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शनिवार, 18 जुलाई 2020

उल्लू का पट्ठा

जब खरी खरी बातें करता ,लोगों को लगता खट्टा हूँ
इस मिक्सी वाले युग में भी ,मैं पत्थर का सिलबट्टा हूँ
दुनिया ये मुझको कहती है ,मैं तो उल्लू का पट्ठा हूँ

इस ऐसी कूलर के युग में ,हाथों वाला पंखा झलता
लोगो के हाथों लेपटॉप ,मैं तख्ती ,स्लेट लिए चलता
बीएमडब्लू में चले लोग ,मैं हूँ घसीटता बाइसिकल
साथ समय के चलने की ,मुझमे रत्तीभर नहीं अकल
सिद्धांतों की रक्षा खातिर ,मैं करता लट्ठमलट्ठा  हूँ
दुनिया ये मुझको कहती है ,मैं तो उल्लू का पट्ठा हूँ

ना फ्रिज में रखी हुई बोतल,मैं मटकी का ठंडा पानी
बस लीक पुरानी पीट रहा ,मैं हूँ इस युग में बेमानी
मेरा एकल परिवार नहीं संयुक्त परिवार चलाता हूँ
मैं गैस न, मिट्टी के चूल्हे पर भोजन नित्य बनाता हूँ
स्वादिष्ट ,फ़ायदेबंद ,गुणी ,मैं ताज़ा ताज़ा मठ्ठा हूँ
दुनिया ये मुझको कहती है ,मैं तो उल्लू का पट्ठा हूँ

देखो दुनिया कितनी बदली ,इंसान चाँद तक पहुँच गया
मैं साथ वक़्त के नहीं चला ,और दकियानूसी वही रहा
ग्रह शांति हेतु पहना करता ,दो चार अंगूठी, रत्न जड़ा
बिल्ली यदि काट जाय रास्ता ,मैं हो जाता हूँ वहीँ खड़ा
नीबू मिरची लटका कर घर ,मैं बुरी नज़र से बचता हूँ
दुनिया ये मुझको कहती है ,मैं तो उल्लू का पट्ठा हूँ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
बड़ा आदमी

अगर ठीक से भूख लगती नहीं
लूखी सी रोटी भी पचती  नहीं
समोसे,पकोडे ,अगर तुमने छोड़े ,
तली चीज से हो गयी दुश्मनी हो
न दावत कोई ना मिठाई कोई
जलेबी भी तुमने न खाई कोई
कोई कुछ परोसे, तो मन को मसोसे ,
खाने में करते तुम आनाकनी हो
तो लगता है ऐसा कमा कर के पैसा ,
अब बन गए तुम बड़े आदमी हो

अगर चाय काली ,सुहाने लगे
नमक भी अगर कम हो खाने लगे
जो चाहता दिल ,त्यों जीने के खातिर ,
अगर वक़्त की आपको जो कमी हो
नहीं ठीक से तुम अगर सो सको
जरासी भी मेहनत करो तो थको
लिए बोझ दिल पर ,चलो ट्रेडमिल पर
दवाओं के संग दोस्ती जो जमी हो
तो लगता है ऐसा ,कमा कर के पैसा ,
अब बन गए तुम ,बड़े आदमी हो

रहो काम में जो फंसे इस कदर
घरवालों खातिर समय ना अगर ,
जाते हो हंसने,जो लाफिंग क्लब में
मुस्कान संग हो गयी अनबनी हो
मोबाईल हाथों से छूटे नहीं
मज़ा जिंदगी का जो लुटे नहीं
सपने तुम्हारे ,हुए पूर्ण सारे ,
मगरऔर की भूख अब भी बनी हो
तो लगता है ऐसा ,कमा कर के पैसा ,
अब बन गए तुम बड़े आदमी हो

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

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शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

मैं सीनियर सिटिज़न हूँ

अनुभव से भरा मैं ,समृद्ध जन हूँ
लोग कहते सीनियर मैं सिटिज़न हूँ

नौकरी से हो गया हूँ अब रिटायर
इसलिये रहता हूँ बैठा आजकल घर
बुढ़ापे का हुआ ये अंजाम अब है
निकम्मा हूँ ,काम ना आराम अब है
कभी जिनके काम आता रोज था मैं
बन गया हूँ ,अब उन्ही पर बोझ सा मैं
सभी का व्यवहार बदला इस तरह है
नहीं मेरे वास्ते दिल में जगह है
समझ कर मुझको पुराना और कबाड़ा
सभी मुझ पर रौब अब करते है झाड़ा
और करते रहते है 'निगलेक्ट 'मुझको
बुढ़ापे ने कर दिया 'रिजेक्ट' मुझको
काम का अब ना रहा हो गया कूड़ा
हंसी मेरी उड़ाते सब ,समझ बूढा
था कभी बढ़िया अब हो घटिया गया हूँ
लोग कहते है कि मैं सठिया गया हूँ
रोग की प्रतिरोध क्षमता घट गयी है
बिमारी जल्दी पकड़ने लग गयी है
हो गया कमजोर सा है हाल मेरा
कर लिया बीमारियों ने है बसेरा
मगर उनसे लड़ रहा करके जतन हूँ
लोग कहते ,सीनियर मैं सिटिज़न हूँ

बीते दिन की याद कर होता प्रफुल्लित
भूल ना पाता सुनहरे दिन वो किंचित
उन दिनों जब कॅरियर की 'पीक' पर था
कद्र थी ,सबके लिए मैं ठीक पर था
मेहनत ,मैंने बहुत जी तोड़ की थी
सम्पदा ,बच्चों के खातिर जोड़ ली थी
 ऐश जिस पर कर रहे सब ,मज़ा लेते
मगर तनहाई  की मुझको सज़ा देते
हो गए नाजुक बहुत जज्बात है अब
लगी चुभने ,छोटी छोटी बात है अब
किन्तु अब भी लोग कुछ सन्मान करते
पैर छूते ,अनुभव का मान करते
आज भी दिल में है मेरे प्रति इज्जत  
ख्याल रखते ,पूर्ण कर मेरी जरूरत
समझते परिवार का है मुझे नेता
प्यार से मैं  उन्हें आशीर्वाद देता
वृद्ध हूँ ,समृद्ध हूँ और शिष्ट हूँ मैं
देश का एक नागरिक वरिष्ठ हूँ मैं
भले ही ये तन पुराना ,ढल चला है
मगर कायम ,अब भी मुझमे हौंसला है
सत्य है ये उमर का  अंतिम चरण हूँ
 लोग कहते सीनियर मैं सिटिज़न हूँ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
बुढ़ापे का रेस्टरां

रेस्ट करने की जगह ये ,बुढ़ापे का रेस्टरां है
ट्राय करके देखिएगा ,बहुत कुछ मिलता यहाँ है

है बड़ा एन्टिक सा लुक ,पुरानी कुर्सी और मेजें
पुरानी यादों के जैसी ,भव्यता अपनी सहेजे
हल्की हल्की रौशनी का ,है बड़ा आलम निराला
पुरानी कुछ लालटेनों, से यहाँ होता उजाला
आप मीनू कार्ड पर भी ,नज़र डालें ,अगर थोड़ी
बुढ़ापे के हाल खस्ता सी यहाँ खस्ता कचौड़ी
चटपटा यदि चाहते कुछ ,मान करके राय देखो
खट्टे मीठे ,अनुभवों की ,चाट करके ट्राय  देखो
बुढ़ापे की जिंदगी सी ,खोखली पानीपुरी  है
अच्छे दिन की आस के स्वादिष्ट पानी से भरी है
दाल से पिस ,तेल में तल ,हुये मुश्किल से बड़े है
मोह माया के दही में ,ठीक से लिपटे पड़े है
दही के ये बड़े काफी स्वाद ,चटनी बहुत प्यारी
जलेबी भी है ,जरा ठंडी ,मगर अब तक करारी
न तो खुशबू गुलाबों की ,स्वाद भी ना जामुनों का
नाम पर गुलाबजामुन ,आप खा जाएंगे धोखा
देखा ये  अक्सर नहीं गुण ,नाम के अनुसार होता
वरिष्ठों से शिष्टता का ,ज्यों नहीं व्यवहार होता
चाय स्पेशल हमारी ,गरम ,कुल्हड़ में मिलेगी
सौंधा सौंधा स्वाद देगी ,ताजगी तुममें भरेगी
देर तक बैठे रहो और मज़ा लो हर आइटम का
वक़्त भी कट जाएगा और बोझ घट जाएगा मन का
जवानी में यहाँ मिलता ,उम्र भर का तजुर्बा है
रेस्ट करने की जगह यह ,बुढ़ापे का रेस्टरां है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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