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रविवार, 9 अक्टूबर 2022

मास्क चढ़ा है  

असली चेहरा नजर न आता 
हर चेहरे पर मास्क के चढ़ा है 
मुंह से राम बोलने वाला ,
छुरी बगल के लिए खड़ा है 

ऊपर जो तारीफ कर रहा 
पीछे से देता है गाली 
कहता है वह सत्यवान है,
 पर करता करतूतें काली 
 खुद को दूध धुला बतला कर ,
महान बताने लिए अड़ा है 
असली चेहरा नजर आता
 हर चेहरे पर मास्क चढ़ा है 
 
तुम्हारा शुभचिंतक बन कर 
 करे तुम्हारी ऐसी तैसी 
 मुश्किल अब पहचान हो गई 
 कौन है बैरी, कौन हितेषी 
 बहुत दोगले इन लोगों से,
 हमको खतरा बहुत बड़ा है
 असली चेहरा नज़र न आता
 हर चेहरे पर मास्क चढ़ा है

होते लोग बहुत शातिर कुछ,
पर दिखते हैं सीधे सादे
औरों का नुक्सान न देखे,
स्वार्थ सिर्फ अपना ही साधे
ऐसे मतलब के मारों से,
किसका पाला नहीं पड़ा है
असली चेहरा नज़र न आता ,
हर चेहरे पर मास्क चढ़ा है

मदन मोहन बाहेती घोटू 
 
 

शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2022

मेरी जिव्हा, मेरी बैरन

मेरे कितने दोस्त बन गए 
मेरे दुश्मन, इसके कारण 
मेरी जिव्हा, मेरी बैरन 

कहने को तो एक मांस का ,
टुकड़ा है यह बिन हड्डी का 
पर जब यह बोला करती है 
बहुत बोलती है यह तीखा 
जब चलती ,कैची सी चलती
 रहता खुद पर नहीं नियंत्रण
 मेरी जिव्हा, मेरी बैरन
 
 बत्तीस दातों बीच दबी यह,
 रहती है फिर भी स्वतंत्र है 
 मानव की वाणी ,स्वाद का ,
 यही चलाती मूल तंत्र है 
 मधुर गान या कड़वी बातें,
  इस पर नहीं किसी का बंधन
  मेरी जिव्हा मेरी बैरन

बड़ी स्वाद की मारी है यह,
 लगता कभी चाट का चस्का 
 और मधुर मिष्ठान देखकर,
  ललचाया करता मन इसका
  मुंह में पानी भर लाती है,
  टपके लार,देख कर व्यंजन
   मेरी जिव्हा, मेरी बैरन
 
 यह बेचारी स्वाद की मारी,
 करती है षठरस आस्वादन 
 ठंडी कुल्फी ,गरम जलेबी 
 सभी मोहते हैं इसका मन
एक जगह रह,बंध खूंटे से 
विचरण करती रहती हर क्षण 
मेरी जिव्हा, मेरी बैरन

 कभी फिसल जाती गलती से ,
 कर देती है गुड़ का गोबर 
 कभी मोह लेती है मन को,
  मीठे मीठे बोल, बोल कर
  देती गाली, कभी बात कर 
  चिकनी चुपड़ी, मलती मक्खन
   मेरी जिव्हा,मेरी बैरन

मदन मोहन बाहेती घोटू
प्रतिबंधित खानपान 

मुझको मेरी बीमारी ने
 कैसे दिन दिखलाए
 ये मत खाओ ,वो मत खाओ ,
 सब प्रतिबंध लगाए
 जितना ज्यादा रिस्ट्रिक्शन है ,
 उतना मन ललचाए 
 कितने महीने बीत गए हैं ,
 चाट चटपटी खाए 
 गरम गरम आलू टिक्की की,
  खुशबू सौंधी प्यारी 
  भाजी और पाव खाने को ,
  तरसे जीभ हमारी 
  फूले हुए गोलगप्पे भर ,
  खट्टा मीठा पानी 
  ठंडे ठंडे दही के भल्ले 
  पापड़ी चाट सुहानी 
  प्यारी भेलपुरी बंबइया 
  बड़ा पाव की जोड़ी 
  भूल न पाए भटूरे छोले 
  जिव्हा बड़ी चटोरी 
  चीनी चाऊमीन के लच्छे ,
  और मूंग के चीले 
  गरम समोसे और कचोरी ,
  बर्गर बड़े रसीले 
  कितने दिन हो गए चखे ना 
  मिष्ठानो को भूले 
  गरम जलेबी, गाजर हलवा,
   रसमलाई, रसगुल्ले 
   कब से फिर वे स्वाद चखेंगे,
   तरसे जीभ हमारी 
   हे प्रभु शीघ्र ठीक कर दे तू 
   मेरी सभी बीमारी
   हटे सभी प्रतिबंध ठीक से 
   खुल कर ,जी भर खाऊं 
   सवा किलो बूंदी के लड्डू का,
    मैं परसाद चढ़ाऊं

मदन मोहन बाहेती घोटू 

गुरुवार, 6 अक्टूबर 2022

रावण दहन 

एक कागज का पुतला बनकर,
 खड़ा हुआ था वह बेचारा 
 तुमने उसमें आग लगा दी 
 और कहते हो रावण मारा 
 घूमे बच्चों के संग मेला ,
 खा ली थोड़ी चाट पकौड़ी 
 थोड़ा झूल लिए झूले पर ,
 यूं ही तफरी कर ली थोड़ी 
 घर में कुछ पकवान बनाकर 
 या होटल जा करते भोजन 
 ऐसे ही कितने वर्षों से 
 मना रहे हैं दशहरा हम 
 पर वास्तव में इसीलिए क्या 
 यह त्योहार मनाया जाता 
  पाप हारता ,पुण्य जीतता ,
  विजयादशमी पर्व कहाता
  हो विद्वान कोई कितना भी,
  वेद शास्त्रों का हो ज्ञाता
  पर यदि होती दुष्ट प्रवृत्ति ,
  अहंकार,वो मारा जाता 
रावण पुतला है बुराई का ,
और प्रतीक है अहंकार का 
काम क्रोध और लोभ मोह का 
मद और मत्सर, सब विकार का 
 इनका दहन करोगे तब ही
 होगा सही दहन रावण का 
 सच्चा तभी दशहरा होगा ,
 राम जगाओ ,अपने मन का 
 जब सच्चाई और अच्छाई 
 अंत बुराई का कर देगी 
 तभी विजेता कहलाओगे 
 विजयादशमी तभी बनेगी 
 तब ही तो सच्चे अर्थों में ,
 रावण को जाएगा मारा 
  कागज पुतला दहन कर रहे
  और कहते हो रावण मारा

मदन मोहन बाहेती घोटू 

सोमवार, 3 अक्टूबर 2022

नेता उचाव

अभी तलक मैं बिका नहीं हूं,
 पर जल्दी बिकने वाला हूं
 टीवी की हर चैनल पर अब,
 मैं जल्दी दिखने वाला हूं
  
अधकचरी विधानसभा का, 
चुना गया मैं एक विधायक 
लड़ा चुनाव स्वतंत्र ,जीतकर 
आज बन गया हूं मैं लायक 
 मिली जुली सरकार बने तो,
 होगी अहम भूमिका मेरी 
 पक्ष-विपक्ष कर रहे दोनों 
 इसी लिए हैं हेरा फेरी 
 मुझे पता ,अपने पाले में 
 चाह रहे हैं दोनो लाना
 मूल्यवान में हुआ अकिंचन,
 दोनों डाल रहे हैं दाना
 तोल मोल चल रहा अभी है 
  मूल्यांकन करना है बाकी 
  नहीं  बिकूंगा जब तक मेरी 
  कीमत सही न जाए आंकी
  मेरा एक वोट कर सकता, 
  है सत्ता में परिवर्तन भी 
  मुझको कई करोड़ चाहिए,
  और मंत्री की पोजीशन भी 
  मैं रिसोर्ट में एश कर रहा ,
   मुझको दिखता सब नाटक है 
   सत्ता के गलियारों में हैं ,
   रोज हो रही उठापटक है 
   मेरा भाव लगाने वाले ,
   कब देते मनचाहा ऑफर
   मेरे इधर उधर होने से ,
   बदल जाएगा सारा मंजर
   धोखा अगर दिया कोई ने,
    तो मैं ना टिकने वाला हूं
    अभी तलक मैं बिका नहीं हूं,
    पर जल्दी बिकने वाला हूं
     टीवी की हर चैनल पर अब
      मैं जल्दी दिखने वाला हूं

मदन मोहन बाहेती घोटू 

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