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रविवार, 16 अप्रैल 2023

चवन्नी की पीड़ा 

कल मैंने जब गुल्लक खोली 
एक कोने में दबी दबी सी, सहमी एक चवन्नी बोली 
कल मैंने जब गुल्लक खोली 

आज तिरस्कृत पड़ी हुई मैं,इसमें मेरी क्या गलती थी 
मुझे याद मेरे अच्छे दिन ,जोर शोर से मैं चलती थी 
मेरी क्रय शक्ति थी इतनी, अच्छा खानपान होता था 
सवा रुपए की परसादी में ,मेरा योगदान होता था 
अगली सीट सिनेमाघर की ,क्लास चवन्नी थी कहलाती 
सस्ते में गरीब जनता को ,पिक्चर दिखला, दिल बहलाती 
जब छुट्टा होती तो मिलते चार इकन्नी , सोलह पैसे 
मेरी बड़ी कदर होती थी ,मेरे दिन तब ना थे ऐसे 
मार पड़ी महंगाई की पर, आकर मुझे अपंग कर दिया 
मेरी वैल्यू खाक हो गई ,मेरा चलना बंद कर दिया 
अब सैया दिल नहीं मांगते,ना उछालते कोई चवन्नी 
और भिखारी तक ना लेते, मुझे देखकर काटे कन्नी
पर किस्मत में ऊंच-नीच का चक्कर सदा अड़ा रहता है 
कभी बोलती जिसकी तूती, वह भी मौन पड़ा रहता है 
भोग रही मैं अपनी किस्मत ,जितना रोना था वह रो ली 
एक कोने में दबी दबी सी , सहमी एक चवन्नी बोली 
कल मैंने जब गुल्लक खोली

मदन मोहन बाहेती घोटू 
चिंतन 

कल की बातें, कड़वी खट्टी ,याद करोगे, दुख पाओगे 
आने वाले ,कल क्या होगा, यदि सोचोगे ,
घबराओगे 
जो होना है , सो होना है ,व्यर्थ नहीं चिंता में डूबो,
भरसक मजा ,आज का लो तुम , तभी चैन से जी पाओगे

घोटू 

बुधवार, 12 अप्रैल 2023

मैं पप्पू हूं 

लोग मुझे पप्पू कहते मैं,बचपन से सिरफिरा रहा हूं 
सभी मिलाते हैं हां में हां, मैं चमचों से घिरा रहा हूं

कभी नमाजी टोपी पहनी कभी जनेऊ मैं लटकाता 
अपना धर्म बदलता रहता, ब्राह्मण में खुद को बतलाता 
मैं लोगों को गाली देता, लोग मुझे गाली देते हैं एक प्रतिष्ठित खानदान की, बिगड़ी फसल मुझे कहते हैं 
लंबी-लंबी करी यात्रा ,फिर भी आगे ना बढ़ पाया 
ना तो कुर्सी पर चढ़ पाया, ना ही में घोड़ी चढ़ पाया 
मैंने जो भी काम किया है अपने मन का,
अपने ढंग का
अपनी जिद पर अड़ा रहा मैं ,हार गया सोने की लंका 
अंट शंट मै बकता रहता ,करता रहता हूं गुस्ताखी 
राजघराने का वारिस हूं ,राजा नहीं मांगते माफी 
 कितना लोगों ने समझाया क्षमा मांग लो,हो गई गलती 
लेकिन क्षमा मांग कर कैसे ,कर लूं अपनी मूंछें नीची 
प्राइम मिनिस्टर मैं बन जाऊं, मम्मी जी की यह हसरत है 
मैं विदेश में, बुरा बताता ,भारत को ,मेरी आदत है

अपनी हरकत से मैं अपनी ,पार्टी नीचे गिरा रहा हूं 
लोग मुझे पप्पू कहते मैं बचपन से सिरफिरा रहा हूं

घोटू
कल तक के अंगूर था मैं 

कल तलक अंगूर था मैं ,
आज किशमिश बन गया हूं 

कटा बचपन लताओं संग,
एक गुच्छे में लटकता 
संग में परिवार के मैं ,
समय के संग रहा बढ़ता 

और एक दिन पक गया जब ,
साथियों का साथ छूटा 
त्वचा चिकनी और कसी थी 
स्वाद भी पाया अनूठा 

अगर थोड़ा और पकता 
और मेरा रस निकलता 
समय के संग वारूणी बन,
 मैं नशीला जाम बनता 

उम्र ने लेकिन सुखाया 
वारुणी तो बन न पाया 
बना किशमिश और मीठा ,
सुहाना सा रूप पाया 

तब था जीवन चार दिन का,
 हुई लंबी अब उमर है 
 आदमी में और मुझ में, 
 उम्र का उल्टा असर है 

 आदमी की उम्र बढ़ती 
 अंत उसका निकट आता 
 मुझ में जब आता बुढ़ापा 
उमर है मेरी बढ़ाता 

 उम्र का यह फल मिला है
  अब नहीं मैं फल रहा हूं
  लोग मेवा मुझे कहते,
  सभी के मन भा रहा हूं

  डर न सड़ने, बिगड़ने का,
  स्वाद से मैं सन गया हूं
  कल तलक अंगूर था मैं,
  आज किशमिश बन गया हूं

मदन मोहन बाहेती घोटू 

सीख ले अब तू ढंग से सोना 

भाग दौड़ में जीवन उलझा, लगा कमाने में तू पैसा 
रत्ती भर भी चैन नहीं है रहता है बेचैन हमेशा 
ढंग से अपने मनमाफिक तू, दो रोटी भी ना खा पाता 
सारा दिन भर किसके खातिर ,मेहनत करता और कमाता 
तुझे रात भर, नींद ना आती, सोता करवट बदल बदल कर
बहुत हुआ माया का चक्कर ,अब तो बस कर अब तो बस कर 
चिंताओं से व्यर्थ ग्रसित तू ,होगा वो ही जो है होना 
बहुत हो गया सोना सोना, सीख ले अब तू ढंग से सोना 

बहुत व्यस्त तेरा जीवन तू हरदम रहता परेशान है 
तेरी सारी बीमारी का ,ढंग से सोना ही निदान है 
अगर चैन से नींद आएगी, तुझको बड़ा सुकून मिलेगा 
सुबह उठेगा खुद को हल्का और ताजा महसूस करेगा 
तेरा अगला पूरा दिन ही, रंग, उमंग से भर जाएगा 
नया सवेरा ,तेरे जीवन में खुशियां भर कर लाएगा 
मनचाही भरपूर नींद लें, बंद कर रोज-रोज का रोना 
बहुत हो गया सोना सोना, सीख ले अब तू ढंग से सोना

मदन मोहन बाहेती घोटू

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