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गुरुवार, 12 अगस्त 2021

ऐसा साज मुझे दे दो तुम

 जब भी दिल के तार छिड़े तो ,
 निकले मधुर रागिनी मोहक ,
 जो अंतर तक को छू जाए 
 ऐसा साज  मुझे दे दो तुम 
 बीती खट्टी मीठी यादों,
 के सब पन्ने बिखरे बिखरे 
 उन्हें समेट, सजा फिर से,
 जिल्दसाज ऐसा दे दो तुम  
  
भटक रहे बादल से मन को, घनीभूत कर जो बरसा दे सूखे अपनेपन की खेती ,को नवजीवन दे, सरसा दे शुष्क पड़ी जो मन की सरिता, बह निकले ,उसमें कल कल हो 
है सुनसान पड़ी यह बस्ती, दिल की, इसमें कुछ हलचल हो
 इस दुनिया में बहुत त्रसित हूं
 परेशान हूं, रोग ग्रसित हूं,
  मेरे मुरझाए चेहरे पर 
  खुशियां आज मुझे दे दो तुम 
  जो अंतरतर तो छू जाए ,
  ऐसा साज मुझे दे दो तुम 
  
एक जमाना था जब हम भी, फूलों से महका करते थे उड़ते थे उन्मुक्त गगन में, पंछी से चहका करते थे 
सूरज जैसा प्रखर रूप था , धूप पहुंचती आंगन आंगन सावन सूखे, हरे न भादौ, मतवाला था हर एक मौसम फिर से फूल खिले बासंती 
फिर आए जीवन में मस्ती 
खुशी भरे जीवन जीने का,
 वो अंदाज मुझे दे दो तुम 
 जो अंतरतर को छू जाए ,
 ऐसा साज मुझे दे दो तुम

मदन मोहन बाहेती घोटू
मैंने जीना सीख लिया है 

यह बीमारी वह बीमारी 
रोज-रोज की मारामारी 
यह मत खाओ, वह मत खाओ 
मुंह पर अपने मास्क लगाओ 
गोली ,कैप्सूल ,इंजेक्शन 
खाओ दवाएं, फीका भोजन
 हर एक चीज पर थी पाबंदी
 पाचन शक्ति पड़ गई मंदी
 मेरी हालत बुरी हो गई 
 चेहरे की मुस्कान खो गई 
 मुझे प्यार से समझा तुमने,
 मेरे मन को ठीक किया है 
 मैंने जीना सीख लिया है 
   
तुमने बोला ,सोच सुधारो 
यू मत अपने मन को मारो 
मनमाफिक, सब खाओ पियो 
लेकिन घुट घुट कर मत जियो 
तन अनुसार ,ढाल लो तुम मन 
आवश्यक पर कुछ अनुशासन
 मज़ा सभी चीजों का लो पर 
 रखो नियंत्रण तुम अपने पर
 मौज मस्तियां खूब मनाओ 
 मित्रों के संग नाचो गाओ 
 नई फुर्ती और नए जोश ने ,
 कर मुझ को निर्भीक दिया है 
 मैंने जीना सीख लिया है 
  
जिस दिन से यह शिक्षा पाई 
नव जीवन शैली अपनाई 
बीमारी सारी गायब है 
चेहरे पर आई रौनक है 
फुर्तीला हो गया चुस्त हूं
लगता है मैं तंदुरुस्त हूं 
मेरी सोच सकारात्मक है
और जीने की बढ़ी ललक है 
बाकी जितनी बची उमर है 
अब जीना सुख से ,हंसकर है 
मेरे मन के वाद्य यंत्र ने ,
सीख गया संगीत लिया है 
मैंने जीना सीख लिया है

मदन मोहन बाहेती घोटू

मंगलवार, 10 अगस्त 2021

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शब्दों का फंडा 

उनके घर क्या कार आ गई अब उनका आकार बढ़ गया  
जबसे उनके नयन लड़े हैं ,आपस में है प्यार बढ़ गया 
पहन शेरवानी इठला वो ,खुद को शेर समझ बैठे हैं 
घर में कुर्सी मेज नहीं है, मेजबान पर बन बैठे हैं 
विष का वास मुंह में जिनके हम उनका विश्वास न करते
 सदा चार की बात करें जो ,सदाचार व्यवहार न करते 
असरदार वह नहीं जरा भी, फिर भी है सरकार कहाते 
हारे ना,वो जीत गए हैं ,फिर भी हार गले लटकाते
है मकान तो उनका पक्का, किंतु कान के वह है कच्चे 
चमचे से खाते ,खिलवाते,पर खुद कहलाते हैं चमचे 
जब से उनके भाव बढ़े हैं ,हमको भाव नहीं देते हैं 
उड़ना जब से सीख गए हैं, सबके होश उड़ा देते हैं 
होता मन में मैल अगर तो मेल नहीं मिलता है मन का 
टांके भिड़े सिले ना फिरभी चालू हुआ सिलसिला उनका 
कुछ भी उनमें नहीं नया रे ,पर है उनके बारे न्यारे 
भारी सर तो चल सकता है,भारी पैर न चले जरा रे 
नाम लौंग पर बड़ी शार्ट है ,तेज हीन पर तेज पान है 
न तो दाल है ना चीनी है ,दालचीनी का मगर नाम है कहते हैं पूरी उसको पर ,आधी भी है खाई जाती 
और गुलाबजामुन में खुशबू ना गुलाब,जामुन की आती  ना अजवाइन में वाइन है नाशपति में नहीं पति है 
और पपीता बिना पिता के,हर एक शब्द की यही गति है
कहते जिसको गरममसाला,वो बिलकुल ठंडा होता है
शब्द गुणों के डबल रोल का ,ऐसा ही फंडा होता है

मदन मोहन बाहेती घोटू

शब्दों का फंडा 

उनके घर क्या कार आ गई अब उनका आकार बढ़ गया  जबसे उनके नयन लड़े हैं ,आपस में है प्यार बढ़ गया पहन शेरवानी इठला वो ,खुद को शेर समझ बैठे हैं 
घर में कुर्सी मेज नहीं है, मेजबान पर बन बैठे हैं 
विष का वास मुंह में जिनके हम उनका विश्वास न करते
 सदा चार की बात करें जो ,सदाचार व्यवहार न करते असरदार वह नहीं जरा भी, फिर भी है सरकार कहाते हारे ना,वो जीत गए हैं ,फिर भी हार गले लटकाते
है मकान तो उनका पक्का, किंतु कान के वह है कच्चे चमचे से खाते ,खिलवाते,पर खुद कहलाते हैं चमचे 
जब से उनके भाव बढ़े हैं ,हमको भाव नहीं देते हैं 
उड़ना जब से सीख गए हैं, सबके होश उड़ा देते हैं 
होता मन में मैल अगर तो मेल नहीं मिलता है मन का 
टांके भिड़े सिले ना फिरभी चालू हुआ सिलसिला उनका कुछ भी उनमें नहीं नया रे ,पर है उनके बारे न्यारे 
भारी सर तो चल सकता है,भारी पैर न चले जरा रे 
नाम लौंग पर बड़ी शार्ट है ,तेज हीन पर तेज पान है 
न तो दाल है ना चीनी है ,दालचीनी का मगर नाम है कहते हैं पूरी उसको पर ,आधी भी है खाई जाती 
और गुलाबजामुन में खुशबू ना गुलाब,जामुन की आती  ना अजवाइन में वाइन है नाशपति में नहीं पति है 
और पपीता बिना पिता के,हर एक शब्द की यही गति है
कहते जिसको गरममसाला,वो बिलकुल ठंडा होता है
शब्द गुणों के डबल रोल का ,ऐसा ही फंडा होता है

मदन मोहन बाहेती घोटू

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