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बुधवार, 6 मई 2015

सरोकार

            सरोकार

हमारी शक्शियत से,अदब से ,पढाई से ,
नहीं है,जिसको ज़रा सा भी सरोकार नहीं
उन्होंने इसलिए है किया नापसंद हमें ,
हमारे  पास में बँगला नहीं है,कार नहीं
हमारा कोई अकाउंट' फेस बुक 'में नहीं,
न ही  लेटेस्ट डिज़ाइन का पास मोबाईल
इस तरह पुराने ढचरे के कोई इन्सां संग,
जिंदगी काट नहीं पाएंगे ,होगी मुश्किल 
न तो पिज़्ज़ा ,नहीं बर्गर ,न  खाना होटल में ,
नहीं है शौक हमको महफ़िलों में पीने का
नहीं आता थिरकना  हमको डी जे की धुन पर ,
बड़ा ही दकियानूसी है तरीका जीने का
कहा हमने कि तुम आटा भी गूंध ना पाती ,
पका के घर में रोटी किस तरह खिलाओगी
एक चलता है तेज,दूसरा धीमा पहिया ,
गृहस्थी की भला गाडी क्या चला पाओगी
ऐसी शादी से तो हम अच्छे कंवारे ही है ,
ऐसी बीबी की हमें कोई भी दरकार नहीं
सिर्फ अपने ही मतलब की सोच रखती हो,
अपने घरवालों से है जिसको सरोकार नहीं

घोटू

साहसी इंसान

            साहसी इंसान

स्कूल  में पढ़ी  ,एक कविता  ,
'अबु बेन एडम 'नामक व्यक्ति की कहानी थी
बड़ी ही सुहानी थी
वो एक रात देखता है कि एक फरिश्ता ,
एक फेहरिस्त बना रहा था
खुदा जिनसे प्यार करता है,
उनके नाम गिना रहा था
अबु ने उससे पूछा ,
क्या उसमे उसका भी नाम कहीं लिखा है
फरिश्ता बोला ,
अभी तक तो नहीं दिखा है
तब 'अबु'उस फ़रिश्ते से फ़रियाद करता है
मेरा नाम उस फेहरिस्त में जरूर शामिल करना ,
जो खुदा के बन्दों से प्यार करता है
दूसरी रात उसको फिर वो फरिश्ता नज़र आया,
और अपने साथ एक नयी फेहरिस्त लाया
अबु ने देखा,नयी  फेहरिस्त में ,
सबसे ऊपर उसका की नाम था
खुदा उससे करता है प्यार ,
जो उसके बन्दों से करता है प्यार ,
ये पैगाम था
 एक रात मैंने भी सपने में देखा ,
एक फरिश्ता साहसी लोगों की ,
एक फेहरिस्त बना रहा था
और उसमे मेरा नाम ,
सबसे ऊपर आरहा था 
मैंने पूछ ही लिया ,फ़रिश्ते भाई
न तो मैंने लड़ी है आजादी की लड़ाई
न ही साहस का कोई काम किया है,
और न एवरेस्ट पर की है चढ़ाई,
नहीं कोई विशेष करतब दिखलाया 
फिर मेरा नाम इस फेहरिस्त  में ,
सब से ऊपर  कैसे आया ?
फ़रिश्ते ने समझाया
शादी करके ,पत्नी के साथ
जो बन्दा निभा ले पूरे  बरस पचास
और फिर भी उसके चेहरे पर मुस्कान है
खुदा की नज़रों में ,
सबसे साहसी वो ही इंसान है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

साडू भाई

              साडू  भाई

एक ही कुए से,बाल्टी भर भर के ,
     प्यास को जिन्होंने ,अपनी बुझाया है
एक ही चूल्हे से,लेकर के अंगारा,
    सिगड़ियां अपनी को,जिनने  जलाया है
एक ही चक्की का,पिसा हुआ आटा और ,
      एक  हलवाई की ही,  खाते मिठाई    है         
एक ही दूकान पर,ठगे गए दो ग्राहक,
       आपस में   कहलाते, वो साडू भाई    है

घोटू

मंगलवार, 5 मई 2015

औरतों के मज़े

            औरतों के मज़े

औरतें ,महिला होने का , मज़ा लेती हमेशा है ,
        वो 'लेडीज फस्ट 'कह कर के,सदा 'प्रिफरेंस 'पाती है
आदमी पिसता है दिन भर,कमाई कर के लाता है ,
        मज़े से घर में बैठी ये ,मौज मस्ती  मनाती    है
रिज़र्व सीटें इलेक्शन में,बसों में भी अलग सीटें,
              रेलवे में अलग डिब्बा ,मर्द जिसमे न घुस पाता
मर्द के साथ हर डब्बे में वो कर सकती है ट्रेवल ,
          काम कोई हो ,लेडीज़ को,दिया प्रिफरेंस है  जाता
शान से वस्त्र मर्दों के ,पहन कर  वो है  इतराती ,
           आदमी वस्त्र औरत के,पहन लेकिन नहीं पाता
 हमेशा औरतें ही तो ,कहांती घर की है रानी ,
           उम्र भर आदमी पिसता ,मगर नौकर ही कहलाता
आदमी वर्षों मेहनत कर,पढाई कर ,बने  डाक्टर ,
           औरतें ब्याह डाक्टर को,कहाया करती डाक्टरनी
अगर है वो जो फूहड़ तो ,बड़ा ही अव्यवस्थित घर,
            मगर घर स्वर्ग बन जाता ,सुशीला गर जो हो घरनी
औरतें कितनी भी काली,है 'फेयर सेक्स'कहलाती ,
             सुदर्शन गोरे पुरुषों संग ,नहीं इन्साफ होता है
वो हमको घूर कर देखें,ज़माना कुछ नहीं कहता ,
             नज़र भर देख भी लें हम,तो कहते पाप होता है
खुदा  ने मर्दों को दाढ़ी दी,शेविंग की मुसीबत दी ,
              और औरत के गालों को,बड़ा चिकना बनाया है
किधर से भी पकड़ लो तुम ,हमेशा वार करता है ,
            उनके हथियार बेलन ने ,सितम मर्दों पे  ढाया है
पुरुष को कोई बिरला ही ,देवता कहने वाला है,
             औरते तो हमेशा  ही ,कहाया करती है देवी
विष्णुजी और ब्रह्मा के ,बहुत कम लोग पूजक है,
           लक्ष्मी,सरस्वतीजी की ,मगर दुनिया सभी सेवी
  न  जाने कौन सा हुनर ,दिया है भर विधाता ने ,
           औरतों के इशारों पर, आदमी नाच  करता  है
भले ही शेर बन के डांटता है सबको दफ्तर में ,   
           मगर घर पर ,बना बिल्ली,सदा बीबी से डरता है
पड़ गयी जो भी पल्ले है ,निभानी पड़ती है सबको ,
                  भले सीधी  या टेढ़ी हो,भले गोरी हो या काली
हज़ारों रूप है उसके ,कभी माँ है ,कभी बहना ,
               कभी घरवाली है या फिर ,लुभाती बन के वो साली

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

अमोघ अस्त्र

             अमोघ अस्त्र

शांतिकाल में'किचन अस्त्र'यह ,पेट भरा करता है सबका
इसमें कोई धार नहीं है,लेकिन है हथियार गजब का
दोनो तरफ ,किधर से भी तुम ,पकड़ो इसे ,वार करता है
है अमोघ यह शस्त्र निराला,हर बन्दा इससे  डरता है
जिसको धारण करके नारी ,कभी अन्नपूर्णा बन जाती
और कोप में, हाथों  में ले, झांसी  की  रानी  कहलाती
वैसे लकड़ी का टुकड़ा है ,लेकिन इतना पावरफुल है
लोग इसे 'बेलन'कहते है, करता सबकी बत्ती गुल है

घोटू   

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