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सोमवार, 13 जुलाई 2020

अदिति और अविनाश के रोके पर

आज हृदय है प्रफुल्लित ,मन में है आनंद
अदिति और अविनाश का ,बंधता है संबंध
बंधता है संबंध  ख़ुशी  का  है  ये मौका
प्रथम चरण परिणय का,आज हो रहा रोका
कह घोटू कविराय प्रार्थना  यह इश्वर  से
सावन की रिमझिम सा प्यार हमेशा बरसे

आनंदित अरविन्द जी ,और आलोक मुस्काय
अति हुलसित है वंदना ,बहू अदिति सी पाय
बहू अदिति सी पाय ,बहुत ही खुश है श्वेता
पाकर के अविनाश ,प्रिय दामाद चहेता
कह घोटू कविराय ,बहुत खुश नाना नानी
टावर टू को छोड़ अदिति टावर वन आनी

नाजुक सी है आदिति ,कोमल सा अविनाश
इसीलिये है जुड़ गयी ,इनकी जोड़ी ख़ास
इनकी जोड़ी खास ,बना कर भेजी रब ने
जुग जुग  जियें  साथ ,दुआ ये दी है सबने
कह घोटू खुश रहें सदा ,दोनों जीवन भर
इन दोनों में बना रहे   अति  प्रेम परस्पर

मदन मोहन बाहेती  'घोटू '
खुशामद

चला कर के तीर तीखे नज़र के ,थक गए होंगे तुम्हारे नयन भी ,
बड़ी ठंडक और राहत मिलेगी ,बूँद दो उनमे दवा की डाल  दूँ
बड़ी नाजुक है कलाई तुम्हारी ,दुखती होगी चूड़ियों के बोझ से ,
आओ उनको सहला के थोड़ा मलूँ और उनकी थकावट निकाल दूँ  
इशारों पर जिनके मुझको नचाती ,थक गयी होगी तुम्हारी उँगलियाँ ,
इनको थोड़ा चटका के मालिश करूं,बनी ताकि रहे उनकी नरमियाँ
करके मीठी मीठी बातें प्यार की ,थक गए होंगे तुम्हारे होंठ भी ,
इनको भी सहला के अपने होंठ से ,सेक दूँ ,साँसों की देकर गरमियाँ

घोटू 
छतरी

दे के अपना साया तुमको बचाया ,
जिसने हरदम बारिशों की मार से
बंद बारिश क्या हुई ,छतरी वही ,
मुसीबत लगती तुम्हे निज भार से
वैसे जिनने ख्याल था पल पल रखा ,
और तुमको पाला पोसा प्यार से
बूढ़े होने पर वही माता पिता ,
तुमको लगने लगते है  बेकार से

घोटू 
खटास

रिश्तों में आने लगे ,थोड़ी अगर खटास
दूध प्रेम का लाइए ,जरा निवाया ,खास
ज़रा निवाया ख़ास , खटाई उसमें डालो
नया मिलेगा स्वाद ,दही तुम अगर जमालो
मिले हृदय से हृदय ,स्निघ्ता हो मख्खन की
बनी रहे आपस में प्रेम भावना  मन की

घोटू 
लोग कहते मैं गधा हूँ  

प्यार करता हूँ सभी से ,भावनाओं से बंधा हूँ
लोग कहते मैं गधा हूँ
इस जमाने में किसी को ,किसी की भी ना पड़ी है
हो गए सब  बेमुरव्वत  ,आई  अब  ऐसी  घडी है
जब तलक है कोई मतलब,अपनापन रहता तभी तक
सिद्ध होता स्वार्थ है जब ,छोड़ जाते साथ है सब
मूर्ख मैं ,सुख दुःख में सबके हाथ हूँ अपना बटाता
मुसीबत में किसी की मैं ,मदद करता ,काम आता
इस लिये ही व्यस्त रहता ,फ़िक्र से रहता लदा हूँ
लोग कहते मैं गधा हूँ
रह गया है ,मैं और मेरी मुनिया का ही अब जमाना
बेवकूफी कहते ,मुश्किल में किसी के काम आना
आत्म केंद्रित होगये सब ,कौन किसको पूछता है
जिससे है मतलब निकलता ,जग उसी को पूजता है
मगर  जो  संस्कार मुझमे है   शुरु से  ये  सिखाया
सहायता सबकी  करो ,देखो न ,अपना या पराया
चलन उल्टा जमाने का ,मैं नहीं  फिट  बैठता हूँ
लोग कहते मैं गधा हूँ
अगर दी क्षमता प्रभु ने ,और मुझको बल दिया है
जिससे मैंने ,बोझ कोई का अगर हल्का किया है
इससे मुझको ख़ुशी मिलती ,और दुआऐं है बरसती
किन्तु मुझको समझ पागल,दुनिया सारी ,यूं ही हंसती
सोचते सब ,अपनी अपनी ,और की ना सोचते  है
काम मुश्किल में न कोई ,आता, सबको कोसते है
हुआ क्या इंसानियत को ,सोचता रहता सदा हूँ
लोग कहते मैं गधा हूँ
आज के युग में भला रखता कोई सद्भावना है
किसी के प्रति सहानुभूति की नहीं सम्भावना है
सोच सीमित हो गयी है ,भाईचारा लुप्त सा  है
अब परस्पर प्रेम करना ,हो गया कुछ गुप्त सा है
और इस माहौल में ,मैं  बात करता प्यार की  हूँ
एक कुटुंब सा रहे हिलमिल,सोचता  संसार की हूँ
शांति हो हर ओर कायम ,चाह करता  सर्वदा हूँ
लोग कहते मैं गधा हूँ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

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