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सोमवार, 20 अगस्त 2018

माँ बीमार है
माँ बीमार है
दिल थोडा कमजोर हो गया,घबराता है
थोडा सा भी खाने से जी मचलाता है
आधी से भी आधी रोटी खा पाती है
अस्पताल का नाम लिया तो घबराती है
साँस फूलने लगती जब कुछ चल लेती है
टीवी पर ही कथा भागवत सुन लेती है
जी घबराता रहता है ,आता बुखार है
माँ बीमार है
प्रात उठ स्नान ध्यान पूजन आराधन
गीताजी का पठन ,आरती, भजन, कीर्तन
फिर कुछ खाना,ये ही दिनचर्या होती थी
और रात को हाथ सुमरनी ले सोती थी
ये दिनचर्या बीमारी में छूट गयी है
कमजोरी के कारण थोड़ी टूट गयी है
बीमारी की लाचारी से बेक़रार है
माँ बीमार है
फ़ोन किसी का आता है,खुश हो जाती है
कोई मिलने आता है,खुश हो जाती है
याद पुरानी आती है,गुमसुम हो जाती
बहुत पुरानी बाते खुश हो होकर बतलाती
अपना गाँव मकान , मोहल्ला याद आते है
पर ये तो हो गयी पुरानी सी बाते है
एक बार फिर जाय वहां ,मन बेक़रार है
माँ बीमार है
बचपन में मै जब रोता था,माँ जगती थी
बिस्तर जब गीला होता था,माँ जगती थी
करती दिन भर काम ,रात को थक जाती थी
दर्द हमें होता था और माँ जग जाती थी
अब जगती है,नींद न आती ,तन जर्जेर है
फिर भी सबके लिए काम, करने तत्पर है
ये ममता ही तो है ,माँ का अमिट प्यार है
माँ बीमार है
उसके बोये हुए वृक्ष फल फूल रहे है
सभी याद रखते है पर कुछ भूल रहे है
सबसे मिलने ,बाते करने का मन करता
देखा उसकी आँखों में संतोष झलकता
और जब सब मिलते है तो हरषा करती है
सब पर आशीर्वादो की बर्षा करती है
अपने बोये सब पोधों से उसे प्यार है
माँ बीमार है
यही प्रार्थना हम करते हैं हे इश्वर
उनका साया बना रहे हम सबके ऊपर
जल्दी से वो ठीक हो जाये पहले जैसी
प्यार,डाट  फटकार लगाये पहले जैसी
फिर से वो मुस्काए स्वर्ण दन्त चमका कर
हमें खिलाये बेसन चक्की, स्वयं बना कर
प्रभु से सबकी यही प्रार्थना बार बार है
माँ बीमार है

शनिवार, 18 अगस्त 2018

केरल का जल प्रलय

क्या प्रभु - रुष्ट क्यों?
वो भी अपने देश से?
हो गयी भूल क्या
इस धरा विशेष पे??

ये कहर - ये प्रलय
इस प्राकृतिक उपहार पर?
क्या मिलेगा यहाँ पर
जीवों के संहार से??

ना यहाँ कोई घोर पाप
ना तो कोई उग्रवाद,
ना तो आपके नियम से
कोई भी है यहाँ विवाद...

भोली-भाली प्रकृति यहाँ
भोले-भाले लोग हैं,
हर तरफ हरियाली जैसे
यही स्वर्गलोक है...

फिर भला ये कोप क्यों
किसलिये जलवृष्टि ये?
हे महादेव यहाँ क्यों 
खोली तीसरी दृष्टि ये??

हैं बहुत से और देश
करते रहते केवल क्लेश,
फिर भी उनके पास क्यों
सुख - संपदा अति विशेष??

क्या यही कलिकाल है?
क्या ये न्याय हो रहा?
देखिये जरा देखिये
क्या ये 'हाय' हो रहा...

यदि ये रीति कलियुगी
आप यही चाहते,
क्षमा करें शंभु ये
हम देह नहीं चाहते...

पाप का विनाश हो
पुण्य प्रफुल्लित रहे,
चाहते हैं आप यदि
कि ये 'चर्चित' रहे...

- विशाल चर्चित

बदलता वक़्त 

वक़्त की बेरूखी,
सबको करती दुखी ,
हर चमन में ,बहारें न रहती सदा 
है अगर सुख कभी 
आते दुःख भी कभी 
है कभी सम्पदा तो कभी आपदा 
देख कहते सुमन 
काहे इतराता मन 
आके मधुमख्खियाँ ,रस चुरा लेंगी सब 
लोग लेंगे शहद,
मोम छत्ते का सब ,
जब बनेगा शमा ,ढायेगा वो गजब 
फूल की ये महक ,
मोम की बन दहक 
नाश करती पतंगों का है सर्वदा 
वक़्त की बेरुखी 
करती सबको दुखी ,
हर चमन में बहारे न रहती सदा 
रोज सूरज उगे 
हो प्रखर वो तपे ,
ढलना पड़ता है लेकिन उसे शाम को 
चाहे राजा है वो 
या भले रंक हो ,
मौत ने बक्शा है ,कौन इंसान को 
कर्म अपने करो 
पाप से तुम डरो ,
हो परेशानियां ,मत रहो गमज़दा 
वक़्त की बेरुखी 
करती सबको दुखी ,
हर चमन में बहारे न रहती सदा 

मदन मोहन बाहेती 'घोटू '

बुधवार, 15 अगस्त 2018

नमन् उन्हें जो आजादी की खातिर सबकुछ भूल गये...


नमन् उन्हें जो आजादी की
खातिर सबकुछ भूल गये,
हँसते-हँसते 'जय हिन्द' बोला
और फाँसी पर झूल गये...

नमन् उन्हें जो सबकुछ था पर
देश की खातिर छोड़ दिया,
आजादी दी, सत्ता सौंपी
और दुनिया को छोड़ दिया...

नमन् उन्हें कि जो सीमा पर
प्रहरी बनकर रहते हैं,
देश सुरक्षित रहे इसलिये
हर दुख सहते रहते हैं...

नमन् उन्हें जो गश्त पे रहते
हर मौसम - हर हाल में,
जो समा गये जनता की खातिर
स्वयं काल के गाल में...

नमन् उन्हें जो देश को लाये
आजादी के बाद यहाँ तक,
मुश्किल हालातों से उबारा
आबादी को आज यहाँ तक...

नमन् उन्हें जो देश का परचम
पूरी दुनिया में लहरा आये,
नमन् उन्हें जो अंतरिक्ष में भी
अपना तिरंगा फहरा आये...

नमन् उन्हें जो अपने क्षेत्र में
करते अर्जित सदा विशेष,
नमन् उन्हें जो देश को हर दिन
करते अर्पित सदा विशेष...

नमन् उन्हें जो करते कार्य
जाति-धर्म से ऊपर उठकर,
कोई मुसीबत में ये दौड़ते
निज स्वार्थ से ऊपर उठकर...

नमन् उन्हें जो अपने अलावा
और्रों के बारे में भी हैं सोचते,
किसी ना किसी तरह देश को
हैं सुदृढ़ करते और जोड़ते...

नमन् उन्हें जो ये 'चर्चित' का
संदेश पढ़ेंगे - सोचेंगे,
देश के लिये सही मार्ग पर
पूरे जोश से हो लेंगे...

जय हिंद - जय भारत
..... वंदे मातरम .....

- विशाल चर्चित

सोमवार, 13 अगस्त 2018

अंगूठी -क्यों रूठी 

कल मैंने अंगूठी से पूछा 'अंगूठी 
तुम अपने प्रियतम अंगूठे से क्यों रूठी 
क्या बात हुई जो तुमने उससे मुख मोड़ा 
 उसे अकेले तन्हाई में तड़फता छोड़ा 
और पड़ोस में रहने वाली उंगलियों के साथ 
गुजार रही हो अपने दिन और रात 
अंगूठी बोली क्या करूं 
,मेरा पिया अनपढ़ है ,
मुझे बिलकुल नहीं सुहाता है 
दस्तखत भी नहीं कर सकता ,
अंगूठा लगाता है 
झगड़ालू भी है ,
मुझे टी ली ली ली कह कर चिढ़ाता है 
किसी से उधार लेकर नहीं चुकाता 
अंगूठा दिखाता है 
कभी 'थम्स अप 'करता है ,
कभी 'थम्स डाउन 'कहता है 
मेरे लिए उसके पास वक़्त ही नहीं है ,
फेसबुक और व्हाट्सअप में इतना व्यस्त रहता है 
बस इन्ही कारणों से मेरी उससे नहीं पट पाती है 
और जब मैंने देखा कि उंगलिया ,
अपने इशारों पर पति को नचाती है 
तो उनसे सीखने को ये हुनर ख़ास 
मैं चली आयी हूँ उँगलियों के पास  
फिर भी जब कभी आती है उनकी याद 
तो जब कुछ लिखने को कलम पकड़ने ,
जब उँगली आती है अंगूठे के पास 
मैं कर लेती हूँ उनकी नजदीकियों का अहसास
मैंने कहा जब तुम्हारी और तुम्हारे पति में ,
अलगाव और दूरियां स्पष्ट नज़र आती है 
तो फिर मिलन की प्रथम रस्म याने कि सगाई में ,
ऊँगली में अंगूठी क्यों पहनाई जाती है 
अंगूठी हंसी और बोली कि 
सगाई में अंगूठी इसलिए पहनाई जाए 
ताकि प्रथम मिलन में ही होने वाले पति पत्नी ,
एक दूसरे को अंगूंठा नहीं दिखलायें 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 
 

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