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शनिवार, 24 अप्रैल 2021

संकल्प

ऐसा कोरोना वायरस है कहर ढा रहा ,
घुस कर के फेंफड़ों में वो हर एक बीमार में
घर घर में  फैला  ,सब ही परेशान दुखी है ,
 लोगों की भीड़ लग रही है अस्पताल में
जंगल से ,दरख्तों से खुले आम मिले थी ,
कुदरत मुफत में बांटती थी जिसको प्यार में
ऑक्सीजन प्राणदायिनी का  टोटा पड़ा है ,
वो बिक रही है आजकल कालाबाज़ार में
ये दोष नहीं मेरा ,तुम्हारा ,सभी का है
हमने प्रगति  के नाम पर प्रकृति बिगाड़ दी
जंगल हरे भरे थे ,हमने वृक्ष काट कर ,
कुदरत की नियामत थी जो उसको उजाड़ दी
और उस जगह कॉन्क्रीट के जंगल खड़े किये ,
बनवा के ऊंची ऊंची कितनी ही इमारतें
करनी का अपनी ही तो है हम फल भुगत रहे ,
बचना बड़ा मुश्किल है अब कुदरत की मार से
तो आओ पश्चाताप करें ,माफ़ी मांग कर ,
कुदरत की इस जमीन को कर दे हरा भरा
जितने भी काटे ,उससे दूने वृक्ष ऊगा दें ,
आओ संवार  फिर से दें ,हम अपनी ये धरा
फिर से लगे बहने वो हवा प्राणदायिनी ,
पर्यावरण सुधरे और बहे नदिया और नाले
पंछी की चहक हो जहाँ फूलों की महक हो
ऐसा निराला स्वर्ग हम धरती पर बसा लें

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

 

शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021

बचे हुए का फिर क्या होगा ?

यह कैसी बिमारी आयी
दुनिया भर में आफत छाई
कितने लोग बिमार पड़े है
बेबस और लाचार पड़े है
अस्पताल में 'बेड 'नहीं है
ऑक्सीजन की गैस नहीं है
है चपेट में इसकी घर घर
हम तुम में यदि आई किसी पर
बिछड़ा कोई ,दे गया धोखा
बचे हुए का फिर क्या होगा ?

जब जब यह ख़याल आता है
तो मन सिहर सिहर जाता है
जिसके संग संग जीवन काटा
पीड़ा, सुख दुःख मिल कर बांटा
बंधन जग के सभी तोड़ कर
चला गया यदि साथ छोड़ कर
बस  तनहाई  बचेगी बाकी
सूना सा जीवन एकाकी
अगर आ गया ऐसा मौका
बचे हुए का फिर क्या होगा ?

चिंता यही सताती हर क्षण
फिर कैसे गुजरेगा जीवन
मन में सोच हमेशा इतना
कौन निभाएगा तब कितना
ख्याल रखेगा ,बढ़ी उमर में
अगर पड़ गए हम बिस्तर में
जब होंगे मुश्किल के मारे
तभी आएगा समझ हमारे
भेद पराये और अपनों का
बचे हुए का फिर क्या होगा?

सिर्फ कल्पना मात्र डराती
मन में व्याकुलता छा जाती
मैं  इतना ज्यादा डर जाता
नहीं ठीक से भी सो पाता
थोड़ा भावुक ,थोड़ा पागल
मैं तड़फा करता हूँ पल पल
जब कि पता कल किसने देखा
मिटता नहीं,नियति का लेखा
लिखा भाग्य का सबने भोगा
बचे हुए का फिर क्या होगा ?

साथी अगर छूट जाता है
दुःख का पहाड़ टूट जाता है
क्योंकि उमर ज्यों ज्यों बढ़ती है
साथी की जरूरत पड़ती है  
रखते ख्याल एक दूजे का
तभी बुढ़ापा कटे मजे का
हम चाहे कितना भी चाहें
दोनों लोग साथ में जायें
ऐसा भाग्य मगर कब होगा
बचे हुए का फिर क्या होगा ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू '

मंगलवार, 20 अप्रैल 2021

तुम्हे गोरैया, आना होगा

कभी सवेरे रोज चहक कर
हमें जगाती थी चीं चीं  कर
बच्चों सी  भरती  किलकारी
कहाँ गयी गौरैया  प्यारी
तुमसे बिछड़े ,बहुत दुखी हम
लुप्त कर रहा तुम्हे प्रदूषण
पर्यावरण बिगाड़ा हमने
तेरा नीड उजाड़ा हमने
हमने काटे जंगल सारे
हम सब है दोषी  तुम्हारे
किन्तु आज करते है वादा
पेड़ उगायेंगे हम ज्यादा
सभी तरफ होगी हरियाली
गूंजे चीं चीं ,चहक तुम्हारी
तरस रहे है कान हमारे
आओ ,फुदको,आंगन ,द्वारे
मौसम तभी सुहाना होगा
तुम्हे गौरैया ,आना होगा

घोटू 
लॉक डाउन में क्या करें

तुम फुर्सत में ,हम फुर्सत में
तंग हो गए इस हालत में
कब तक चाय पकोड़े खायें
टी वी देखें ,मन बहलायें
एकाकीपन ग्रस्त हो गए
लॉक डाउन से त्रस्त हो गए
सभी तरफ छाये सन्नाटे
अपना समय किस तरह काटें
यूं न करें ,कुछ पौधे पालें
आफत को अवसर में ढालें
किचन गार्डन  एक बनाकर
उसमे सब्जियां खूब उगाकर
कुछ गमलों में फूल खिला ले
कुछ में तुलसी पौध लगा ले
बेंगन ,तौरी ,खीरा ,घीया
हरी मिर्च ,पोदीना ,धनिया
बोयें तरह तरह की सब्जी
मीठा नीम और अदरक भी
सींचें इन्हे ,प्यार से पालें
अपना सच्चा मित्र बनालें
इनका साथ तुम्हे सुख देगा
जब देखोगे ,तुम्हे लगेगा
तुम्हे देख खुश हो जाता है
पत्ता पत्ता मुस्काता है
कलियाँ फूल बनी विकसेगी
तुमको कितनी खुशियां देंगी
फिर  पुष्पों से निकलेंगे फल
और बढ़ेंगे हर दिन ,पलपल
होता तुम विकास देखोगे
खुशियां आसपास देखोगे
खुशबू फूल बिखेरेंगे जब
और पौधे सब्जी देंगे जब
घर की सब्जी ताज़ी ताज़ी
 खायेंगे सब ,खुश हो राजी
उनका स्वाद निराला होगा
 तृप्ति दिलाने वाला होगा
जितना प्यार इन्हे हम देंगे
कई गुना वापस कर देंगे
इसीलिये तुम मेरी मानो
सच्चा मित्र इन्हे तुम जानो
सुख पाओ इनकी संगत में
 काम यही अच्छा फुर्सत  में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
 

सोमवार, 19 अप्रैल 2021

पग ,पैर और चरण

मैंने पद को लात मार दी ,अपने पैरों खड़ा हो गया
मंजिल पाने ,कदम बढ़ाये ,ऊंचाई चढ़ ,बड़ा होगया
प्रगति पथ पर ,मुझे गिराने ,कुछ लोगों ने टांग अड़ाई
लेकिन मैंने मार दुलत्ती ,उन सबको थी  धूल  चटाई
चढ़ा चरणरज मातपिता की अपने सर ,आशीषें लेकर
पाँव बढ़ाये ,महाजनो के पदचिन्हों की पगडण्डी पर
न की किसी की चरण वंदना ,न ही किसी के पाँव दबाये
पग पग आगे बढ़ा लक्ष्य को ,बिना गिरे ,बिन ठोकर खाये
पथ में आये ,हर पत्थर का ,मैं आभारी ,सच्चे दिल  से
जिनके कारण ,मैंने सीखा ,पग पग लड़ना ,हर मुश्किल से

घोटू 

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