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गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

उसकी कुछ मजबूरी होगी

          उसकी कुछ मजबूरी होगी
 
तुम्हे शिकायत भूल गई औलाद तुम्हे है
भूले भटके से  ही  करती   याद तुम्हे  है
हो सकता है  उसकी कुछ मजबूरी  होगी
तभी बनाई उसने  तुमसे  दूरी   होगी
अब तक वो तुम्हारा ,प्यारा ,मृगछौना था
जो पुलकित करता  घर का कोना कोना  था
बंधा हुआ था  तुम्हारे   ममता   बंधन  में
बिखराया करता था खुशियां घर ,आँगन में
बड़ा हुआ कुछ जिद्दी और स्वच्छंद,मचलता
तुम्ही ने तो दूर हटाने , यह  उच्श्रृंखलता
ख़ुशी ख़ुशी  से बाँधा था गृहस्थ बंधन में
जाने क्या क्या ,सुन्दर सपन सजाये मन में
प्यारी सी पायल खनकाती ,बहू  नवेली
और बाद में ,पोते  की  प्यारी  अठखेली
शायद  यहीं गलत सा था कुछ तुमने आँका
ये गठबंधन ,बन जाएगा ,ऐसा   टांका
जो कि काँटा बन कर पीर तुम्हे ही देगा
तुमसे  ,तुम्हारा प्यारा बेटा  छीनेगा
जिस पर इतना प्यार लुटाया ,पाला ,पोसा
जिस पर तुमने ,इतना ज्यादा किया भरोसा ,
इतने वर्षों ,किया कराया ,व्यर्थ जाएगा
चार दिनों में ,पत्नी संग पा ,बदल जायेगा
सागर सीना चीर ,उठे है दल ,बादल   के
जब भी पड़े दबाब ,वहीँ उनका जल  छलके
सागर ,जनक बादलों के ,इसमें न जरा शक
रहता नहीं बादलों पर उनका कोई हक़
करता उन्हें दबाब नियंत्रित और  हवायें
जो कि घुमाती रहती उनको दांयें,बाएं
नीर भरे वो पर अब  बेबस से लगते है
अरे सूर्य को सूर्य जनित ,बादल  ढकते है
होता ये ही हाल  पति का  सम्मोहन से 
शक्तिहीन वह होता ,पत्नी के दोहन   से
होता दूध पिलाया सारा  ,असरहीन है
पूर्ण रूप से होता वह पत्नी  अधीन  है
जिसके साथ बिताना उसको जीवन सारा
तो फिर ख्याल रखे उसका या फिर तुम्हारा
शेष तम्हारा जीवन कितना,चंद  घड़ी है
उसके आगे , उसकी लम्बी  उमर  पडी है
रोज रोज की किच किच और झगड़े बच कर
अपने ढंग से चाह  रहा है,वो जीना  गर
तो जीने दो ,तुम भी अपने ढंग से खेलो
उमर बची है जितनी भी,पूरा रस ले लो
सच्चे दिल से सदा रही है  चाह तुम्हारी
ख़ुशी ,स्वस्थ और  सुखी रहे  औलाद तुम्हारी 
 चाह  सुखी जीवन की उसकी पूरी  होगी
तभी बनाई उसने तुम से  दूरी होगी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

 





नए साल का आगाज़ 2000 +16 =2016

       नए साल का आगाज़
         2000 +16 =2016

ये 'दोहज़ारन ' अपनी, जवान  हो गई है
हो गई  उमर  सोलह ,शैतान   हो गई  है
कभी 'ओबामा' की बाहों, में डाले है गलबैयां
कभी 'पुतिन' को पटाये ,कभी 'ली'से छैयां छैयां
कभी वो नवाज शरीफ पे,मेहरबान हो गई है
ये 'दो हज़ारन' अपनी ,जवान हो गई   है
शोहदे गली के छेड़े, उसको  अकड़ अकड़ कर
दुनिया में उसका जादू ,बोले है सर पर चढ़ कर
उड़ती  फिरे हवा में ,तूफ़ान हो गई  है
ये ' दोहज़ारन' अपनी,जवान  हो गई है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

               

नए साल का आगाज़ 2000 +16 =2016

       नए साल का आगाज़
         2000 +16 =2016

ये बीस हज़ारो अपनी, जवान  हो गई है
हो गई  उमर  सोलह ,शैतान   हो गई  है
कभी 'ओबामा' की बाहों, में डाले है गलबैयां
कभी 'पुतिन' को पटाये ,कभी 'ली'से छैयां छैयां
कभी वो नवाज शरीफ पे,मेहरबान हो गई है
ये बीस हज़ारो अपनी ,जवान हो गई   है
शोहदे गली के छेड़े, उसको  अकड़ अकड़ कर
दुनिया में उसका जादू ,बोले है सर पर चढ़ कर
उड़ती  फिरे हवा में ,तूफ़ान हो गई  है
ये बीस हज़ारो अपनी,जवान  हो गई है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

               

बुधवार, 23 दिसंबर 2015

जमीन से जुडी चीजें

        जमीन से जुडी चीजें

जो चीजें जमीन से जुडी हुई होती है ,
जमीन से जुड़े लोगों के बहुत काम आती है
दुःख ,तकलीफ में ,हमेशा साथ निभाती है
पेट भरती है,प्यास बुझाती है
और जमीन से ऊपर उठे हुए ,
लोग ही नहीं,वृक्ष और फूल और फल,
जो अपनी ऊंचाई के कारण बड़े इतराते है
ये भूल जाते है
कि क्योंकि उनकी जड़ें जमीन से जुडी हुई है ,
इसीलिये ही वो फूल फल पाते है
जल जीवन होता है
वह भी जमीन से जुड़ा होता है
भले ही आसमान से बरसता है 
पर पहले जमीन से जुड़ता है
और फिर दुनिया की प्यास बुझाता है
 इंसान के हर काम में ,
सुबह से शाम आता है   
जमीन से जुडी हुई सब्जियां ,
आलू और प्याज सब है
हमेशा सस्ती और सुलभ है
भले ही दालों के दाम आसमान  चढ़ जाए
भले ही मंहगाई कितनी भी जाए
गरीबो के भोजन में हमेशा साथ निभाये
जमीन से जुडी अदरक महान है
और दबी हुई लहसुन ,गुणों की खान है
और अच्छे अच्छे रईसो के,
बावर्ची खाने की शान है
जमीन से जुडी हुई हल्दी ,
न केवल भोजन का स्वाद बढ़ाती है
वरन गौरी के हाथ भी पीले करवाती है
जब शरीर पर लगती है ,रूप निखार देती है
उसका जीवन संवार देती है
और जमीन से जुडी हुई मूंगफली ,
गरीबों की बादाम है
इसका अपना स्वाद है,अपनी शान है
धरती हमारी माता है
इसलिए इससे जुडी हुई चीजों में ,
मातृत्व का गुण समाता है
जमीन से जुडी हुई अधिकतर सब्जियां,
ज्यादा टिकाऊ होती है,जैसे माँ का प्यार
आलू,प्याज,अदरक,लहसुन ,आदि आते है पूरे साल
बाकी सब सब्जिया मौसमी कहलाती है 
और ऋतु के अनुसार आती जाती है 
जमीन से जुडी चाहे मूली सफेद हो या गाजर लाल है
पर सब की सब  ढेर सारे गुणों का भण्डार है
इसलिए जो लोग धरती ,
याने अपनी माँ  से जुड़े रहते है  
लोग उन्हें धरती का लाल कहते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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