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मंगलवार, 8 जून 2021

धूम्रकेतु 

दिल्ली ऊपर धूम्रकेतु दो ,आ मंडराते बार-बार हैं 
एक अल्पबुद्धि,गंवार है, दूजा ज्यादा समझदार है

 एक अंट शंट बातें करके ,चर्चा में रहना चाहता है उसको खुद मालूम नहीं है कि वह क्या कहना चाहता है 
पुश्तैनी जागीरदार पर, हुआ आजकल सत्ताच्युत है
फिर भी सत्ता हथियायेगा,मन में ये लालच में अद्भुत है 
इतने दिनों देश को लूटा, धन दौलत विदेश पहुंचा दी 
घोषित और अघोषित कितने, स्केमो का यहअपराधी
बुद्धू ,किंतु समझता खुद को सबसे ज्यादा समझदार है 
दिल्ली ऊपर धूमकेतु दो , आ मंडराते बार-बार है 
एक अल्प बुद्धि गंवार है ,दूजा ज्यादा समझदार है 

 दूजा लुभा रहा लोगों को ,दे दे करके खूब प्रलोभन  आदत डाल मुफ्तखोरी की, खूब कर रहा उनका शोषण 
मूर्ख बनाता है जनता को, हाथ जोड़ ,बन भोला-भाला 
कहता मैं हूं दास आपका, लेकिन उसका दिल है काला 
जनता की गाढ़ी कमाई से, विज्ञापन दे, छवि चमकाता 
अपनी सारी नाकामी का ,दोषी औरों को बतलाता दिल्ली पर ये दोनों चेहरे ,भार बन रहे बार बार हैं 
 इनसे जल्दी छुट्टी पाओ, आज वक्त की यह पुकार है
 
 दिल्ली ऊपर धूम्रकेतु दो आ मंडराते बार-बार हैं 
 एक अल्प बुद्धि गंवार है ,दूजा ज्यादा समझदार है

मदन मोहन बाहेती घोटू
धूम्रकेतु 

दिल्ली ऊपर धूम्रकेतु दो ,आ मंडराते बार-बार हैं 
एक अल्पबुद्धि,गंवार है, दूजा ज्यादा समझदार है

 एक अंट शंट बातें करके ,चर्चा में रहना चाहता है उसको खुद मालूम नहीं है कि वह क्या कहना चाहता है
 पुश्तैनी जागीरदार पर, हुआ आजकल सत्ताच्युत है
फिरभी सत्ता हथियायेगा,मन में ये लालच अद्भुत है 
इतने दिनों देश को लूटा, धन दौलत विदेश पहुंचादी घोषित और अघोषित कितने, स्केमो का यह अपराधी 
बुद्धू ,किंतु समझता खुद को सबसे ज्यादा समझदार है
 दिल्ली ऊपर धूमकेतु दो , आ मंडराते बार-बार है 
एक अल्प बुद्धि गंवार है ,दूजा ज्यादा समझदार है 

दूजा लुभा रहा लोगों को ,दे दे करके खूब प्रलोभन  आदत डाल मुफ्तखोरी की, खूब कर रहा उनका शोषण
 मूर्ख बनाता है जनता को, हाथ जोड़ ,बन भोला-भाला 
कहता मैं हूं दास आपका, लेकिन उसका दिल है काला 
जनता की गाढ़ी कमाई से, विज्ञापन दे, छवि चमकाता 
अपनी सारी नाकामी का ,दोषी औरों को बतलाता दिल्ली पर ये दोनों चेहरे ,भार बन रहे बार बार हैं 
 इनसे जल्दी छुट्टी पाओ, आज वक्त की यह पुकार है
 
 दिल्ली ऊपर धूम्रकेतु दो आ मंडराते बार-बार हैं 
 एक अल्प बुद्धि गंवार है ,दूजा ज्यादा समझदार है

मदन मोहन बाहेती घोटू

रविवार, 6 जून 2021

जीवन यात्रा 

कठिन समय से जब गुजरोगे 
तो कुंदन बनकर निखरोगे 
थोड़ा समय लगेगा लेकिन, 
जब विकसोगे,खुशबू दोगे 

थोड़ा नाप तोल कर बोलो ,
जो भी बोलो सोच समझकर
तुम गाली दो,अगला ना ले ,
वही लगेगी, तुम्हें पलट कर 
मुंह तुम्हारा गंदा होगा, 
अगर किसी को गाली दोगे 
कठिन समय से जब गुजारोगे 
तो कुंदन बनकर निखरोगे 

लोगों की मत सुनो ,लोग तो ,
कहते रहते गलत सही है 
किंतु तुम्हारा दिल दिमाग जो 
माने ,करना उचित वही है 
सही राह यदि अपनाओगे 
झट से मंजिल पर पहुंचोगे
कठिन समय से जब गुजरोगे 
तो कुंदन बनकर निखरोगे

मदन मोहन बाहेती घोटू
हम जी रहे हैं 

हवा खा रहे , पानी और पी रहे हैं 
बन पड़ता जैसे भी, हम जी रहे हैं 
बहुत सह लिया अब सहा नहीं जाता, 
जख्म दिल के गहरे, वही सी रहे हैं 

 भला कोई कहता,बुरा कोई कहता,
 सारी उमर सुनते सबकी रहे हैं 
 सावन में सूखे न  भादौ हरे हैं,
 रहे झेलते, सरदी, गरमी,रहे हैं 

  कभी चैन से ना दिया हमको जीने
  निगाहों के कांटे ,कई की रहे हैं 
नहीं भाव देते हमें आज वह भी,
 कभी भावनाओं में जिनकी रहे है

 अलग बात ये कि हुऐ ना वो पूरे,
  मगर देखते सपने हम भी रहे हैं 
  हवा खा रहे पानी और पी रहे हैं 
  बन पड़ता जैसे भी हम जी रहे हैं

मदन मोहन बाहेती घोटू
मास्टर जी की छड़ी 

मास्टर जी की लपलपाती बांस की छड़ी 
जिससे स्कूल के सब बच्चे, डरते थे हर घड़ी
जिसकी मार यदि हम कभी खाते थे 
हथेली पर निशान पड़ जाते थे 
 जिसके डर ने हमें पढ़ना लिखना सिखाया
 बुद्धू से बुद्धिमान बनाया 
 पता ही नहीं चल पाया, कब वह बड़ी हो गई
 लाठी बन कर, लठैतों के हाथ लग गई 
 सब को धमकाती  है 
 अपना रौब जमाती है 
 अगर ध्यान देते तो वह बन सकती थी बांसुरी 
मधुर स्वरों से भरी 
 या फिर निसरनी बनकर 
 लोगों को पहुंचा सकती थी ऊंचाई पर 
 यह नहीं तो कम से कम 
 किसी बूढ़े का सहारा सकती थी बन
 मगर जो था किस्मत में ,वही वह बनी है 
 लठैतो के हाथ में आकर तनी है 
 गनीमत है अर्थी बनने मे काम नहीं आई
 वरना किस्मत होती बड़ी दुखदाई
 इसलिए संतोष से है पड़ी
 मास्टरजी की लपलपाती बांस की छड़ी

मदन मोहन बाहेती घोटू
 
 

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