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शनिवार, 30 अप्रैल 2016

ये दिल मांगे मोर

              ये दिल मांगे मोर 

हमने सारी उमर बिता दी ,करने में 'टू प्लस टू 'फोर '
जितना ज्यादा इसको मिलता ,उतना 'ये दिल मांगे मोर '
पहले पैदल ,बाद सायकल ,फिर स्कूटर,मोटरकार
ज्यों ज्यों करते रहे तरक्की ,त्यों त्यों बदला ये संसार
पहले 'सेकण्ड हेंड'मारुति,फिर 'टोयोटा' मर्सिडीज '
जैसे जैसे  पैसा आया ,'स्टेंडर्ड' में ,थी 'इनक्रीज '
छोड़ा गाँव,शहर आये थे ,लिया किराए ,एक मकान
और बाद में फ्लेट खरीदा ,अब बंगला है आलिशान
बदल गया परिवेश,हमेशा ,रहे  दिखाते   झूंठी शान
मंहगा सूट पहनते बाहर ,अंदर फटा हुआ बनियान
बाहर इन्सां ,कितना बदले ,अंदर बदल न पाता है
सब कुछ होता ,देख पराई,पर फिर भी ललचाता है
तुमने कभी नहीं सोचा ये ,नित इतनी खटपट करके
काली पीली करी कमाई , रखी तिजोरी में भरके
नहीं तुम्हारे काम आएगी,तुम्हारी  सारी  माया
जाता खाली हाथ आदमी ,खाली ही हाथों आया
बाहर का परिवेश न बदलो,अंतर्मन  बदलाओ तुम
प्रभु ने अगर समृद्धि दी है ,थोड़े पुण्य  कमाओ  तुम
क्योंकि एक यही पूँजी जो जानी साथ तुम्हारे  है
रिश्ते नाते ,धन और  दौलत ,यहीं छूटते सारे है
मेरा ये है,मेरा वो है ,जितनो  के गुण  गाओगे
जीर्णशीर्ण जब होगी काया ,फूटी आँख न भाओगे
दीन दलित की सेवा में तुम,हो देखो ,आनंद विभोर
वर्ना जितना इसको मिलता ,उतना'ये दिल मांगे मोर '

 मदन  मोहन बाहेती'घोटू'



विवाह की वर्षग्रन्थी पर

विवाह की वर्षग्रन्थी पर

मिलन का पर्व है ये ,आज बंधा था बंधन ,
ऐसा लगता है जैसे बात कोई हो कल की
बड़ी शर्माती तुम सिमटी थी मेरी बांहों में,
भुलाई जाती नहीं ,यादें सुहाने पल  की
तुम्हारे आने से ,गुलजार हुआ ये गुलशन,
बहारें छा गई,रंगीन  हुआ हर मौसम ,
बड़ा खुशहाल  हुआ,खुशनुमा मेरा जीवन,
मिली है जब से मुझे ,छाँव  तेरे आंचल की  

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 28 अप्रैल 2016

   'जस्य नारी पूज्यन्ते '

मेरा एक यार है
जो अपनी पत्नी से करता तो बहुत प्यार है
पर कभी भी ,अपने प्यार का प्रदर्शन नहीं करता
बीबी को है टाइट रखता
हमेशा रौब दिखलाता है
बेचारी का दिल जलाता है
एक दिन मैंने पूछ लिया यार
तू  भाभीजी से करता है इतना प्यार
तो सबके सामने ,
क्यों करता है एसा कटु व्यवहार
क्यों इस तरह से उसे रहा है सता
क्या तुझे नहीं पता
'जस्य नारी पूजयन्ते ,रमन्ते तत्र देवता '
पत्नी की पूजा कर , देवता आएंगे
तेरे घर को स्वर्ग बनाएंगे
मित्र बोला,बस बस ,ये ही तो कारण है
जिसकी वजह से ,
तुम्हारी भाभी को पूजने का ,
नहीं होता मेरा मन है
मै चाहता देवता आएं
मेरे घर के आसपास मंडराएं
क्योंकि स्वर्ग की अप्सराओं ने ,
उन्हें इतना दिया है बिगाड़
हमेशा मौके की तलाश में ,
ढूंढते  रहते है जुगाड़
और उनका राज इंद्र तो ख़ास
है एक नंबर का बदमाश
गौतम ऋषि का रूप धर ,
अहिल्या को भरमाया
बेचारी को श्राप से ,पत्थर की शिला बनाया
मै ,पत्नी को पूजूँगा तो ये,
 मेरे घर के आसपास करेंगे विचरण
मै ऐसे मनचलों को,क्यों दूँ  निमंत्रण
बड़े आशिक़ मिज़ाज़ है ये सारे के सारे
और मै  नहीं चाहता ,
मेरी बीबी पर कोई लाइन मारे

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

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