर हम भूल गए खाना 


पहले तुम करती थी  फॉलो

अब हम करते तुमको फॉलो 

तुम कहती इस रस्ते पर चलो 

उसे रास्ते पर पड़ता जाना 


जितना तुम से बन सकता है 

तुम सेवा हमारी करती हो,

बढ़ता जा रहा दिनों दिन है 

हमने और तुममें अपनापन 


 मैं जीता सहारे तुम्हारे 

तुम जीती मेरे सहारे हो

देखो वृद्धावस्था लाई ,

जीवन में कितने परिवर्तन 


एकदूजे का एकदूजे बिन,

अब बिलकुल काम नहीं चलता 

अब प्यार हमारा या झगड़ा 

थमता है इस स्टाइल में 


हम एक दूजे से मुंह फेरे,

इस तरह रूठते रहते हैं,

तुम खुश अपने मोबाइल में 

मैं खुश अपने मोबाइल मे


मदन मोहन बाहेती घोटू

सोमवार, 12 अगस्त 2024

बूढ़े बुढ़िया और बुढापा 


देखो बूढ़ा अपनी बुढ़िया ,

को किस तरह सताता है 

काम धाम कुछ भी ना करता,

केवल जुबां हिलाता है 


जब से हुआ रिटायर घर में 

रहता बैठा ठाला है 

दिन में सात आठ बार चाहिए ,

उसे चाय का प्याला है 


थोड़ा बरसाती मौसम हो 

पकौड़ियां तलवाता है 

या स्विग्गी से मंगा समोसे 

चुपके-चुपके खाता है 


कभी चाहिए दही पापड़ी ,

छोला और भटूरा है 

आलू टिक्की, पानी पूरी 

का भी आशिक पूरा है 


गाजर हलवा, गरम जलेबी,

 खाना बहुत सुहाता है 

स्वीट टूथ है देख मिठाई 

मुंह पानी भर लाता है 


हालांकि यह सब खाने की 

लगी हुई पाबंदी है 

फिर भी आंख चुरा खाने की 

उसकी आदत गंदी है 


 सुबह-सुबह अखबार चाटता 

देख सीरियल टीवी में 

दिनभर की मिल गई सेविका 

उसको अपनी बीवी में 


हाथों में हर दम मोबाइल 

व्हाट्सएप पर चैट करें 

देर रात तक रहे जागता 

सोने में भी लेट करें 


कभी बोलना सर दुखता है 

थोड़ा तेल लगा दो तुम 

कभी बोलना दर्द पांव में 

थोड़े पैर दबा दो तुम 


कभी बैठकर बीते किस्से 

दोनों याद किया करते 

हर फंक्शन में ,दोनों सज कर 

खुलकर भाग लिया करते 


बुढ़िया बूढ़े को सहती है 

बूढ़ा बुढ़िया को सहता 

पूरा दिन भर एक दूजे का 

ख्याल हमेशा पर रहता 


कभी रूठना ,कभी झगड़ना

 मान मनौव्वल कभी-कभी 

बहुत अधिक भावुक हो करके 

रोने के पल कभी कभी 


दोनों में से पहले कौन 

जाएगा यह चिंता करना 

कैसे गुजरेगा एकाकी 

जीवन सोच सोच डरना 


कहता  जितना जीवन जीना 

क्यों ना मस्ती मौज करें 

मौत आनी है ,आएगी ही

उससे क्यों हर रोज डरें 


इस जीवन के बचे कुचे दिन 

शान रहे और ठाठ रहे 

इसी तरह मिल बूढ़े बुढ़िया 

वृद्धावस्था काट रहे


मदन मोहन बाहेती घोटू 

 

शनिवार, 10 अगस्त 2024

बूढ़ों की लोरी 


बिस्तर पर लेटें हैं बूढ़ा और बुढ़िया

 इनको सुलाने को आ जा तू निंदिया 


कभी दौरा खांसी का बुढिया को आता  

तो बूढ़ा उठ कर के पानी पिलाता 

कभी दर्द बूढ़े के पैरों में आया

पेनबाम बुढिया ने झट से लगाया 

कभी याद करते पुरानी वो बातें 

लाख जतन करते, सो नहीं पाते 

कैसे भी इनको ,सुला जा तू निंदिया 

इनको सुलाने को आजा तू निंदिया 


बूढ़ा उठ के बार बार बाथरूम जाता 

तकिए को बाहों में अपनी दबाता 

करवट बदलते ही रहते हैं दोनों 

बस ऐसे जगते ही रहते हैं दोनों 

कभी  पाठ हनुमान चालीसा करते 

कभी राम का नाम रह रह के जपते 

इनको भी सपने दिखा जा तू निंदिया इनको सुलाने आ जा तू निंदिया 


मदन मोहन बाहेती घोटू

कैसे मानू


 कैसे बात तुम्हारी लूं मैं मान जी 

शिवजी के हैं अवतार हनुमान जी 


प्रभु प्रकटे जब बन कर राम 

शंकर आए बन हनुमान 

रहे पहाड़ों में शिव शंकर 

तरु शाखा पर रहते वानर 

वानर नग्न ,मगर वाघांबर

शिवजी का परिधान जी 

कैसे बात तुम्हारी लूं मैं मान जी 

शिवजी के है अवतार हनुमान जी 


भूत पिशाच  शिवा के संगी 

इन्हें भगाए पर बजरंगी 

भूत पिशाच निकट नहीं आवे 

महावीर जब नाम सुनावे 

मुंडमाला को धारण करते

हैं शंकर भगवान जी 

कैसे बात तुम्हारी लूं मैं मान जी 

शिवजी के हैं अवतार हनुमान जी 


रावण शिव का भक्त परम था 

शिव के कारण उसमें दम था 

किंतु राम का वह दुश्मन था 

सीता जी का किया हरण था 

और राम के सच्चे सेवक,

सदा रहे हनुमान जी 

कैसे बात तुम्हारी लूं मैं मान जी 

शिवजी के हैं अवतार हनुमान जी 


शिवजी ने दो ब्याह रचाये 

ब्रह्मचारी हनुमान कहाये 

शिवजी चलते हैं नंदी पर 

डाल डाल पर उछले वानर 

एक तपस्वी,एक उपद्रवी

 कुछ भी नहीं समान जी 

कैसे बात तुम्हारी मैं लूं मान जी 

शिव जी के हैं अवतार हनुमान जी 


मदन मोहन बाहेती घोटू

हम हैं भक्त शिव शंकर के 


तेजोमय शिव प्रचंड 

मस्तक पर है त्रिपुंड 

और पुत्र वक्रतुंड जानिए 


पहने हैं वाघांबर 

चंद्र सुशोभित है सर 

ऐसे हैं गंगाधर मानिए 


गले पड़ी सर्पमाल 

और भाल है विशाल 

नंदी पर हैं सवार पहचानिए 


डमरू स्वर डम डम डम 

संग त्रिशूल है हरदम 

भोले को बम बम पुकारिए 


प्रकटी है गंगा जिनके सर से 

हम तो भगत है शिव शंकर के 

हर कोई बोले ,बम बम भोले 

प्रेम से बोले,बम बम भोले 


शिव शंकर  अविनाशी 

काशी के भी वासी 

भव्य तेज राशि ,पर भोले हैं 


उनसे हर कोई डरे 

यह तांडव नृत्य करें 

नेत्र तीसरा जब भी खोले हैं 


हिल जाते भू अंबर 

बन जाते प्रलयंकर 

आंखों से बरसाते शोले हैं 


जब हो जाते प्रचंड 

कर देते खंड-खंड 

शांत हो के फिर बनते भोले है


जिसे सब रहते हैं डर-डर के 

हम है भगत शिव शंकर के

 हर कोई बोले , बम बम भोले 

 प्रेम से हर बोले,बम बम भोले 


मदन मोहन बाहेती घोटू

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