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गुरुवार, 14 दिसंबर 2017

उत्तेजना 

उत्तेजना ,
शरीर की वो अवस्था है 
जिसमे शरीर के ज्वालामुखी का ठंडा पड़ा खून ,
लावे सा पिघलता है 
तन मन में होने लगता है कम्पन 
कितनी ही बार और कितने तरीकों से ,
जीवन में आते है ऐसे क्षण 
जैसे जब गरीब की सहनशीलता ,
जब अपनी सीमाएं पार कर जाती है 
तो उसके मन में ,
विद्रोह की उत्तेजना भर जाती है 
इसका कारण होता है उसकी मजबूरी और बेबसी 
समाज की उपेक्षा,व्यंग और हँसी 
आदमी खुद को और अपनी किस्मत को कोसता है 
फिर कैसे भी बदला लेने की सोचता है 
ऐसेलोगों की उत्तेजित भीड़ के स्वर 
देते है सत्ताएं बदल  
या फिर कोई ऊंचा पद पाकर 
और अपनी प्रतिष्ठा पर इतराकर 
जब आदमी में भर जाता है अहंकार 
तो थोड़ी सी अवहेलना होने पर ,
उत्तेजना पूर्ण हो जाता है उसका व्यवहार 
अपने अहम की संतुष्टी न होने पर ,
वह क्रोध से भर जाता है 
उसका विवेक मर जाता है 
वह अपमानित महसूस कर अंटशंट बकता है 
और उसमे भर जाता है आक्रोश 
और इसका बदला लेकर ही उसे मिलता है संतोष 
इतिहास गवाह है 
ऐसी उत्तेजना करते अफसर,नेता और शहंशाह है 
तीसरा छोटी छोटी बातों पर बिना मतलब 
कोई बिगड़ जाता है जब तब 
गुस्से में नाराज हो वार्तालाप करने लगता है 
अनर्गल प्रलाप करने लगता है 
लड़ने को आतुर हो जाता है 
अपनी औकात  से बाहर निकल जाता है 
ऐसी तुनकमिजाजी भी होती है एक बीमारी 
कम कूवत ,गुस्सा भारी 
और उत्तेजना का चौथा रूप 
होता है बड़ा प्यारा और अनूप 
जब यौवन की चपलता और रूप की सुगढ़ता,
देती है प्यार का आव्हान 
तो आदमी की शिराओं में ,
उमड़ता है भावनाओं का तूफ़ान 
जो तोड़ देता है सारे बंधन 
और उत्तेजित कर देता है तन मन 
उत्तेजना के ये क्षण 
होते है विलक्षण 
आदमी भाव विभोर हो जाता है 
एक दूसरे में खो जाता है 
ये उत्तेजना बड़ी मतवाली होती है 
बड़ी सुखकर और प्यारी होती है 

मदन मोहन बहती]घोटू]

मंगलवार, 12 दिसंबर 2017

हुस्न की मार से बचना 

नजाकत से,नफासत से ,अदाओं से करे घायल 
और उनकी मुस्कराहट भी ,बड़ी ही कातिलाना है 
बड़ी मासूम सी सूरत ,बड़ी चंचल  निगाहें है 
काम इन हुस्न वालों का,कयामत सब पे ढाना है 
जरूरी ये नहीं होता ,कि हर एक फूल कोमल हो,
टहनियों पर गुलाबों की ,लगा करते है कांटे भी 
हथेली फूल सी नाजुक,सम्भल कर इनको सहलाना ,
ख़फ़ा जो हो गए ,इनसे,लगा करते है चांटे  भी 
बड़ी ही खूबसूरत सी ,उँगलियाँ उनकी कोमल है ,
नजाकत देख कर इनकी ,आप क्या सोच सकते है 
सिरे पर उँगलियों के जो, दिए नाख़ून कुदरत ने,
कभी हथियार बन ये आपका मुंह नोच सकते है 
गुलाबी होठ उनके देख कर मत चूमने बढ़ना,
ये गुस्से में फड़क कर के ,तुम्हे है डाट भी सकते 
छिपे है दांत तीखे  इन गुलाबी पखुड़ियों पीछे ,
हिफ़ाजत अपनी करने को ,तुम्हे है काट भी सकते 
रंगे हो नेल पोलिश से  ,निखारे रूप नारी का ,
प्रेम में बावले होकर ,ये नख है  क्षत किया करते 
पराकाष्ठा हो गुस्से की ,तो ये हथियार बन जाते ,
बड़ी आसानी से दुश्मन ,को ये आहत किया करते 
ये कटते ,खून ना आता ,तभी  नाखून कहलाते,
बड़ी राहत ये देते है ,बदन को जब खुजाते  है 
हमारे जिस्म पर एक बाल है और एक नाखून है ,
कोई चाहे या ना चाहे,दिन ब दिन बढ़ते जाते है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू '
विराट 

मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये 
खिलाडी  है   धुरंधर 
जोश है जिसके अंदर 
नहीं कोई से डरता 
रनो की बारिश करता 
खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थमकर
मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये  
सभी का प्यारा है ये,खिलाड़ी सबसे सुन्दर 
दनादन मस्त कलंदर ,दनादन मस्त कलंदर 
इरादे इसके पक्के 
मारता चौके,छक्के 
कापने लगता दुश्मन 
हांफने लगता दुश्मन 
 खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थम कर 
मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये 
खड़ा जब ये करता है ,रनो का एक समन्दर 
दनादन मस्त कलंदर,दनादन मस्त कलंदर 
शेर बन जाते बिल्ली 
उड़े जब उनकी गिल्ली 
क्रिकेट का ये दीवाना 
खिलाड़ी बड़ा सयाना
खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थमकर 
मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये  
सेन्चुरी मारा करता,मिले जब कोई अवसर 
दनादन मस्त कलंदर,दनादन मस्त कलंदर 
क्रिकेट की जान है ये 
देश की शान है ये 
जहाँ भी जाकर खेले 
रनो की बारिश पेले
मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये 
खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थमकर  
सभी से रखे बनाकर ,खिलाडी सबसे सुन्दर 
दनादन  मस्त कलंदर,दनादन  मस्त कलंदर
टेस्ट हो या फिर वनडे 
इसके आगे सब ठन्डे  
कोई ना आगे ठहरे 
जीत का झंडा फहरे 
मेरा विराट है ये 
क्रिकेट सम्राट है ये 
खेलता है जब जमकर 
देखते है सब थमकर 
ट्वेंटी ट्वेंटी में भी ,कोई ना इससे बेहतर 
दनादन मस्त कलंदर ,दनादन मस्त कलंदर 
ले गयी दिल है उसका 
मिल गयी उसे अनुष्का
सेन्चुरी मारी लव  ने  
बना दी जोड़ी रब ने 
रनो सी खुशियां बरसे 
जिंदगी उनकी हरषे 
दुआ है ये हम सबकी 
मेहर हो उन पर रब की
 प्यार में डूबे रह कर 
रहे ये खुश  जीवन भर 
दनादन मस्त कलंदर ,दनादन मस्त कलंदर 

मदन मोहन बाहेती'घोटू 
मैं गधे का गधा ही रहा 

प्रियतमे तुम बनी ,जब से अर्धांगिनी ,
      मैं हुआ आधा ,तुम चौगुनी बन  गयी 
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
         गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मै तो दीपक सा बस टिमटिमाता रहा ,
        तुम शीतल,चटक चांदनी बन गयी 
मैं तो कड़वा,हठीला रहा नीम ही,
     जिसकी पत्ती ,निबोली में कड़वास है 
पेड़ चन्दन का तुम बन गयी हो प्रिये ,
  जिसके कण कण में खुशबू है उच्छवास है 
मैं तो पायल सा खाता रहा ठोकरें ,
    तुम कमर से लिपट ,करघनी बन गयी 
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा ,
       गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी 
मैं था गहरा कुवा,प्यास जिसको लगी ,
     खींच कर मुश्किलों से था पानी पिया 
तुम नदी सी बही ,नित निखरती गयी ,
     पाट चौड़ा हुआ ,सुख सभी को दिया 
मैं तो कांव कांव, कौवे सा करता रहा ,
            तुमने मोती चुगे ,हंसिनी बन  गयी    
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
        गाय थी तुम प्रिये, शेरनी बन गयी 
मैं तो रोता रहा,बोझा ढोता रहा ,
         बाल सर के उड़े, मैंने उफ़ ना करी 
तुम उड़ाती रही,सारी 'इनकम' मेरी,
        और उड़ती रही,सज संवर,बन परी   
मैं फटे बांस सा ,बेसुरा  ही रहा,
          बांसुरी तुम मधुर रागिनी बन गयी
मैं गधा था ,गधे का गधा ही रहा,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी  
फ्यूज ऐसा अकल का उड़ाया मेरी ,
           सदा मुझको कन्फ्यूज करती रही 
मैं कठपुतली बन  नाचता ही रहा ,
          मनमुताबिक मुझे यूज करती रही
मैं तो कुढ़ता रहा और सिकुड़ता रहा ,
          तुम फूली,फली,हस्थिनी  बन गयी 
मैं गधा था गधे का गधा ही रहा ,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन गयी   
ऐसा टॉफी का चस्का लगाया मुझे,
        चाह में जिसकी ,मैं हो गया बावला 
अपना जादू चला ,तुमने ऐसा छला ,
           उम्र भर नाचता मैं रहा मनचला 
मैं दिये  की तरह टिमटिमाता रहा,
     तुम शीतल ,चटक चांदनी बन गयी 
मैं गधा था,गधे का गधा ही रहा ,
          गाय थी तुम प्रिये ,शेरनी बन  गयी 
         
मदन मोहन बाहेती'घोटू'
किशोर अवस्था का अधकचरा कस्बाई इश्क़ 

बीत जाती है जब बचपन की उम्र सुहानी 
और थोड़ी दूर होती है जवानी 
ये उमर का वो दौर होता है 
जब आदमी किशोर होता है 
जवानी की आहट ,आपकी  मसें भिगोने लगती है
और  आपकी  बातें प्रायवेट होने लगती है  
जब आप फ़िल्मी हीरो की तरह ,
खुद को संवारने लगते है 
और आईने के सामने खड़े होकर ,
खुद को निहारने लगते है 
जब आप अपनी लुक्स के प्रति ,
थोड़े जागरूक  होकर बोलने लगते है 
और  अपनी बाहुओं को दबा,
अपनी मसल्स टटोलने लगते है 
जब आप अपने होठों को गोल करके ,
बजाने लगते व्हिसिल है 
हर सुंदरी पर ,आ जाता आपका दिल है 
जी हाँ ,हम सबकी जिंदगी 
उमर के इस दौर से गुजरी है 
आज भी जब कभी कभी ,
वो बीती यादें होती हरी है 
तो याद आ जाते है वो दिन ,
जब हम नौसिखिये आशिक़ हुआ करते थे 
गाँव की हर सुन्दर लड़की पर मरते थे 
उन दिनों हमारा इश्क़ कस्बाई होता था 
अलग अलग तरीकों से ट्राई होता था 
क्योंकि तब  न  व्हाट्सएप था ,
न वाई फाई होता था 
न फेसबुक न ई  मेल होता था 
बस आँखों ही आँखों में सारा खेल होता था 
जिसमे कोई पास और कोई फ़ैल होता था 
कोई लड़का ,किसी लड़की को ,
टकटकी लगा कर देखता तो उसे ताड़ना कहते थे 
और दोनों आंख्यों में से एक आँख को,
किसी को देख कर ,क्षणिक रूप से बंद कर खोलने को 
आँख मारना कहते थे 
कोई चीज ,प्रत्यक्ष रूप से किसी पर फेंकी नहीं जाती ,
फिर भी लोग फेंकते हुए नज़र आते है 
ऐसे लोग ,दिलफेंक लोग कहलाते है 
तो  लड़की को पटाने के लिए ,
पहले हम लड़की को ताड़ते थे 
फिर आँख मारते थे 
फिर सामने वाली का रिएक्शन देखते थे 
फिर उस पर दिल फेंकते थे 
ये सब क्रियाये मौन रूप से होती थी 
प्रत्यक्ष दिखाई नहीं पड़ती थी 
पर उन दिनों दोस्ती ऐसे ही बढ़ती थी 
 हमारा पार्ट टाइम शगल होता था ,
येन केन प्रकारेण लड़की को पटाना 
और बात नहीं बने तो छटपटाना 
जब किसी की किसी से आँख लड़ती थी 
तो थोड़ी बात आगे बढ़ती थी 
और हम यार दोस्तों में डींगे मारते थे 
'आज वो हमको देख कर मुस्कराई थी'
शेखी बघारते थे 
अपने छोटे छोटे अचीवमेंट,
 दोस्तों से शेयर करते थे 
और माशूका का नाम लेकर आहें भरते थे 
हमारा एक मित्र जिसका बाप मंदिर का था पुजारी
और आरती के बाद ,
जब आती थी प्रसाद बांटने की बारी  
तो वो अपनी मनपसंद लड़की को ,
प्रसाद देने के बहाने उसका हाथ दबा देता था ,
थोड़ा ज्यादा प्रसाद पकड़ा देता था 
और इस तरह बात आगे बढ़ा देता था 
एक दोस्त लाला का लड़का था ,
जो सौदा लेने आई लड़की को ,
एक दो टॉफी मुफ्त में पकड़ा ,
उसके हाथ सहला लेता था 
और इस तरह अपना मन बहला लेता था 
कितने ही क्षणभंगुर अफेयर ,
कितनो के ही साथ हुए और टूटे 
इस चक्कर में कितने ही यार दोस्त रूठे 
और कई बार तो ऐसी नौबत भी आई 
कि अपनी ही प्रेमिका की हमने बिदाई करवाई 
आज की जनरेशन को ,
पुराने जमाने के ये तरीके,
 बड़े ओल्ड फैशन के लगते होंगे ,
पर उन दिनों ये ही चलते थे 
क्योंकि हम माँ बाप और जमाने से बहुत डरते थे 
पर हम सब ने कभी न कभी इन्हे ट्राय किया  है
और सच ,बहुत एन्जॉय किया है 
कच्ची उमर के उस अधकचरे कस्बाई इश्क़ की,
वो बाते आज भी जब याद आती है 
हमें अपनी उन बचकानी हरकतों पर ,
बहुत हंसी आती है 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

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