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रविवार, 10 अप्रैल 2016

सांसें बहुएं एक सरीखी

            सांसें बहुएं एक सरीखी

औरत होकर भी औरत का ,साथ निभाना ये ना सीखी
सारी  सासें    एक सरीखी, सारी  बहुएं   एक  सरीखी
चाहे मीठी बात बना कर ,बातें करती हो शक्कर सी
पर जब भी मौका मिलता है ,आपस में देती टक्कर
हरी ,लाल हो चाहे काली , हर  मिरची  होती है तीखी
सारी सांसें  एक सरीखी ,सारी  बहुएं  एक  सरीखी
माँ  सोचे  बेटा बेगाना  हुआ , हुई  शादी  उस पल से
बहू सोचती कैसा पति है ,बंधा रहे माँ के   आंचल  से
 ऐसी ही तो तू तू,मै मै ,होती हर घर में है दिखी
 सारी  सांसें एक सरीखी,सारी   बहुएं  एक सरीखी
चाहे सास ,इजाजत के बिन,उसकी हिले न कोई पत्ता
बहू चाहे ,हो जाए रिटायर ,सास ,सौंप कर घर की सत्ता
बंद हो जाए टोका टाकी , ताने देना ,  बातें  तीखी
सारी  सांसें  एक सरीखी , सारी बहुएं एक सरीखी
उसको,खुद को,नहीं बहू की ,जो जो बातें कभी सुहाती
उल्टा सीधा पाठ पढ़ा कर ,बेटी को  वो ही सिखलाती 
इस चक्कर में ,दोनों रहती,इक दूजे से कटी कटी सी
सारी  सांसें एक सरीखी  ,सारी  बहुएँ   एक  सरीखी
 वो भी तो थी बहू एक दिन ,उसने भी सांसें झेली है
साँसों की बॉलिंग के आगे ,बेटिंग कर, पाली खेली है
'स्पिन'और' फास्ट' थी बॉलिंग,फिर भी है मैदान पर टिकी
सारी   सांसें  एक  सरीखी ,सारी  बहुएं  एक  सरीखी
बहू दूध है  ताज़ा ताज़ा ,सास  पुराना  जमा  दही  है
करे न तारीफ़ ,कोई किसी की ,उल्टी गंगा कभी बही है
माँ बीबी के बीच फजीहत ,होती है बेचारे  पति की
सारी   सांसें  एक  सरीखी ,सारी  बहुएं  एक सरीखी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 8 अप्रैल 2016

लेन देन

लेन देन

मैंने उनसे माँगा कुछ दो
वो बोली,मै क्या,तुम कुछ दो
मैंने कुछ ऐसा दे डाला
उनको लगा बहुत जो प्यारा
वो भी देती ,वैसा होता
बिलकुल मेरे जैसा होता
हुआ प्रफुल्लित दोनों का मन
मैंने उन्हें दिया था ...... ?

घोटू

तो कहो क्या बात है

             तो कहो क्या बात है

चाय तक की भी कभी ना ,पूछता कंजूस जो,
        घर बुला,बोतल भी  ही खोले ,तो कहो  क्या बात है 
कोई महिला रूपसी ,मुस्काये,तुमको लिफ्ट दे,
           और अंकल भी न बोले , तो  कहो क्या बात  है
करने को भगवान का दर्शन जो मंदिर जाओ तुम,
            खाने  भंडारा मिले जो , तो कहो  क्या बात है
भाग्य से बिल्ली के इसको कहते छींका टूटना,
            रहे चलते सिलसिले जो, तो कहो क्या बात है
पहने वो मलमल का कुरता ,और वो भी हो सफेद ,
            पानी में हो तरबतर जो ,तो कहो क्या बात है
इसको कहते, देता देने वाला छप्पर फाड़ के
       मुंह में फिर तो घी और शक्कर ,तो कहो क्या बात है  

 मदन मोहन बाहेती'घोटू'
         

 

यही अंजाम होता है

     यही अंजाम होता है

अगर शादी करो तुम तो ,यही अंजाम होता है
तुम्हारी बीबी के पीछे ,तुम्हारा  नाम होता है
प्रबल है बल नहीं होता,प्रबल स्थान होता है
गाँव की चीज ,मालों में ,चौगुना दाम होता है
सामने तारीफें करके ,किसीके चाटना तलवे,
बुराई पीठ  के पीछे , बुरा  ये  काम  होता  है
जहां पर आस्था होती,वहां शांति बरसती है ,
जहाँ पर राम ना होते, वहां कोहराम होता है
प्रेम से गाल तुम्हारे ,सिरफ सहलाती बीबी है ,
दूसरा जो ये कर सकता  ,वो हज्जाम होता है

घोटू 
 बदकिस्मती

मेरी बदकिस्मती की इंतहां अब और क्या होगी ,
       कि जब भी 'केच' लपका ,'बाल' वो 'नो बाल 'ही निकली
ख़रीदे टिकिट कितने ही ,बड़ी आशा लगा कर के,
          हमारी  लॉटरी  लेकिन ,नहीं  एक  बार ही  निकली
हमेशा जिंदगी में एक ऐसा दौर आता है ,
            हमे  मालूम  पड़ता जब कि क्या होती है बदहाली
सिखाता वो रहा हमको ,कि कैसे जीते मुश्किल में ,
               और हम व्यर्थ में  उसको ,यूं  ही  देते  रहे गाली
  
 घोटू
                      

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