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बुधवार, 31 अक्टूबर 2018

विश्वास और सुख 

आँख मूँद कर करे भरोसा पति पर,उससे कुछ ना कहती 
मैंने देखा ,ऐसी पत्नी ,अक्सर सुखी और खुश रहती 

सदा पति पर रखे नियंत्रण ,बात बात में टोका टाकी 
उस पर रखती शक की नज़रें ,हर हरकत पर  ताकाझांकी 
कहाँ जा रहे ,कब आओगे ,कहाँ  गए थे ,देर क्यों हुई 
आज बड़े खुश नज़र आरहे ,कौन तुम्हारे साथ थी मुई 
बस इन्ही पूछा ताछी से ,शक का बीज बो दिया करती 
थोड़ा वक़्त प्यार का मिलता, यूं ही उसे खो दिया करती 
पति आये तो जेब टटोले ,ढूंढें काँधे पड़े बाल को 
जासूसों सी पूछा करती ,है दिन भर के हालचाल को 
होटल से खाना मंगवाती ,जिसे रसोईघर से नफरत 
व्यस्त रहे शॉपिंग,किट्टी में ,पति के लिए न पल भर फुर्सत 
ऐसी पत्नी के जीवन में ,नहीं प्रेम की सरिता  बहती 
मैंने देखा ऐसी पत्नी ,हरदम बहुत दुखी है रहती 

और एक सीधीसादी सी ,भोली सूरत ,सीधे तेवर 
पतिदेव की पूजा करती ,उसे मानती है परमेश्वर 
करती जो विश्वास पति पर ,जैसा भी है ,वो अच्छा है 
उससे कभी विमुख ना होगा ,उसका प्यार बड़ा सच्चा है 
इधर उधर पति नज़रें मारे ,तो हंस कर है टाला  करती 
सब का मन चंचल होता है ,कह कर बात संभाला करती 
ना नखरे ना टोकाटाकी ,ना ही झगड़े ,ना ही अनबन 
अपने पति पर प्यार लुटाती,करके खुद को पूर्ण समर्पण 
अच्छा पका खिलाती ,दिल का रस्ता सदा पेट से जाता 
ऐसा प्यार लुटानेवाली ,पत्नी पर पति बलिबलि  जाता 
पति के परिवार में रम कर ,संग हमेशा सुख दुःख सहती 
मैंने देखा ,ऐसी पत्नी ,अक्सर सुखी और खुश रहती 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
प्रयोजन और भोजन 


आस्था में प्रभु की मंदिर गए ,
चैन मन को मिलेगा ,विश्वास था 
श्रद्धानत ,आराधना में लीन थे ,
लगा होने शांति का आभास था 
व्यस्त हम तो रहे करने में भजन ,
लोग आ पूरा प्रयोजन कर गए 
हमें चरणामृत और तुलसीदल मिला ,
लोग पा परशाद ,भोजन कर गए 

घोटू 
मगर बिस्कुट कुरकुरे ही चाहिए 


भले खाएंगे डुबो कर चाय में ,
मगर बिस्कुट कुरकुरे ही चाहिए 
कल सुबह होगी जलन, देखेंगे कल ,
पर पकोड़े चरपरे ही चाहिये 
उनकी ना ना बदल देंगे हाँ में पर,
नाज नखरे मदभरे ही चाहिए 
प्रेम करने में उतर जाएंगे सब ,
वस्त्र लेकिन सुनहरे ही चाहिये 

घोटू 

माथुर साहेबकेँ जन्मदिवस पर 

व्यक्तित्व आपका अति महान 
माथुर साहब ,तुमको प्रणाम 

शीतल स्वभाव ,तुम गरिमामय ,
मुख पर बिखरी  पूरनमासी 
मुस्काते ,खिले खिले हरदम ,
हो नमह नमह तुम इक्यासी 
ओ  भातृभाव  के अग्रदूत ,
हो मौन ,तपस्वी,शांत,सिद्ध 
ओ ज्ञानपीठ के मठाधीश ,
ओ दंत चिकित्सक तुम प्रसिद्ध 
तुमने कितने कोमल कपोल ,
को खोल,हृदय की पीर हरी 
हो समयसारिणी ,अनुशासित ,
तुम सदा समय के हो प्रहरी 
गरिमा की माँ ,ममता की माँ ,
है छुपी हुई तुम  माथुर में 
साक्षर स्नेह की  मूरत हो  ,
सबके प्रति प्रेम भरा उर में 
ये आलम अगर बुढ़ापे में ,
क्या होगा हाल जवानी में 
निश्चित ही आग लगा देते,
 होंगे बर्फीले पानी में  
तुम जिसका मुख छूते होंगे,
निःशब्द हुआ करती होगी 
ले जाती होगी प्रेम रोग ,
सब भुला दन्त की वह रोगी 
ये खंडहर साफ़ बताते है ,
कितनी बुलंद थी इमारत 
गायक,लायक ,नायक कर्मठ ,
तुम सबके मन की हो  चाहत 
है यही दुआ सच्चे दिल से ,
सौ वर्ष जियो तुम अविराम 
माथुर साहब ,तुमको  प्रणाम 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू ' 
 

मंगलवार, 23 अक्टूबर 2018

            नारी जीवन


                                       कितना मुश्किल नारी जीवन

उसे बना कर रखना पड़ता,जीवन भर ,हर तरफ संतुलन

                                       कितना मुश्किल नारी जीवन

जिनने जन्म दिया और पाला ,जिनके साथ बिताया  बचपन

उन्हें त्यागना पड़ता एक दिन,जब परिणय का बंधता बंधन 

माता,पिता,भाई बहनो की , यादें  आकर  बहुत  सताए

एक पराया , बनता  अपना , अपने बनते ,सभी  पराये

नयी जगह में,नए लोग संग,करना पड़ता ,जीवन व्यापन

                                       कितना मुश्किल नारी जीवन

कुछ ससुराल और कुछ पीहर ,आधी आधी वो बंट  जाती

नयी तरह से जीवन जीने में कितनी ही दिक्कत   आती

कभी पतिजी  बात  न माने , कभी  सास देती है ताने

कुछ न  सिखाया तेरी माँ ने ,तरह तरह के मिले उलाहने

कभी प्रफुल्लित होता है मन, और कभी करता है क्रंदन 

                                     कितना मुश्किल नारी जीवन

इसी तरह की  उहापोह में ,थोड़े  दिन पड़ता  है  तपना

फिर जब बच्चे हो जाते तो,सब कुछ  लगने लगता अपना

बन कर फिर ममता की मूरत,करती है बच्चों का पालन

कभी उर्वशी ,रम्भा बन कर,रखना पड़ता पति का भी मन

 किस की सुने,ना सुने किसकी ,बढ़ती ही जाती है उलझन    

                                        कितना मुश्किल नारी जीवन

बेटा ब्याह, बहू जब आती  ,पड़े सास का फर्ज निभाना

तो फिर, बेटी और बहू में ,मुश्किल बड़ा ,संतुलन लाना

बेटा अगर ख्याल रखता तो, जाली कटी है बहू सुनाती

पोता ,पोती में मन उलझा ,चुप रहती है और गम खाती

यूं ही बुढ़ापा काट जाता है  ,पढ़ते गीता और  रामायण

                                 कितना मुश्किल नारी जीवन


मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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