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गुरुवार, 5 अगस्त 2021

पत्नी जी और उनका मोबाइल 

प्रियतमे
कई बार यह शिकायत रहती है तुम्हें 
कि तुम्हारा मोबाइल फोन 
बार-बार हो जाता है मौन 
कई बार ठीक से आवाज भी नहीं सुनाती है 
उसकी बैटरी जल्दी डिस्चार्ज हो जाती है 
कम मेमोरी है और बॉडी पर स्क्रेच भी है आ गए आजकल बाजार में रोज आ रहे हैं मॉडल नए
और यह मुआ खराब होकर तंग करता है, मुसीबत है अब मुझे नए मोबाइल की जरूरत है 
हमने कहा डियर 
मैं देखता हूं कि दिन भर 
तुम अपने मोबाइल को उंगलियों से सहलाती रहती हो कभी गाल से चिपकाती रहती हो 
होठों के पास ले जाकर फुसफुसा कर बात करती हो 
और वह भी दिन रात करती हो 
अब तुम ही बताओ,
 जब तुम मुझे थोड़ा सा सहलाती हो 
 या होठों के पास आती हो 
तो मेरी हालत कैसी बिगड़ जाती है 
मेरी नियत खराब हो जाती है 
डर के मारे मैं धीरे बोलता हूं मेरी आवाज नहीं निकलती मेरी एनर्जी क्षीण हो जाती और मेरी  एक नहीं चलती 
जब कुछ क्षण मे हो जाता है मेरा हाल ऐसा
तो दिन भर तुम्हारा साथ पाकर ,अगर मोबाइल हो जाता है खराब,तो अचरज कैसा
 दरअसल वह खराब नहीं होता ,उसकी नियत खराब हो जाती है, वह खो देता अपने होंश हैं 
 यह मोबाइल का दोष नहीं, यह तुम्हारा दोष है

मदन मोहन बाहेती घोटू

बुधवार, 4 अगस्त 2021

Re:

शानदार वाह वाह,,,,,,,,

On Wed, Aug 4, 2021, 7:32 AM madan mohan Baheti <baheti.mm@gmail.com> wrote:
अच्छा लगता है

कभी-कभी तुम्हारा लड़ना, अच्छा लगता है 
बात मनाने ,पीछे पड़ना ,अच्छा लगता है 
यूं ही रूठ जाती हो, मुझसे बात न करती हो 
कभी-कभी ऐसे भी अकड़ना, अच्छा लगता है 
त्योहारों पर जब सजती तो ,गोरे हाथों में ,
लाल रंग मेहंदी का चढ़ना, अच्छा लगता है  
नये निराले नाज और नखरे नित्य दिखाती हो ,
यूं इतराकर सर पर चढ़ना, अच्छा लगता है 
अपनी ज़िद पूरी होने पर लिपटा बाहों में, 
मेरे मुंह पर चुम्बन जड़ना,अच्छा लगता है 
पहले उंगली पकड़, पहुंचती हो फिर पहुंची तक, धीरे-धीरे आगे बढ़ना ,अच्छा लगता है 
काली-काली सी कजरारी तेरी आंखों में,
कभी गुलाबी डोरे पड़ना, अच्छा लगता है 
मेरे बिन बोले बस केवल हाव भाव से ही,
 मेरे मन की इच्छा पढ़ना ,अच्छा लगता है

मदन मोहन बाहेती घोटू
अच्छा लगता है

कभी-कभी तुम्हारा लड़ना, अच्छा लगता है 
बात मनाने ,पीछे पड़ना ,अच्छा लगता है 
यूं ही रूठ जाती हो, मुझसे बात न करती हो 
कभी-कभी ऐसे भी अकड़ना, अच्छा लगता है 
त्योहारों पर जब सजती तो ,गोरे हाथों में ,
लाल रंग मेहंदी का चढ़ना, अच्छा लगता है  
नये निराले नाज और नखरे नित्य दिखाती हो ,
यूं इतराकर सर पर चढ़ना, अच्छा लगता है 
अपनी ज़िद पूरी होने पर लिपटा बाहों में, 
मेरे मुंह पर चुम्बन जड़ना,अच्छा लगता है 
पहले उंगली पकड़, पहुंचती हो फिर पहुंची तक, धीरे-धीरे आगे बढ़ना ,अच्छा लगता है 
काली-काली सी कजरारी तेरी आंखों में,
कभी गुलाबी डोरे पड़ना, अच्छा लगता है 
मेरे बिन बोले बस केवल हाव भाव से ही,
 मेरे मन की इच्छा पढ़ना ,अच्छा लगता है

मदन मोहन बाहेती घोटू
चिंतन 

चिंतन बदलो ,तन बदलेगा
जीवन का कण कण बदलेगा 

कई व्याधियां है जो अक्सर ,
तन के आसपास मंडराती 
इनमें से आधी से ज्यादा ,
चिंताओं के कारण आती 
गुस्से में ब्लड प्रेशर बढ़ता, 
हो अवसाद, नींद उड़ती है 
किडनी, लीवर की बीमारी ,
मानस स्थिति से जुड़ती है 
यदि तुम सोचो मैं बीमार हूं 
तो बुखार भी चढ़ जाएगा 
यदि तुम सोचो मैं स्वस्थ हूं,
 जीवन में सुख बढ़ जाएगा 
 परेशानियां इस जीवन में ,
 सब पर आती, मत घबराओ 
 बड़े धैर्य से उनसे निपटो,
 चिंता में मत स्वास्थ्य गमाओ 
 तिथि मौत की जब तय है तो,
  रोज-रोज क्यों जीना घुट कर 
  हंसी खुशी से क्यों न गुजारें,
   हम अपने जीवन का हर पल 
   
   मस्त रहोगे, मन बदलेगा 
   मुस्कराओ,मौसम बदलेगा 
   चिंतन बदलो, तन बदलेगा 
   जीवन का कण कण बदलेगा

  मदन मोहन बाहेती घोटू
मैं की मैं मैं 

तुम मुझको अपना मैं दे दो, मैं तुमको दे दूंगा अपना मैं रहे प्रेम से हम मिलजुल कर ,बंद करें अब तू तू मैं मैं 

जब तक तुममें मैं, मुझमें मैं ,अहम अहम से टकराता है 
अहम अगर जो हम बन जाये,तो जीवन में सुख आता है अपनी मैं का विलय करें जो,हम में, सोच बदल जाएगी रोज-रोज की खींचातानी, हम होने से थम जाएगी 
और जिंदगी बाकी अपनी फिर बीतेगी मजे मजे में 
तुम मुझको अपना मैं दे दो, मैं दे दूं तुमको अपना मैं

 दुनिया में सारे झगड़ों की, जड़ है ये मैं की बीमारी 
 मैं के कारण ही होती है, जग में इतनी मारामारी  मैं सब कुछ हूं,मेरा सब कुछ,सोच सोच हम इतराते हैं खाली हाथ लिए है आते,खाली हाथ लिये जाते हैं  
तो फिर क्यों झगड़ा करते, क्या मिल जाता हमको इसमें तुम मुझको अपना मैं दे दो ,मैं तुमको दे दूं अपना मैं 
 रहे प्रेम से, हम मिलजुल कर,बंद करें अब तू तू मैं मैं

मदन मोहन बाहेती घोटू

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