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शनिवार, 1 अप्रैल 2023

पैसे वाले 

कई धनपति ,जो कहलाते पैसे वाले 
उनके घर की अगर तिजोरी आप खंगाले 
मिल जाएंगे सोना ,चांदी ,हीरा ,मोती 
और गड्डियां ,कितनी बड़े-बड़े नोटों की 
किंतु नतीजा तुम्हें बहुत यह अचरज देगा 
एक पैसे का ,एक सिक्का भी नहीं मिलेगा

घोटू 
कहानी एक कौवे की 

कौवे की मां चाह रही थी बेटा उसका हंस बने

 फिर से आसमान का राजा,उसका पूरा वंश बने
 
 धोया देश विदेशों में जा, रंग सफेद न हो पाया
 
 और जब भी मौका आया ,वो कांव-कांव ही चिल्लाया
 
घोटू 

बुधवार, 29 मार्च 2023

रह रह कर आता याद मुझे,
 वह बीता वक्त जवानी का,
  कितना प्यारा और मजेदार,
  वह यौवन वाला दौर ही था 
  
  मैं बाइक पर राइड करता ,
  तुम कमर पकड़ चिपकी रहती 
  टूटी सड़कों पर ड्राइव का 
  वह आनंद भी कुछ और ही था
  
  ऐसे में भी जब कभी कभी 
  पड़ती बारिश की बौछारें,
  पानी से जाते भीग भीग,
   सब कपड़े मेरे तुम्हारे 
   तब सड़क किनारे रुक करके
   एक झुग्गी वाली होटल में
     चुस्की ले गरम चाय पीना ,
   करता आनंद विभोर ही था 
   कितना प्यारा और मजेदार
    वह यौवन वाला दौर ही था 
    
छुट्टी के दिन तुम काम में व्यस्त 
घरभर को व्यवस्थित करती थी 
मैं प्याज पकोड़े तल अपने 
हाथों से तुम्हें खिलाता था 

तुम गरम पकोड़े खाती थी 
और आधा मुझे खिलाती थी 
तो संग पकोड़ो के अधरों 
का स्वाद मुझे मिल जाता था

संध्या को निकला करते थे
 हम तो तफ़री करने इधर उधर 
 सड़कों पर ठेले वालों से
  खा लेते थे कुछ चटर-पटर 
  वह भेल पुरी ,पानी पुरी 
  और स्वाद भरी चटपटी चाट 
  वो गरम जलेबी बलखाती ,
  गाजर हलवा चितचोर ही था 
  कितना प्यारा और मजेदार
  वो यौवन वाला दौर ही था 
  
हम पिक्चर जाया करते थे 
और खाया करते पॉपकॉर्न,
 जब भी कुछ मौका मिल जाता 
 कुछ छेड़ाखानी करते थे 
 
और चांदनी रातों में छत पर
 तुम चांद निहारा करती थी
  मैं तुम्हें निहारा करता था 
  थोड़ी मनमानी करते थे 
  
सर्दी में मज़ा धूप का ले
करते थे वक्त गुजारा हम 
बेफिक्री से और खुशी-खुशी 
करते थे मस्ती मारा हम 
वह दिन भी कितने प्यारे थे 
राते कितनी रंगीली थी
 तेरी संगत की रंगत में 
 मन मांगा करता मोर ही था 
 कितना प्यारा और मजेदार 
 वह यौवन वाला दौर ही था

मदन मोहन बाहेती घोटू 
इस बढी उम्र में वृद्ध लोग इस तरह गुजारा करते हैं 
मित्रों के संग बैठ मंडली में, वो गपशप मारा करते हैं 
कुछ जैसे तैसे भी कटता ,वैसे ही वक्त काटते हैं 
कुछ सुबह चाय के प्याले संग, पूरा अखबार चाटते हैं 
कुछ सुबह-शाम घूमा करते, रखते सेहत का ख्याल बहुत 
कुछ त्रस्त बहू और बेटों से ,घर में रहते बेहाल बहुत 
कुछ पोते पोती को लेकर, उनको झूला झुलवाते हैं 
कुछ रोज शाम झोला भरकर, सब्जी और फल ले आते हैं
कुछ मंदिर जाते सुबह शाम, और भजन कीर्तन करते हैं 
कुछ टीवी से चिपके रहकर ही जीवन व्यापन करते हैं 
कुछ हाथों मोबाइल रहता, जो नहीं छूटता है पल भर 
कुछ आलस मारे दिन भर ही ,लेटे रहते हैं बिस्तर पर 
कुछ करते याद जवानी के बीते दिन, खोते ख्वाबों में 
कुछ होते भावुक और दुखी , खो जाते हैं जज्बातों में 
कुछ उम्र जनित पीड़ाओं से, हरदम रहते हैं परेशान 
कुछ लोगों को देते प्रवचन और बांटा करते सदा ज्ञान 
कुछ तीरथ मंदिर धर्मस्थल जा, दर्शन लाभ लिया करते 
कुछ पर्वों में ,मेलों में जा, गंगा स्नान किया करते 
कुछ कथा भागवत सुनते हैं और अपना पुण्य बढ़ाते हैं 
कुछ करते हैं प्रसाद ग्रहण और भंडारॉ में खाते हैं 
कुछ की खो जाती याददाश्त जाते लोगों के भूल नाम 
 कुछ सेहत को रखने कायम, टॉनिक लेते हैं सुबह शाम 
 कुछ बैठे रखते है हिसाब ,अपनी जोड़ी सब दौलत का 
 कुछ प्राणायाम योग करते और ख्याल रखें निज सेहत का 
 होती है उमर विरक्ति की,पर कुछ मोह माया में फंसते
 तनहाई में तड़पा करते और लाफिंग क्लब में जाकर हंसते 
 पर जितनी अधिक उमर बढ़ती,जीने की ललक बढ़ी जाती 
 चाहे कम दिखता ,सुनता है ,तन मन में कमजोरी आती
 कितने ही अनुभव पाए है,जीवन में कर मारामारी
 पर वृद्धावस्था का अनुभव, पड़ता हर अनुभव पर भारी

मदन मोहन बाहेती घोटू 
बचपन और बुढ़ापे की यह बात निराली होती है 
उगते और ढलते सूरज की एक सी लाली होती है 
 होता है स्वभाव एक जैसा, वृद्धों का और बालक का 
क्योंकि जवानी सदा न रहती,अंत बुढ़ापा है सबका 
जैसे हमको आया बुढ़ापा,कभी तुम्हे भी आयेगा 
जो पीड़ा हम भोग रहें हैं,तुमको भी दिखलाएगा 
हमने तुम पर प्यार लुटाया, बचपन में जितना ज्यादा
 हमें बुढ़ापे में तुम लौटा देना बस उसका आधा 
क्योंकि उस समय हमको होगी ,जरूरत प्यार तुम्हारे की 
 तन अशक्त को आवश्यकता होगी किसी सहारे की
जो जिद तुम बचपन में करते यदि हम करें बुढ़ापे में 
तो तुम हम पर खफा ना होना, रहना अपने आपे मे 
तिरस्कार व्यवहार न करना हमको पीड़ित मत करना 
तुमसे यही अपेक्षा है कि हमे उपेक्षित मत करना

मदन मोहन बाहेती घोटू

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