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मंगलवार, 13 मई 2014

पसीना सबका छूटा है

     पसीना सबका छूटा है

कभी लन्दन की महारानी,कभी इटली की महारानी ,
                              विदेशी मेडमो ने देश मेरा ,खूब लूटा है
सताया खूब जनता को,मार  मंहगाई की चाबुक ,
                            बड़ी  मुश्किल से अब की बार उनसे पिंड छूटा है  
दुखी  जनता बड़ी बदहाल थी और परेशाँ भी थी,
                             घड़ा जो पाप का था भर गया ,अब जाके फूटा है
गिरी का शेर बब्बर जब दहाड़ा जोशमे आकर,
                             रंगे  सियार थे जितने ,पसीना  सब का छूटा है

घोटू

गुरुवार, 8 मई 2014

आराधन और मिलन

आराधन और मिलन

कीर्तन में भी तन होता है
आराधन में धन होता है
और भजन और पूजन में ,
पाओगे जन जन होता है
होती है 'रति'आरती में,
है भोग ,आचमन सब होता
आराधन और मिलन में भी,
है यह संयोग ,गजब होता

घोटू

चुनाव के बाद-ऐसा भी हो सकता है

चुनाव  के बाद-ऐसा भी हो सकता है

इस बार 'नमो' की आंधी ने, मौसम इस कदर बदल डाला
हो गयी जमानत कई जप्त ,कितनो ने बदल लिया  पाला
पड़ गए मुलायम और नरम,माया का हाथी गया बैठ
लालू की लालटेन का भी ,अब खत्म हो गया घासलेट
डिग्गीराजा ,फिर से दुल्हेराजा ,बनने में है  व्यस्त हुए
 छोटे मोटे दल,तोड़ फोड़ की राजनीती से पस्त  हुए
जयललिता भी लालायित थी ,पाने को कुर्सी दिल्ली की
जनता का मिला फैसला तो,अब चुप है भीगी बिल्ली सी
केजरीवाल है जरे जरे ,झाड़ू फिर गयी उम्मीदों पर
शेखी नितीश की इति हुई ,नम है ममता ,निज जिद्दों पर
चुप चुप बैठे है चिदंबरम ,बीजूजी,बिजना हिला रहे
और है पंवार ,पॉवर प्रेमी ,मोदी सुर में सुर मिला रहे
मनमोहनजी है मौन शांत ,क्या जरुरत है कुछ कहने की
पिछले दस सालों में आदत ,पड़  गयी उन्हें चुप रहने की
शहजादा ,ज्यादा ना बोले ,मेडमजी का दम निकल गया
है डरा वाडरा परिवार ,किस्मत का चक्कर बदल गया
सो नहीं सोनिया जी पाती,सिब्बल जी भी ,बलहीन  हुए
जबसे मोदी जी ,दिल्ली की ,कुर्सी पर है आसीन  हुए

मदन मोहन बाहेती'घोटू'  

रूप तुम्हारा

         रूप तुम्हारा

बड़ा  सुन्दर और सुहाना ,हसीं तेरा रूप है
गर्मियों की तू है बारिश,सर्दियों की धूप है
ठिठुरते मौसम में ,होठों से लगे तो ये लगे ,
चाय का है गर्म कप या टमाटर का सूप  है

घोटू

अंकल की पीड़ा

          अंकल की पीड़ा

कल तक हम नदिया जैसे थे,बहते कल कल
कलियों संग करते किलोल थे मस्त कलन्दर
कन्यायें   हमसे मिलने , रहती थी  बेकल
काल हुआ प्रतिकूल ,जवानी गयी ज़रा ढल
बहुत कलपता ,कुलबुल करता ,ह्रदय आजकल
कामनियां ,जब हमें बुलाती ,कह कर 'अंकल '

घोटू

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