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मंगलवार, 30 दिसंबर 2014

मैं हूँ पानी

              मैं हूँ पानी

मैं औरों की प्यास बुझाता ,पर मन में तृष्णा अनजानी
                                                        मैं  हूँ  पानी
मधुर मिलन की आस संजोये , मैं कल कल कर ,बहता जाता
पर्वत , जंगल और चट्टानों से ,टकरा   निज    राह      बनाता
तेज प्रवाह ,कभी मंथर गति ,कभी सहम   कर धीरे  धीरे
कभी बाढ़ बन  उमड़ा  करता ,कभी बंधा मर्यादा   तीरे
कभी कूप में रहता सिमटा ,लहराता बन कभी सरोवर
मुझमे खारापन आ जाता ,जब बन जाता ,बड़ा समंदर
उड़ता बादल के पंखों पर,आस संजोये ,मधुर मिलन की
और फिर बरस बरस जाता हूँ,रिमझिम बूंदों में सावन की
तुम जब मिलती ,बाँह  पसारे ,मेरा मन प्रमुदित हो जाता
तुम शीतल प्रतिक्रिया देती,तो मैं बर्फ  बना जम जाता
कभी बहुत ऊष्मा तुम्हारी ,मुझे उड़ाती ,वाष्प बना कर
और विरह पीड़ा तड़फ़ाती ,अश्रुजल सा ,मुझे बहा कर
मैं तुम्हारा पागल प्रेमी ,या फिर प्यार भरी   नादानी
                                                     मैं  हूँ  पानी
मदन मोहन बाहेती'घोटू'

सर्दी की दोपहरी

              सर्दी की दोपहरी

बहुत दिनों के बाद आज फिर गरम गरम सी धूप खिली,
          आओ चल कर  छत पर बैठें ,इसका मज़ा उठायें  हम
और मूँज की खटिया पर हम,बिछा पुरानी  सतरंजी ,
               बैठें पाँव पसार प्रेम से ,छील मूंगफली  खाएं हम
लगा मसाला मूली खायें कुछ  अमरुद  इलाहाबादी ,
          थोड़ी गज़क रेवड़ी खालें ,कुछ प्यारी पट्टी तिल की
 बहुत दिनों के बाद खुले मे ,तन्हाई में बैठेंगे ,
आज न शिकवे और शिकायत ,बात सिर्फ होगी दिल की
बड़ा सर्द मौसम है मेरे तन पर बहुत खराश बड़ी ,
           ज़रा पीठ पर मेरे मालिश करना,तैल लगा देना
बदले में मैं ,मटर तुम्हारे ,सब छिलवा दूंगा लेकिन,
   गरम चाय के साथ पकोड़े ,मुझको गरम खिला देना
बहुत खुशनुमा है ये मौसम ,खुशियां आज बरसने दो ,
         मधुर रूप की धूप तुम्हारी में खुशियां सरसाएँ हम
बहुत दिनों के बाद आज फिर गरम गरम सी धूप खिली,
       आओ चल कर छत पर बैठें ,इसका मज़ा उठायें हम

मदन मोहन बाहेती'घोटू '  

शुक्रवार, 26 दिसंबर 2014

रंग-ए-जिंदगानी: नारी का सशक्तीकरण

रंग-ए-जिंदगानी: नारी का सशक्तीकरण: सुप्रीम कोर्ट ने शरई अदालतों की वैधता को भले ही नक़ार दिया हो,लेकिन एक दौर में इन अदालतों के फैसले पूरे देश में माने जाते थे।नाफ़रमानी ...

बीबी का मोटापा

         बीबी का मोटापा 
                     १
पत्नीजी पर ज़रा भी ,अगर मांस चढ़ जाय
तो पतिजी जब तब उसे,मोटी  कहे,चिढ़ाय
मोटी कहे चिढ़ाय ,दोष पत्नी का क्या है
शादी के ही बाद इस तरह बदन भरा है
बदन छरहरा था ,फूला पति के घर आकर
मोटा पति ने किया ,प्यार का डोज़ पिलाकर
                       २
पतिजी से पत्नी कहे ,दिखला थोड़ा क्रोध
खुद को भी देखो पिया,निकल आयी है तोंद
निकल आयी है तोंद ,हो रहे तुम भी भारी
थोड़ी सी मेहनत से  फूले  सांस तुम्हारी
'घोटू'बदन सासजी का भी क्या कुछ कम है
अपनी माँ को मोटा बोलो ,यदि जो दम है

घोटू 

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