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गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

पालतू या फ़ालतू

पड़ी जब तक गले में जंजीर है
बंधा है पट्टा  ,खुली तक़दीर है
दूध ,रोटी ,सब मिलेगी चैन से
जब तलक  तुम बंधे हो एक चेन से
साहब तुमको घुमाने ले जाएंगे
लोग घर के प्यार से सहलायेंगे
बदले में बस दुम  हिलाना पड़ेगा
इशारों पर दौड़ आना पड़ेगा
अजनबी को देख कर के भोंकना
ज़रा सी आहट  हुई तो चौंकना
कभी भी आना नहीं तुम तैश में
जिंदगी पूरी कटेगी ऐश  में
गलती से आजादी की मत सोचना
बाल वरना फिर पड़ेगें नोचना
चेन पट्टा ,गले से हट जाएगा
 ऐश और आराम सब घट जाएगा  
आजादी है ,दुम  उठा कर दौड़ना
कोई छेड़े ,तुम उसे मत छोड़ना
मुश्किलों से पेट पर भर पाओगे
दूध रोटी को तरस पर जाओगे
गली में  भटकोगे ,आवारा बने
रहोगे मिटटी और कीचड से सने
एक दम  हो जाओगे तुम फालतू
अच्छा है बन कर रहो  पालतू

घोटू 
दिवास्वपन

जब होते है सीमित साधन और महत्वाकांक्षी होता मन
तब कहते लोग देखते है ,हम दिन में ही बस दिवास्वपन
सबके अपने अपने सपने ,मन में होना है आवश्यक  
हो लक्ष्य नहीं यदि निर्धारित, कैसे पहुंचोगे तुम उस तक
बिन सपने देखे तुम कैसे ,सीखोगे मंजिल से जुड़ना
ना पंख फड़फड़ाओगे जबतक,तुम कैसे सीखोगे उड़ना
कितने करने पड़ते प्रयास ,कितनी ही आती है मुश्किल
जी जान लगा कर करो काम ,तब ही हासिल होती मंजिल
चूमेगी चरण सफलता जब ,साकार स्वपन  हो जाएगा
तुम होंगे व्यस्त ,तुम्हे सोने का समय नहीं मिल पायेगा
दिन में ,ऑफिस में थके हुए ,झपकी सी आएगी जिस क्षण
तुम अगली मंजिल पाने का ,फिर से देखोगे दिवास्वपन

घोटू 
प्यार या कोरोना

मैंने जब से उन्हें छुआ है ,जीवन में ऐसा रस आया
मैं हुआ बीमार प्यार  में ,मुझ पर उसका,जादू छाया
मैं तनहा ,एकाकी रह कर ,यादों में बस डूबा रहता
मुंह पर ताला लगा अकेला ,मन की बातें किससे कहता  
धोकर हाथ पड़े पर पीछे ,मेरे  शुभचिन्तक बहुतेरे
कैसे भी यह भूत  प्यार का ,उतर जाए बस ,सर से मेरे
जिसने था कर दिया संक्रमित मेरे दिल का कोना कोना
बोले ये रस नहीं प्यार का ,बल्कि वायरस  है कोरोना

घोटू  

गुरुवार, 9 अप्रैल 2020

मैं एक कमरे में कैद

मै एक कमरे में कैद मगर, बातें करता उड़ जाने की
तन्हाई में सिमटा ,चाहत ,फिर भी सबसे जुड़ जाने की

संगेमरमर का श्वेत फर्श ,है चार दीवारें ,एक छत है
एक दरवाजा ,एक खिड़की है ,बाकी क्या मुझे जरूरत है
कर लेता हूँ बस ताकझांक,बाहर की दुनिया की हलचल
मैं साधनहीन ,साधना में ,फिर भी खोया रहता हरपल
मैं जिस रस्ते पर निकल गया ,आदत ना है मुड़ आने की
मैं एक कमरे में कैद मगर बातें करता उड़ जाने की  

जो मिला उसी से पेट भरा ,पकवानो की ना चाह मुझे
दुनिया चाहे कुछ भी बोले ,ना रत्ती भर परवाह मुझे
बेतार तार की कुछ तरंग ,है जोड़ रही अपनों के संग
तन्हा हूँ पर लाचार नहीं ,मस्ती में डूबा ,मैं मलंग
तन एकाकी ,मन में हसरत लेकिन सबसे ,मिल पाने की
मैं एक कमरे में कैद मगर ,बातें करता उड़ जाने की

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '
लॉक डाउन में

कबतक वक़्त गुजारें हम,उनकी जुल्फों की छाँव में
बैठे बैठे ,कूल्हे दुखते ,सूजन आई  पाँव में
कोरोना ने ऐसा हमको ,तन्हा करके बिठा दिया ,
कैद हो गए ,चारदीवारी में अपने ही ठाँव में
पहले दिनभर काम किया करते थे ,थक कर सो जाते ,
अब सो सो कर थक जाते है ,फंसे  हुए उलझाव में
मुश्किल से हो रही मयस्सर आटा दाल,चाय,चीनी ,
फल सब्जी भी मिल जाते है ,लेकिन दूने भाव में
भूल गए होटल का खाना ,आलू टिक्की और बर्गर ,
खुश है खाकर ,घर की रोटी ,खिचड़ी ,मटर पुलाव में
कामवालियां नहीं आरही ,सब मिल घर का काम करे ,
झाड़ू पोंछा,हाथ घिस रहे ,बर्तन संग घिसाव में
एक वाइरस ने जीवन का सारा रस है छीन लिया ,
मुश्किल के दिन कब बीतेंगे ,रहते इसी तनाव में
फिर भी धैर्य धरे घर बैठे  ,लड़ने महा बिमारी से ,
आज देश का मान, प्रतिष्ठा ,लगे हुए सब दाव में
दीप  जला ज्योतिर्मय करते देश बजा ताली,थाली ,
'अप 'हो रहे ,'लॉकडाउन 'में ,देशभक्ति के भाव में

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 

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