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शनिवार, 7 मई 2016

मै खाउं ठंडी हवा,धूप तुम खाओ

      मै खाउं ठंडी हवा,धूप तुम खाओ

इस मंहगाई में ,ऐसे पेट भरे हम ,
   मै खाऊं ठंडी हवा ,धूप  तुम खाओ
मै पीयू गम के घूँट ,पियो तुम गुस्सा ,
    जैसे तैसे भी अपनी प्यास बुझाओ
हम नंगे क्या नहाएंगे,क्या धोएंगे
छलका अश्रुजल ,सौ आंसू राएंगे
मै तेरे ,  तू मेरे   आंसूं  पी लेना
जी लगे ना लगे ,बस यूं ही जी लेना
मै नकली हंसी ओढ़ कर खुश हो लूँगा ,
तुम मुख पर, फीकी हंसी लिए मुस्काओ
इस मंहगाई में ऐसे पेट भरे हम,
मै खाउं ठंडी हवा ,धूप तुम खाओ
ऐसी होती यह आश्वासन की रोटी
कितनी ही खालो,भूख नहीं कम होती
वादों की बरसातें कितनी बरसे
जनता बेचारी पर प्यासी ही तरसे
मै खाकर  के ,ख्याली पुलाव जी लूँगा,
तुम झूंठे सपनो की बिरयानी खाओ
इस मंहगाई में ऐसे पेट भरे हम,
मै खाऊं ठंडी हवा,धुप तुम खाओ

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

शनिवार, 30 अप्रैल 2016

ये दिल मांगे मोर

              ये दिल मांगे मोर 

हमने सारी उमर बिता दी ,करने में 'टू प्लस टू 'फोर '
जितना ज्यादा इसको मिलता ,उतना 'ये दिल मांगे मोर '
पहले पैदल ,बाद सायकल ,फिर स्कूटर,मोटरकार
ज्यों ज्यों करते रहे तरक्की ,त्यों त्यों बदला ये संसार
पहले 'सेकण्ड हेंड'मारुति,फिर 'टोयोटा' मर्सिडीज '
जैसे जैसे  पैसा आया ,'स्टेंडर्ड' में ,थी 'इनक्रीज '
छोड़ा गाँव,शहर आये थे ,लिया किराए ,एक मकान
और बाद में फ्लेट खरीदा ,अब बंगला है आलिशान
बदल गया परिवेश,हमेशा ,रहे  दिखाते   झूंठी शान
मंहगा सूट पहनते बाहर ,अंदर फटा हुआ बनियान
बाहर इन्सां ,कितना बदले ,अंदर बदल न पाता है
सब कुछ होता ,देख पराई,पर फिर भी ललचाता है
तुमने कभी नहीं सोचा ये ,नित इतनी खटपट करके
काली पीली करी कमाई , रखी तिजोरी में भरके
नहीं तुम्हारे काम आएगी,तुम्हारी  सारी  माया
जाता खाली हाथ आदमी ,खाली ही हाथों आया
बाहर का परिवेश न बदलो,अंतर्मन  बदलाओ तुम
प्रभु ने अगर समृद्धि दी है ,थोड़े पुण्य  कमाओ  तुम
क्योंकि एक यही पूँजी जो जानी साथ तुम्हारे  है
रिश्ते नाते ,धन और  दौलत ,यहीं छूटते सारे है
मेरा ये है,मेरा वो है ,जितनो  के गुण  गाओगे
जीर्णशीर्ण जब होगी काया ,फूटी आँख न भाओगे
दीन दलित की सेवा में तुम,हो देखो ,आनंद विभोर
वर्ना जितना इसको मिलता ,उतना'ये दिल मांगे मोर '

 मदन  मोहन बाहेती'घोटू'



विवाह की वर्षग्रन्थी पर

विवाह की वर्षग्रन्थी पर

मिलन का पर्व है ये ,आज बंधा था बंधन ,
ऐसा लगता है जैसे बात कोई हो कल की
बड़ी शर्माती तुम सिमटी थी मेरी बांहों में,
भुलाई जाती नहीं ,यादें सुहाने पल  की
तुम्हारे आने से ,गुलजार हुआ ये गुलशन,
बहारें छा गई,रंगीन  हुआ हर मौसम ,
बड़ा खुशहाल  हुआ,खुशनुमा मेरा जीवन,
मिली है जब से मुझे ,छाँव  तेरे आंचल की  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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