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शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

मौसम और सियासत

              मौसम और सियासत
                           १
मौसम ने इस साल तो ,ऐसा खेला खेल
बारिश,ओले,आँधियाँ ,सर्द रहा अप्रेल
सर्द रहा अप्रेल ,देश प्रगती को रोका
बाहर गए नरेन्द्र ,इन्द्र ने पाया मौक़ा
अच्छे दिन ना आये उलटी आफत आयी
फसल हुई बरबाद ,बढ़ेगी अब मंहगाई
                      २
ख़ुशी विरोधी दल हुए,अपनी जीत बताय
पप्पू ने की साधना ,बेंकाक में जाय
बेंकाक में जाय ,'शत्रुहन्ता ' जप जापा
शायद दिन फिर जाय,दूर हो जाय सियापा
'घोटू'चालू राजनीति का खेल हो गया
टूटे ,बिखरे,जनता दल में मेल हो गया 

घोटू

बुधवार, 15 अप्रैल 2015

सब्जियां और सियासत

           सब्जियां और सियासत
                         १
        जो जमीन से जुड़े होते है
         लोग उन्हें सस्ते में लेते है
         और गाजर ,मूली की तरह ,
          काट दिया  करते है
                  २
     बिना पेंदी के लोगों पर भी,
    ताज चढ़ाया  जाता है
    सब्जियों में यह उदाहरण ,
बैंगन के मामले में पाया जाता है
                    ३
  जब से अंग्रेजों ने भिन्डी को,
 'लेडी फिंगर' का नाम दिया है  
  तब से वो बड़ा अकड़ती है
जमीन से जुड़े ,आलू या गाजर,
 के साथ नहीं मिलती
अकेली ही पकती है
               ४
इटालियन पिज़्ज़ा पर ,
जबसे देशी टॉपिंग चढ़ने लगी है
भारत की राजनीती ही बदलने लगी है
                ५
पत्ता पत्ता मिल कर ,
एक दुसरे से बंध  कर,
बनती पत्ता गोभी है
'चाइनीज'समाज व्यवस्था भी,
ऐसी ही होती है
भोजन समाजका दर्पण है
इसीलिये पत्तागोभी से ही,
बनते कई 'चाइनीज'व्यंजन है 
             ६
सब्जियां यूं तो अपनी ही
खांप में सम्बन्ध बनाती है
और अक्सर आलू,प्याज या टमाटर
से अपना दिल लगाती है
पर जबसे मटरगश्ती करती मटर ने ,
विजातीय पनीर से ,
दिल उलझाया है
लोगों को बड़ा मन भाया है
              ७
जमीन से जुड़े आलू और प्याज ,
भले सस्ते बिकते है
पर लम्बे समय टिकते है
और सब सब्जियों के साथ ,
उनके मधुर  रिश्ते है
               ८
काशीफल याने कद्दू ,
बंधी मुट्ठी की तरह है
जब तलक बंद है,
तब तक सेहतमंद है
और एक बार जब खुल जाता है
ज्यादा नहीं टिक पाता है
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 14 अप्रैल 2015

किस्मत का चक्कर

            किस्मत का चक्कर

तमन्ना थी दिल में ,बड़ी थी ये हसरत
कभी हम पे हो उनकी नज़रे इनायत
मगर घास उनने , कभी  भी  डाली,
जरा सी भी हम पे, दिखाई  न उल्फत
         अब जाके उनपे हुआ कुछ असर है
         यूं ही खामखां, ये इनायत मगर है 
         हरी घास जब सूखने लग गयी  है,
         लगे डालने हमको ,शामो-सहर है
देखो खुदा  का ये  कैसा  करम है 
वो सत्तर की है और पचोत्तर के हम है
न खाने की हिम्मत ,न ही भूख बाकी,
न ही दांतों में जब चबाने का दम है
         क्यों होता हमारे ही संग हर दफा है
         वफ़ा चाहते तब,न मिलती वफ़ा है
         थे जब बाल सर पर तो कंघी नहीं थी,
        मिली कंघी ,जब बाल सर के सफा है
खुदा तेरा इन्साफ  कैसा अजब है
नहीं मिलता खाना,लगे भूख जब है
और जब पचाने के लायक न रहते ,
पुरसता है हमको ,तू पकवान सब है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

सोमवार, 13 अप्रैल 2015

शिकायतें-पत्नी की

       शिकायतें-पत्नी की

उनको कुछ ना कुछ शिकायत ,हमसे रहती सर्वदा
प्यार है  ये  उनका  या फिर सताने  की  है  अदा
हमने घूंघट उठाया उनका सुहागरात को
बोले मंहगी साडी है ,पहले समेटो और रखो
    तबसे घर के कपडे हम ही ,समेटे करते सदा
   उनको कुछ ना कुछ शिकायत हमसे रहती सर्वदा
उनको ' बाइक' पर घुमाने ,ले गए एक दिन कहीं
बोले 'राइड' में तुम्हारे संग 'थ्रिल 'बिलकुल नहीं
     ब्रेक तुमने नहीं मारे और न कुछ झटका  लगा
     उनको कुछ ना कुछ शिकायत हमसे रहती सर्वदा
एक दिन उनके लिए चाय बना के लाये हम
बोली क्या कुछ पकोड़े भी नहीं तल सकते थे तुम
            चाय के संग खिलाते हो हमको बिस्किट ही सदा
           उनको कुछ ना कुछ शिकायत हमसे रहती सर्वदा
हमने अपना काट के सर ट्रे में रख उनको दिया
लगी कहने ,हेयर कट तो ,करवा तुम लेते मियां
       लगा था आंसू   बहाने ,कटा सर ,हो   गमजदा
       उनको कुछ न कुछ शिकायत हमसे रहती सर्वदा
ये करो  और  वो करो ,ऐसे  करो  ,वैसे   नहीं
सिखाती रहती है हमको क्या गलत,क्या है सही
            काम  है  इतना  कराती ,हमको  देती   है   पदा
            उनको कुछ ना कुछ शिकायत हमसे रहती सर्वदा
कराते है उनको शॉपिंग ,ढीली होती जेब है
फिर भी वो खुश न रहती ,यही उनमे  एब है
       बोझ हम पर,लादती सब ,समझ कर हमको गधा
        उनको कुछ न कुछ शिकायत ,हमसे रहती सर्वदा 
 
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

देखो हम क्या क्या खाते है

       देखो हम क्या क्या खाते है

कुछ चीजे ऐसी होती है ,नहीं निगलते ,नहीं चबाते
फिर भी हम सब,उनको अक्सर जीवनभर रहते है खाते
खाते ठंडी हवा रोज ही  ,खाते   धूप बैठ कर छत पर
पत्नीजी के तीखे तीखे ताने हम खाते है अक्सर
झूंठी सच्ची ,कितनी कसमे,हम खाते ,मौके,बे मौके
मिलती सीख,ठोकरे खाते ,कितनो से ही खाते धोखे
रिश्वत कभी घूस खाते है और कमीशन भी है खाते
इसीलिए स्विस की बैंकों में हमने खोल रखे है खाते
स्कूल में गुरु ,और दफ्तर में ,डाँट बॉस की हम खाते है
और डाट पत्नी की घर पर ,हम सारा जीवन खाते है
कभी कभी जब गुस्सा खाते  तो थोड़ा सा गम भी खाते
फिर अपने  आंसू पी लेते , पीड़ा मन की नहीं दिखाते
इश्क़ मोहब्बत के चक्कर में ,उनके घर के चक्कर खाते
शादी करते ,हवनकुंड के ,सात सात हम चक्कर खाते
गाली कभी मार खाते है ,खाने मिलते जूते,चप्पल
इसी तरह बस खाते पीते ,उमर गुजरती रहती पल पल

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  
 
 
 


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