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मंगलवार, 23 अक्टूबर 2018

द्रौपदी

पत्नी जी,दिन भर,घर के काम काज करती

एक रात ,बोली,डरती डरती

मै सोचती हूँ जब तब

एक पति में ही जब हो जाती ऐसी हालत

पांच पति के बीच द्रौपदी एक बिचारी

होगी किस आफत की मारी

जाने क्या क्या सहती होगी

कितनी मुश्किल रहती होगी

एक पति का 'इगो'झेलना कितना मुश्किल,

पांच पति का 'इगो ' झेलती रहती होगी

उसके बारे में जितना भी सोचा जाए

सचमुच बड़ी दया है आये

उसकी जगह आज की कोई,

जागृत नारी,यदि जो होती

ऐसे में चुप नहीं बैठती

पांच मिनिट में पाँचों को तलाक दे देती

या फिर आत्मघात कर लेती

किन्तु द्रौपदी हाय बिचारी

कितनी ज्यादा सहनशील थी,

पांच पुरुष के बीच बंटी एक अबला नारी

सच बतलाना,

क्या तुमको नहीं चुभती है ये बात

कि द्रौपदी के साथ

उसकी सास का ये व्यवहार

नहीं था अत्याचार?

सुन पत्नी कि बात,जरा सा हम मुस्काये

बोले अगर दुसरे ढंग से सोचा जाए

दया द्रौपदी से भी ज्यादा,

हमें पांडवों पर आती है,जो बेचारे

शादीशुदा सभी कहलाते,फिर भी रहते,

एक बरस में साड़े नौ महीने तक क्वांरे

वो कितना दुःख सहते होंगे

रातों जगते रहते होंगे

तारे चाहे गिने ना गिने,

दिन गिनते ही रहते होंगे
कब आएगी अपनी बारी
जब कि द्रौपदी बने हमारी
और उनकी बारी आने पर ढाई महीने,
ढाई महीने क्यों,दो महीने और तेरह दिन,
मिनिटों में कट जाते होंगे
पंख लगा उड़ जाते होंगे
और एक दिन सुबह,
द्वार खटकाता होगा कोई पांडव ,
भैया अब है मेरी बारी
आज द्रौपदी हुई हमारी
और शुरू होता होगा फिर,वही सिलसिला,
साड़े नौ महीने के लम्बे इन्तजार का
और द्रौपदी चालू करती,
एक दूसरे पांडव के संग,
वही सिलसिला नए प्यार का
तुम्ही बताओ
पत्नी जब महीने भर मैके रह कर आती,
तो उसके वापस आने पर,
पति कितना प्रमुदित होता है
उसके नाज़ और नखरे सहता
लल्लू चप्पू करता रहता
तो उस पांडव पति की सोचो,
जिसकी पत्नी,उसको मिलती,
साड़े नौ महीने के लम्बे इन्तजार में
पागल सा हो जाता होगा
उस पर बलि बलि जाता होगा
जब तक उसका प्यार जरा सा बासी होता,
तब तक एक दूसरे पांडव ,
का नंबर आ जाता होगा
निश्चित ही ये पांच पांच पतियों का चक्कर,
स्वयं द्रोपदी को भी लगता होगा सुख कर,
वर्ना वह भी त्रिया चरित्र दिखला सकती थी
आपस में पांडव को लड़ा भिड़ा सकती थी
यदि उसको ये नहीं सुहाता,
तो वह रख सकती थी केवल,
अर्जुन से ही अपना नाता
लेकिन उसने,हर पांडव का साथ निभाया
जब भी जिसका नंबर आया
पति प्यार में रह कर डूबी
निज पतियों से कभी न ऊबी
उसका जीवन रहा प्यार से सदा लबालब
जब कि विरह वेदना में तडफा हर पांडव
तुम्ही सोचो,
तुम्हारी पत्नी तुम्हारे ही घर में हो,
पर महीनो तक तुम उसको छू भी ना पाओ
इस हालत में,
क्या गुजरा करती होगी पांडव के दिल पर,
तुम्ही बताओ?
पात्र दया का कौन?
एक बरस में ,
साड़े साड़े नौ नौ महीने,
विरह वेदना सहने वाले 'पूअर'पांडव
या फिर हर ढाई महीने में,
नए प्यार से भरा लबालब,
पति का प्यार पगाती पत्नी,
सबल द्रौपदी!

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मुसीबत ही मुसीबत
———————–
मौलवी ने कहा था खैरात कर,
रास्ता है ये ही जन्नत के लिये
वहां जन्नत में रहेंगी हमेशा,
हूरें हाज़िर तेरी खिदमत  के लिये
ललक मन में हूर की ऐसी लगी,
आ गये हम मौलवी की बात में
सोच कर जन्नत में हूरें मिलेगी,
लुटा दी दौलत सभी खैरात में
और आखिर वो घडी भी आ गयी,
एक दिन इस जहाँ से रुखसत हुए
पहुंचे जन्नत ,वेलकम को थी खड़ी,
बीबी बन कर हूर,खिदमत के लिये
हमने बोला यहाँ भी तुम आ गयी,
हो गयी क्या खुदा से कुछ गड़बड़ी
अरे जन्नत में तो मुझ को बक्श दो,
इस तरह क्यों हो मेरे पीछे पड़ी
बोली बीबी मौलवी का शुक्र है,
दिया जन्नत का पता मुझको  बता
कहा था उसने की तू खैरात कर,
पांच टाईम नमाज़ें करके    अता
बताया था होगी जब जन्नत नशीं,
हूर बन कर फरिश्तों से खेलना
मुझको क्या मालूम था जन्नत में भी,
पडेगा मुझको ,तुम्ही को झेलना

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गृह लक्ष्मी


गृह लक्ष्मी

नहीं कहीं भी कोई कमी है
मेरी पत्नी,गृहलक्ष्मी है
जीवन को करती ज्योतिर्मय
उससे ही है घर का वैभव
जगमग जगमग घर करता है
खुशियों से आँगन भरता है
दीवाली की सभी मिठाई
उसके अन्दर रहे समाई
गुझिये जैसा भरा हुआ तन
रसगुल्ले सा रसमय यौवन
और जलेबी जैसी सीधी
चाट चटपटी ,दहीबड़े सी
फूलझड़ी सी वो मुस्काती
और अनार सा फूल खिलाती
कभी कभी बम बन फटती है
आतिशबाजी सी लगती है
आभूषण से रहे सजी है
प्रतिभा उसकी ,चतुर्भुजी है
दो हाथों में कमल सजाती
खुले हाथ पैसे बरसाती
मै उलूक सा ,उनका वाहन
जाऊं उधर,जिधर उनका मन
इधर उधर आती जाती है
तभी चंचला कहलाती है
मेरे मन में मगर रमी है
नहीं कहीं भी कोई कमी है
मेरी पत्नी,गृह लक्ष्मी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

रविवार, 21 अक्टूबर 2018

बुढ़ापे का प्रणय निवेदन 


तुम भी बूढी हो गयी हो ,और मैं भी हुआ बूढा 
चलो अब मिल कर करें हम ,एकता का स्वप्न पूरा 

कुछ हमारे,कुछ तुम्हारे,ख़्वाब कितने ही अधूरे 
वक़्त ने बेबस बनाया ,कर नहीं  हम  पाये पूरे 
अगर हमतुम जाएँ जो मिल,कर उन्हें साकार देंगे
और हमारी विवशता को ,एक नया  आकार देंगे 
अकेलापन, मन कचोटे ,काटती तन्हाईयाँ है 
ढक रही मन का उजाला ,भूत की परछाइयां है 
हमारी मजबूरियों का ,किया सबने बहुत शोषण 
आओ मिल कर,प्यार का हम ,करें पौधा ,पुनर्रोपण 
और फिर सिंचित करेंगे ,फलेगा जीवन अधूरा 
चलो अब मिल कर करें हम ,एकता का स्वप्न पूरा 

तुम्हारे मन में हिचक है ,लोग जाने क्या कहेंगे 
काम लोगों का यही है ,वो तो बस कहते रहेंगे 
क्या किसी ने कभी आकर ,हाल भी पूछा तुम्हारा 
बुढ़ापे की विवशता में ,क्या तुम्हे देंगे सहारा
 दूसरों की बात छोडो ,तुम्हारे परिवार वाले    
ढूंढते मौका है तुमको, किस तरह घर से निकाले 
जिंदगी के बचे कुछ दिन ,मिले बोनस में हमें है 
एक दूजे ,संग मिल कर ,अब ख़ुशी से काटने है 
नहीं तो  होगा हमारा ,बुढ़ापे में ,बहुत कूड़ा 
चलो अब मिल कर करें हम ,एकता का स्वप्न पूरा 
 तुम भी बूढी हो गयी हो ,और मैं भी हुआ बूढा 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

शुक्रवार, 19 अक्टूबर 2018

डांडिया 

आओ 
हम रहें मिलजुल कर 
नहीं चलायें लाठियां ,एकदूजे पर 
सोच बड़ी करें 
लाठियां छोटी करे 
क्योंकि छोटी होने पर लाठियां 
बन जाती है डांडिया 
और डांडिया का खेल 
बढ़ाता है आपसी मेल 
माँ दुर्गा का यही आदेश है 
विजयदशमी का यही सन्देश है 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

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