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शनिवार, 10 अक्टूबर 2015

पक्षपात -प्रेमघात

                    पक्षपात -प्रेमघात
                      
तुम हो उजली शुक्ल पक्ष सी ,मै हूँ कृष्णपक्ष सा काला
तुम सत्ता में,मैं विपक्ष  में ,घर पर चलता  राज तुम्हारा
मुझे नचाती ही रहती हो ,अपने एक इशारे पर तुम,
मैं बेबस और परेशान हूँ ,मैं  हूँ पक्षपात  का  मारा 
                          
जैसे श्राद्ध पक्ष में पंडित,  न्योता खाना नहीं छोड़ते
सरकारी दफ्तर के बाबू, रिश्वत   पाना  नहीं छोड़ते
वैसे तुम मुझे रिझाते, दिखा दिखा कर अपना जलवा,
औरफिर छिटक छिटक जाते हो,मुझे सताना नहीं छोड़ते

होता जब मौसम चुनाव का ,वोटर तब पूजे जाते है
श्राद्धपक्ष में पंडित ही क्या,कौवे भी दावत खाते है
तुम्हे पूजता हूँ मै हरदम ,चाहे कोई भी हो मौसम ,
फिर भी घास न डालो मुझको,कितना आप भाव खाते है    

 मदन मोहन बाहेती 'घोटू'                         
                         


     
             

मौत

        मौत

कलावे हाथों में अपने,भले कितने भी बँधवालो
कई ताबीज और गंडे ,गले में अपने लटकालो
उसे जिस रोज आना है ,वो आ ले जाएगी तुमको,
करो तीर्थ ,बरत कितने,टोटके  लाख   करवा लो 

घोटू

बहू ससुर संवाद

         बहू ससुर संवाद

सवेरे घूमते हो तुम ,रोज व्यायाम करते हो
विटामिन गोलियां कहते,फलों से पेट भरते हो
बहू बोली ससुर से तुम,प्रभू को पूजते हरदम,
वो तुमको याद ना करता,तुम जिसको याद करते हो
ससुर जी बोले यूं हंसकर,ये उसकी मेहरबानी है
उमर बोनस में उसने दी,हमें हंस कर बितानी है
परेशां व्यर्थ होती हो,करेगा याद जब भी वो,
हमारी सारी धनदौलत ,तुम्हारे पास आनी है

घोटू

गुरुवार, 8 अक्टूबर 2015

अपनी अपनी किस्मत

         अपनी अपनी किस्मत

यूं ही पेड़ पर कच्चा झड़ जाता है कोई
कोई पक जाता तो सड़  जाता है कोई
कोई बेचारे का बन जाता  अचार है,
होता है रसहीन ,निचुड़  जाता है कोई
होता कोई स्वाद और बेस्वाद कोई है,
कोई किसी को भाता और कोई ना भाता
हर एक फल की कब होती ऐसी किस्मत है,
साथ उमर के वह सूखा  मेवा बन जाता
      कोई फूल डाल  पर बैठा इठलाता  है 
     कोई निज खुशबू से बगिया महकाता है
     कोई प्रभु पर चढ़ता ,कोई लाश पर चढ़ता , 
     कोई पंखुड़ी पंखुड़ी कर के खिर  जाता है  
         कोई सजता सेहरे या सुहाग सेज पर  ,
        और भोर तक,दबा हुआ, है कुम्हला जाता
       हरेक फूल की किस्मत कब होती गुलाब सी ,
       मिश्री संग मिल,बन गुलकंद ,सभी मन भाता
        हर एक फल की कब होती है ऐसी किस्मत ,
           साथ उमर के वह सूखा मेवा  बन जाता   
कोई की औलाद निकम्मी है नाकाबिल
लायक कोई होती,कर लेती सब हासिल
कोई की औलाद न पूछे मातपिता को,
तिरस्कार करती है और जलाती है दिल
कितने ही माबाप यूं ही घुट घुट कर जीते ,
और किन्ही को बेटा ,सर आँखों बैठाता 
कब होती सबके नसीब में वो औलादें ,
जिनसे उनका नाम और यश है बढ़ जाता
हर एक फल की कब होती है ऐसी किस्मत ,
साथ उमर के ,वह सूखा  मेवा बन जाता

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जाने क्यूँ है ऐसा होता ?

     जाने क्यूँ है ऐसा होता ?

कुछ करने को मन ना करता ,
मन करता  ,हिम्मत ना होती  ,
हिम्मत होती ,थक जाता हूँ,
परेशान फिर मन है  रोता
                जाने क्यूँ है  ऐसा होता?
जी  ये करता , थोड़ा टहलूं
सुनु किसी की,अपनी कहलूं 
हंसलूँ  मैं भी मार ठहाका,
कल कल कर नदिया सा बहलूं
    घर से निकल न पाता पर बस
    कुछ करने में आता  आलस
    हो ना पाता मैं  टस  से  मस
            और मेरा धीरज है खोता 
              जाने क्यूँ है ऐसा होता?  
मन खोया रहता यादों में
डूबा रहता  अवसादों में
करवट यूं ही बदलता रहता,
नींद नहीं आती  रातों में
      जी न करे खाने पीने का
      मज़ा गया सारा जीने का  
      छुपा दर्द मेरे सीने  का ,
       आंसूं बन है मुझे भिगोता
         जाने क्यूँ है  ऐसा होता  ?
दिन दिन  बढ़ती हुई उमर है
क्या ये उसका हुआ असर है
दिन भर खोया खोया रहता,
चैन नहीं मुझको पल दो पल है
         कोई भी मन ना बहलाता
        कोई प्यार से ना सहलाता 
         भूल गए सब रिश्ता ,नाता
               यही सोच कर मन है रोता
                  जाने क्यों है ऐसा  होता  ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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