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गुरुवार, 28 मई 2020

उखड़ते स्वर

है ढीले तन के  पड़े तार ,क्या साज़ सजाये साजिंदा  
बेसुरी जिंदगी जीनी है ,जब तकअब रहते है जिंदा

अब खनक स्वरों में बची नहीं ,सारेगामा ,ग़मगीन हुआ
लम्बे आलाप ले सकने का ,सब जोश एकदम क्षीण हुआ
अब  हुई ढोलकी भी ढीली, तबले में भी ,दमखम न बचा
ऐसे में कभी जुगलबंदी का ले ना सकते ,तनिक मज़ा
लें तान ,टूटती सांस ,स्वयं ,होते है खुद पर शर्मिन्दा
बेसुरी जिंदगी जीनी है ,अब जब तक भी है  जिन्दा

ये दौर उमर का भूल गया ,तकतकधिनधिन तकतकधिनधिन
अब मालकोष का गया जोश ,और भीमपलासी  ना मुमकिन
अब राग भैरवी से ही बस ; मन को बहलाना पड़ता है  
टूटे दिल के अरमानो को ,बस यूं ही  सहलाना  पड़ता है  
क्या पता तोड़ तन का पिंजरा ,कब उड़ जाए प्राण परिंदा
बेसुरी जिंदगी जीनी है ,अब जब तक रहते है जिन्दा

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

मंगलवार, 26 मई 2020

दिल की बात

नन्हा सा दिल हमारा,उस पर कितना भार
एक मिनिट में धड़कता ,है वह सत्तर  बार
है  वह  सत्तर बार ,समाये   रखता  सपने
बसती  कई तमन्नाये और सुख दुःख अपने  
कह' घोटू 'कविराय , समय  ऐसा भी आता
कोई दिलवर भी आकर दिल में बस  जाता

होती सत्तर किलो की ,यह काया अभिराम
उसमे रहता दिल,वजन ,महज़ तीन सौ ग्राम
महज़ तीन सौ ग्राम ,लोड पड़ता है  भारी
जब उसमे बस जाती कोई सुंदरी  प्यारी
नाजुक ,दुबली पतली कन्या मन को भावे
ताकि दिल पर अधिक बोझ ना पड़ने पावे

घोटू 

सोमवार, 25 मई 2020

जिंदगी -दो नजरिये

नजरिया -सुबह का

तीन कोने,एक बचपन,जवानी और बुढ़ापा,
तिकोनी है ,समोसे सी  ,ये हमारी  जिंदगी
चटपटा आलू मसाला ,भरा अंदर ,है गरम ,
अगर ताज़ी ,स्वाद लगती ,बड़ी प्यारी जिंदगी
संगिनी मिल जाय यदि जो,गरम मीठी जलेबी ,
टेढ़ी मेढ़ी पर रसीली ,हो करारी  जिंदगी
स्वर्ग काआनंद सारा,तो समझ लो मिल गया,
चैन से  कट जाती है ,मेरी तुम्हारी जिंदगी
२  
 नज़रिया -शाम का

जवानी में दिल हमारा ,कुल्फी जैसा हार्ड था ,
बुढ़ापे में हो गया वो ,सोफ्टी सा सॉफ्ट है
थे गरम मिजाज काफी ,उसूलों के सख्त थे ,
पर लचीला नजरिया अब कर लिया एडोप्ट है
हमेशा अपनी न हाँको ,दूसरों की भी सुनो ,
वक़्त के संग बदलना ही जिंदगी का आर्ट है
कल के घोटू,अब के घोटू में फरक ये आगया ,
पहले लल्लू गाँव का लगता था ,अब स्मार्ट है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
पत्तल उठाते रह गये

सपन मन में मिलन के सब  कुलबुलाते रह गये
साथ आनेवाले थे वो ,आते आते  रह गये
हमारी मख्खन डली को ,एक कौवा ले गया ,
और हम अफ़सोस में ,दिल को जलाते रह गये
 कोई मंदिर में घुसा ,परशाद  सारा ले गया ,
और हम भक्ति भरे  ,घंटी बजाते रह गये
पेंच डाला कोई ने और हमारी काटी पतंग ,
बचाने को मांजा हम ,गिररी घुमाते रह गये
हमने रखवाली करी थी फसल की जी जान से
काट ली कोई ने ,हम भूसा उठाते  रह गये
मेहमां बन,लोग आये ,जीम कर सब,घर गये,
और भूखे पेट हम  ,पत्तल उठाते रह गये  

घोटू 

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