हम भी अगर बच्चे होते
कहावत है
बच्चे और बूढ़े ,होते है एक रंग
जिद पर आजाते है ,
तो करते है बहुत तंग
दोनों के मुंह में दांत नहीं होते
स्वावलम्बी बनने के हालत नहीं होते
किसी का सहारा लेकर चलते है
बात बात पर मचलते है
और जाने क्या सोच कर ,
कभी मुस्कराते है,कभी हँसते है
वैसे ये भी आपने देखा होगा ,
कि सूर्योदय और सूर्यास्त की छवि ,
एक जैसी दिखती है
पर सूर्योदय के बाद जिंदगी खिलती है
और सूर्यास्त के बाद जिंदगी ढलती है
दोनों सा एक जैसा बतलाना हमारी गलती है
'फ्रेश अराइवल ' के माल को ,
'एन्ड ऑफ़ सीजन 'के सेल वाले माल से ,
कम्पेयर करना कितना गलत है
आपका क्या मत है ?
छोटे बच्चों को ,सुंदर महिलाएं
रुक रुक कर प्यार करती है
कभी गालों को सहला कर दुलार करती है
कभी सीने से चिपका लेती है
कभी गोदी में बैठा लेती है
कभी अपने नाजुक होठों से ,
चुंबन की झड़ी लगा देती है
क्या आपने कभी ऐसा,
किसी बूढ़े के साथ होते हुए देखा है
नहीं ना ,भाई साहब ,
ये तो किस्मत का लेखा है
बूढ़े तो ऐसे मौके के लिए ,
तरस तरस जाते है
अधूरी हसरत लिए ,
दिल को तड़फाते है
कोई भी कोमलंगिनी
उनके झुर्राये गालों को नहीं सहलाती
चुंबन से या सीने से चिपका ,
मन नहीं बहलाती
न कभी कोई बाहों में लेती है
उल्टा 'बाबा' कह कर के दिल जला देती है
बेचारे बूढ़े ,आँखों में प्यास लिए ,
मन ही मन है रोते
यही सोच कर की ,
हम भी अगर बच्चे होते
मदन मोहन बाहेती 'घोटू '