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शुक्रवार, 28 अक्टूबर 2022

 अग्नि पूजन 
 
दीपावली ,दशहरा ,होली,
 है ये उत्सव प्रमुख हमारे 
 बड़े चाव उत्साह लगन से 
 इन्हें मनाते हैं हम सारे 
 दीपावली को दीप जलाते 
 हरेक दशहरा, जलता रावण 
 दहन होलिका का होली में 
 हर त्यौहार अग्नि का पूजन
 हवन यज्ञ ,अग्नि का वंदन,
 करो आरती ,जलती बाती 
 फेरे सात लिए अग्नि के 
जन्मों की जोड़ी बन जाती 
पका अन्न,अग्नि से खाते ,
जो देता जीवन भर पोषण 
और अंत में इस काया का 
अग्नि में संपूर्ण समर्पण 
मानव जीवन के पल पल में 
सुख हो, दुख हो,उत्सव ,खुशियां,
 अग्नि संचालित करती है 
 जीवन की सारी गतिविधियां

मदन मोहन बाहेती घोटू

मंगलवार, 25 अक्टूबर 2022

  प्रतिबंधित जीवन 
 
मुझको मेरी बीमारी ने ,कैसे दिन दिखलाए
ये मत खाओ,वो मत खाओ ,सौ प्रतिबंध लगाये 
 जितना ज्यादा प्रतिबंध है , उतना मन ललचाए 
कितने महीने बीत गए हैं ,चाट चटपटी खाए गरम-गरम आलू टिक्की की, खुशबू सौंधी प्यारी 
भाजी और पाव खाने को तरसे जीभ हमारी 
फूले हुए गोलगप्पे भर खट्टा मीठा पानी 
ठंडे ठंडे दही के भल्ले, पापड़ी चाट सुहानी
प्यारी भेलपुरी बंबइया,बड़ा पाव की जोड़ी 
भूल न पाए भटूरे छोले, जिह्वा बड़ी निगोड़ी 
चीनी चाऊमीन के लच्छे और मूंग के चीले 
गरम समोसे और कचोरी ,बर्गर बड़े रसीले 
कितने दिन हो गए चखे ना मिष्ठानों को भूले 
गरम जलेबी ,गाजर हलवा ,रसमलाई रसगुल्ले 
कब फिर से यह स्वाद चखेंगे,तरसे जीभ हमारी 
हे प्रभु शीघ्र ठीक कर दे तू मेरी सब बीमारी 
हटे सभी प्रतिबंध ठीक से खुल कर जी भर खाऊं
सवा किलो बूंदी के लड्डू का प्रसाद चढ़ाऊं

मदन मोहन बाहेती घोटू
  

रविवार, 9 अक्टूबर 2022

मास्क चढ़ा है  

असली चेहरा नजर न आता 
हर चेहरे पर मास्क के चढ़ा है 
मुंह से राम बोलने वाला ,
छुरी बगल के लिए खड़ा है 

ऊपर जो तारीफ कर रहा 
पीछे से देता है गाली 
कहता है वह सत्यवान है,
 पर करता करतूतें काली 
 खुद को दूध धुला बतला कर ,
महान बताने लिए अड़ा है 
असली चेहरा नजर आता
 हर चेहरे पर मास्क चढ़ा है 
 
तुम्हारा शुभचिंतक बन कर 
 करे तुम्हारी ऐसी तैसी 
 मुश्किल अब पहचान हो गई 
 कौन है बैरी, कौन हितेषी 
 बहुत दोगले इन लोगों से,
 हमको खतरा बहुत बड़ा है
 असली चेहरा नज़र न आता
 हर चेहरे पर मास्क चढ़ा है

होते लोग बहुत शातिर कुछ,
पर दिखते हैं सीधे सादे
औरों का नुक्सान न देखे,
स्वार्थ सिर्फ अपना ही साधे
ऐसे मतलब के मारों से,
किसका पाला नहीं पड़ा है
असली चेहरा नज़र न आता ,
हर चेहरे पर मास्क चढ़ा है

मदन मोहन बाहेती घोटू 
 
 

शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2022

मेरी जिव्हा, मेरी बैरन

मेरे कितने दोस्त बन गए 
मेरे दुश्मन, इसके कारण 
मेरी जिव्हा, मेरी बैरन 

कहने को तो एक मांस का ,
टुकड़ा है यह बिन हड्डी का 
पर जब यह बोला करती है 
बहुत बोलती है यह तीखा 
जब चलती ,कैची सी चलती
 रहता खुद पर नहीं नियंत्रण
 मेरी जिव्हा, मेरी बैरन
 
 बत्तीस दातों बीच दबी यह,
 रहती है फिर भी स्वतंत्र है 
 मानव की वाणी ,स्वाद का ,
 यही चलाती मूल तंत्र है 
 मधुर गान या कड़वी बातें,
  इस पर नहीं किसी का बंधन
  मेरी जिव्हा मेरी बैरन

बड़ी स्वाद की मारी है यह,
 लगता कभी चाट का चस्का 
 और मधुर मिष्ठान देखकर,
  ललचाया करता मन इसका
  मुंह में पानी भर लाती है,
  टपके लार,देख कर व्यंजन
   मेरी जिव्हा, मेरी बैरन
 
 यह बेचारी स्वाद की मारी,
 करती है षठरस आस्वादन 
 ठंडी कुल्फी ,गरम जलेबी 
 सभी मोहते हैं इसका मन
एक जगह रह,बंध खूंटे से 
विचरण करती रहती हर क्षण 
मेरी जिव्हा, मेरी बैरन

 कभी फिसल जाती गलती से ,
 कर देती है गुड़ का गोबर 
 कभी मोह लेती है मन को,
  मीठे मीठे बोल, बोल कर
  देती गाली, कभी बात कर 
  चिकनी चुपड़ी, मलती मक्खन
   मेरी जिव्हा,मेरी बैरन

मदन मोहन बाहेती घोटू
प्रतिबंधित खानपान 

मुझको मेरी बीमारी ने
 कैसे दिन दिखलाए
 ये मत खाओ ,वो मत खाओ ,
 सब प्रतिबंध लगाए
 जितना ज्यादा रिस्ट्रिक्शन है ,
 उतना मन ललचाए 
 कितने महीने बीत गए हैं ,
 चाट चटपटी खाए 
 गरम गरम आलू टिक्की की,
  खुशबू सौंधी प्यारी 
  भाजी और पाव खाने को ,
  तरसे जीभ हमारी 
  फूले हुए गोलगप्पे भर ,
  खट्टा मीठा पानी 
  ठंडे ठंडे दही के भल्ले 
  पापड़ी चाट सुहानी 
  प्यारी भेलपुरी बंबइया 
  बड़ा पाव की जोड़ी 
  भूल न पाए भटूरे छोले 
  जिव्हा बड़ी चटोरी 
  चीनी चाऊमीन के लच्छे ,
  और मूंग के चीले 
  गरम समोसे और कचोरी ,
  बर्गर बड़े रसीले 
  कितने दिन हो गए चखे ना 
  मिष्ठानो को भूले 
  गरम जलेबी, गाजर हलवा,
   रसमलाई, रसगुल्ले 
   कब से फिर वे स्वाद चखेंगे,
   तरसे जीभ हमारी 
   हे प्रभु शीघ्र ठीक कर दे तू 
   मेरी सभी बीमारी
   हटे सभी प्रतिबंध ठीक से 
   खुल कर ,जी भर खाऊं 
   सवा किलो बूंदी के लड्डू का,
    मैं परसाद चढ़ाऊं

मदन मोहन बाहेती घोटू 

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