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गुरुवार, 26 नवंबर 2015

नई जनरेशन के भाव

    नई  जनरेशन के भाव

ना तो देती भाव किसी को ,
उस पर भाव सभी से खाती ,
बड़ी भावना शून्य हो गयी
        अरे आज की ये जनरेशन
ब्रांडेड शोरूमों में जा कर ,
सीधे से परचेसिंग  करती ,
मोल भाव करना ना जाने ,
        सिर्फ देखती ताज़ा फैशन
सबको आदर भाव  दिखाना 
प्रेम  और सदभाव  दिखाना
भूल  गई सब संस्कार को,
         ऐसा अजब स्वभाव हो गया
उल्टा सीधा रहन सहन है
उल्टा सीधा खाना पीना ,
वेस्टर्न कल्चर  का उन पर,
         इतना अधिक प्रभाव  हो गया
 इतनी ज्यादा आत्मकेंद्रित ,
और गर्वित रहती है खुद पर ,
मातपिता और भाई बहन के ,
         भुला दिए है रिश्ते  सारे
 ये सब माया की माया है
जिसने उनमे अहम भर दिया ,
ढलने जब ये उमर  लगेगी,
           दूर बहम तब होगें सारे    

  मदन मोहन बाहेती 'घोटू'           



 

बोनसाई

      बोनसाई

अपनी जड़ें कटवाने के बाद,
पनपे हुए पौधे ,
बोनसाई हो जाते है
उनकी मानसिकता भी बौनी हो जाती है
उनके पत्ते ,फूल या फल ,
सजावट के लिए सुंदर दिखते है ,
पर उनकी उपयोगिता ,शून्य हो जाती है
इसलिए ,जड़ों से जुड़े रहो ,
जड़ें मत कटवाओ
वरना संगेमरमर की टेबल मे ,
जड़े हुए रत्नो की तरह ,
तुम भी जड़ हो जाओगे

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

माँ की पीड़ा

          माँ की पीड़ा

बेटा,तेरी ऊँगली पकड़े ,तुझे सिखाती थी जब चलना,
मैंने ये न कभी सोचा था , ऊँगली मुझे दिखायेगा तू 
माँ माँ कह कर,मुझको पल भर ,नहीं छोड़ने वाला था जो,
ख्याल स्वपन में भी ना आया ,इतना मुझे सताएगा तू
तुझको अक्षर ज्ञान कराया ,हाथ पकड़ कर ये सिखलाया ,
कैसे ऊँगली और अंगूठे ,से पेंसिल पकड़ी  जाती है
कैसे तोड़ी जाती रोटी ,ऊँगली और अंगूठे से ही ,
कैसे कोई चीज उठा कर , मुंह तक पहुंचाई जाती है
जब भी शंशोपज में होती ,मैं दो ऊँगली तेरे आगे ,
रखती ,कहती एक पकड़ ले,मेरा निर्णय वो ही होता
तुझे सुलाती,गा कर लोरी,इस डर से मैं चली न जाऊं ,
तू अपने नन्हे हाथों से ,मेरी उंगली   पकड़े  सोता
ऊँगली पकड़ ,तुझे स्कूल की बस तक रोज छोड़ने जाती,
बेग लादती,निज कन्धों पर,तुझ पर बोझ पड़े कुछ थोड़ा
मेला,सड़क,भीड़ सड़कों पर ,तेरी ऊँगली पकड़े रहती ,
इधर उधर तू भटक न जाए,तू मुझको देता था  दौड़ा   
मैं ये  जो इतना करती  थी ,मेरी ममता और स्नेह था,
और कर्तव्य समझ कर इसको,सच्चे दिल से सदा निभाया
जब वृद्धावस्था आएगी,  तब तू मुझे सहारा देगा  ,
हो सकता है  भूले भटके ,ऐसा ख्याल जहन  में आया
बड़े चाव से हाथ तुम्हारा ,थमा दिया था  बहू हाथ में ,
मैं थोड़ी निश्चिन्त हुई थी, अपना ये कर्तव्य निभा कर
मेरी ऊँगली  छोड़ नाचने ,लगा इशारों पर तू उसके ,
मुझको लगा भूलने जब तू,पीड हुई,ठनका मेरा सर
लेकिन मैंने टाल दिया था  ,क्षणिक मतिभ्रम ,इसे समझ कर,
सोचा जोश जवानी का है ,धीरे धीरे समझ आएगी
फिर से कदर करेगा माँ की,तू अपना कर्तव्य समझ कर,
मेरी शिक्षा ,संस्कार की,मेहनत व्यर्थ नहीं जायेगी
लेकिन तूने मर्यादा की ,लांध दिया सब सीमाओं को ,
ऐसे मुझे तिरस्कृत करके ,शायद चैन न पायेगा तू
बेटा तेरी ऊँगली पकड़े,तुझे सिखाती थी जब चलना ,
मैंने ये न कभी सोचा था ,ऊँगली मुझे दिखायेगा  तू

मदन मोहन बाहेती'घोटू'
 


सोमवार, 23 नवंबर 2015

रास्ते में इम्तहान होता जरूर है...

क्या हुआ जो
कुछ मिला तो
कुछ नहीं मिला,
क्या हुआ जो
कुछ खो गया तो
कुछ छिन गया...
देखो तो जरा गौर से
रह गया होगा बहुत कुछ
अब भी तुम्हारे पास,
देखो आ गया होगा 
कुछ कीमती-कुछ खास
चुपके से तुम्हारे पास...
और अगर नहीं 
तो रुको जरा 
थोड़ा सब्र करो,
क्योंकि -
देर या सबेर 
वो देता जरूर है,
उजाला कभी ना कभी
होता जरूर है,
याद रहे मकसद 
छोटा हो या बड़ा हो,
पर रास्ते में इम्तहान
होता जरूर है...

- विशाल चर्चित

शनिवार, 21 नवंबर 2015

शादी के पहले -शादी के बाद

           
                               
 पहले पहले ही 'ओवर' में,कर डाला हमको 'क्लीन बोल्ड' ,
कुछ बात थी तेरी 'बॉलिंग 'में,कुछ बात थी मेंरी 'बेटिंग' में 
वो फेस,'फेसबुक' पर तेरा ,वो' व्हाट्सऐप' के संदेशे ,
दीदार प्यार ' स्काइप 'पर,कुछ बात थी तेरी 'चेटिंग' में 
तुझको अपना दिल दे बैठे ,और तेरे दीवाने हो बैठे ,
वो छुपछुप करमिलना जुलना ,कुछ बात थी तुझ संग डेटिंग में  
कुछ बात थी मेंरे कहने में ,कुछ बात थी तेरे  सुनने में , 
कुछ बात थी दिल के लुटने में,कुछ बात थी अपनी सेटिंग में 

पर  जब  से  है 'मेरेज' हुई,  इस तरह जिंदगी  कैद  हुई ,
सब   दीवानापन  फुर्र  हुआ ,अपनी  वो  गुटरगूं  बंद  हुई 
दिन भर मैं पिसता दफ्तर में,तुम दिन भर मौज करो घर में ,
मैं थका पस्त ,और  अस्तव्यस्त ,अब जीवन की गति मंद हुई  
मैं ऐसा फंसा गृहस्थी में ,सब आग लग गयी मस्ती में,
स्वच्छंद जिंदगी होती थी ,वो आज बड़ी पाबन्द हुई 
ये तबला अब बेताल हुआ , मेरा  ऐसा कुछ हाल हुआ ,
मैं मंहगाई में पिचक गया ,तुम   फैली  सेहतमंद हुई 

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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