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सोमवार, 27 अक्टूबर 2014

हुस्नवाले

    हुस्नवाले

नज़र उठाते ,तो सबको कर देते घायल
नज़र झुकाते तो हामी का देते सिग्नल
हुस्नवालों ने भी ये कैसी अदा पायी है
मन में तो'हाँ' है ,मुंह पर मनाही  है
बड़ा अजीब होता हसीनो का है ये चलन
कत्ल भी करते है,चेहरे पे नहीं लाते शिकन 
नजाकत और जलवे बेमिसाल होते है
ये हुस्नवाले भी सचमुच कमाल होते है 
घोटू

कुछ हम भी खुश हो लेते है

        कुछ हम भी खुश हो लेते है

जीवन माला में मोती सा ,उनका प्यार पिरो लेते है
कुछ उनको खुश कर देते है,कुछ हम भी खुश हो लेते है
वो कैसी भी हो कह देते ,बेहद आप खूबसूरत  हो
हंसती हो तो फूल खिलाती,तुम सुंदरता की मूरत हो
तारीफ़ करके, उनके मन में ,बीज प्यार  बो लेते  है
कुछ उनको खुश कर देते है, कुछ हम भी खुश हो लेते है
उनकी कार्य दक्षता के हम,सब के आगे गुण  गाते है
वो कैसा भी पका खिलाये ,हम तारीफ़ करके खाते है
उनके प्रेमपात्र बन कर हम ,उनका प्यार संजो लेते है
कुछ उनको खुश कर देते है,कुछ हम भी खुश हो लेते है
 आप बांटते जितनी खुशियां,बदले में दूनी मिलती है 
लेनदेन के इसी चलन से ,जीवन की बगिया खिलती है 
उनको मीठी नींद सुला कर,हम भी थोड़ा सो लेते है
कुछ उनको खुश कर देते है ,कुछ हम भी खुश हो लेते है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

हम पटाखे

        हम पटाखे

हम पटाखे ,हमारा अस्तित्व क्या ,
           जब तलक बारूद,  तब तक जान है
कोई चकरी की तरह है नाचता ,
           कोई उड़ कर छू रहा आसमान है
कोई रह जाता है होकर फुस सिरफ ,
           जिसमे दम है वो है बम सा फूटता
फूल कोई फुलझड़ी से खिलाता,
           कोई है अनार  बन  कर  छूटता
पटाखे ,इंसान में एक फर्क है ,
            आग से आता पटाखा   रंग में
और इन्सां रंग दिखाता उम्र भर ,
              आग में होता समर्पित  अंत में

मदन मोहन बाहेती'घोटू'    

कॉंग्रेस की दीवाली

   कॉंग्रेस की दीवाली

झड़ी झड़ी सी फुलझड़ी ,लगे सोनिया मेम
राहुल बम फुस हो गया,ऐसा बिगड़ा  गेम
ऐसा बिगड़ा गेम ,दिवाली ये दुखदायी
महाराष्ट्र और हरियाणा में नाक कटाई
यूं ही ज्यों त्यों हार ,कहाँ त्योंहार मनाये
कांग्रेस का ग्रेस गया,मुंह किसे दिखाए

घोटू

फूटे हुए पटाखे हम है

                  फूटे हुए पटाखे हम है

सूखी  लकड़ी मात्र नहीं हैं,हम खुशबू वाले चन्दन है
जहाँ  रासलीला होती थी,वही पुराना  वृन्दावन है
कभी कृष्ण ने जिसे उठाया था अपनी चिट्टी ऊँगली पे,
नहीं रहे हम अब वो पर्वत,अब गोबर  के गोवर्धन है
हरे भरे और खट्टे मीठे , अनुभव वाली कई सब्जियां ,
मिला जुला कर गया पकाया ,अन्नकूट वाला भोजन है
बुझते हुए दीयों के जैसी ,अब आँखों में चमक बची है,
जब तक थोड़ा तेल बचा है,बस तब तक ही हम रोशन है
ना तो मन में जोश बचा है,ना बारूद  भरा है तन में,
जली हुई हम फूलझड़ी है,फूटे हुए पटाखे,बम  है

घोटू

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