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शुक्रवार, 17 जनवरी 2014

क्रांति दूत से

               क्रांति दूत से

उंगली मिली अंगूठे के संग ,सदा कलम को गति भरती  है
और प्रत्यंचा तान लक्ष्य पर ,षर संधान  किया करती   है
सागर में भूकम्पी हलचल ,जन्म सुनामी को है देती
नन्ही छोटी सी लहरों को  ,ऊंचाई तक पंहुचा  देती
हो जाते है ध्वंस सभी जो ,आते पथ में बाधा बन के
और तिनके से बह जाते है ,कितने ही सपने जीवन के
तो उस हलचल को पहचानो,तद अनुसार,उचित निर्णय लो
 रहे सुरक्षित,सब तन ,मन ,धन,और सभी जीयें निर्भय हो
तुम नेता हो ,तुम्ही प्रणेता ,किन्तु विजेता तभी बनोगे
स्वार्थ सिद्धि हित ,साथ आये जो,उन तत्वों को पहचानोगे
याद रखो,तुम्हारा यह घर,स्थित एक  घने  जंगल में
लाख प्रयत्न करोगे फिर भी ,नहीं बचेगा ,दावानल में
आवश्यक इसलिए चौकसी ,रहना चिंगारी से बच कर
दुश्मन लिए ,मशाल खड़े है ,आग लगाने  को है तत्पर
कौरव दल के कई शकूनी ,उलटे पांसे  फेंक रहे है
दे दें मात ,हरा दे तुमको,ऐसा मौक़ा देख रहे है
अभिमन्यु से ,चक्रव्यूह तुम ,तोड़ ,घुस गए तो हो अंदर
लेकिन अबकी बार जीत कर  ,तुमको आना होगा बाहर
बन कर कृष्ण ,करो संचालन,महासमर ये परिवर्तन का
हाथ हजारों,साथ तुम्हारे ,आशीर्वाद  तुम्हे जन जन का

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 16 जनवरी 2014

आज का देहली का मौसम

           आज का देहली का मौसम

रात भर दुबके रजाई में रहे ,
                   और दिन भर सामने सिगड़ी रही
नहाये,धोये न शेविंग ही किया ,
                     हमारी हालत यूं ही बिगड़ी  रही
आसमां में धुंध सी छाई रही ,
                       सर्द मौसम ने दिखाया ये असर
बादलों की रजाई में दुबक कर ,
                       सूर्य भी दिन भर नहीं आया नज़र
रहा दिनभर सिहरता ये तन बदन ,
                        चाय की लेते रहे हम चुस्कियां
गरम हलवा ,पकोड़े खाते रहे ,
                           टी वी देखा,काम कुछ भी ना किया
सर्दियों से लड़ा करता महाबली ,
                            नाम 'कम्बल',है ,मगर बलवान है
लोग क्यों कहते है ये मौसम है बुरा,
                              हमें सुख देता ,ये मेहरबान है

घोटू

बुधवार, 15 जनवरी 2014

बिन पैंदी के लोटे हो गये

       बिन पैंदी के लोटे हो गये 

बड़े तीखे तेज थे,शादी की ,बोठे  हो गये
खाया ,पिया,ऐश की,मस्ती की,मोटे हो गये
कभी माँ की बात मानी ,कभी बीबी की सुनी ,
'घोटू'क्या बतलायें ,बिन पेंदी के लोटे हो गये
ना इधर के ही रहे और ना उधर के ही रहे ,
किसी को लगते खरे ,कोई को खोटे हो गये
कभी सीधे,कभी टेढ़े ,कभी चलते ढाई घर,
आजकल शतरंज के ,जैसे हम गोटे हो गये
इस तरह  से फंस गये  है ,दुनिया के जंजाल में,
चैन से भी, नींद अब ,लेने के टोटे  हो गये
रोज की उलझनो ने हालत बिगाड़ी इस कदर ,
नाम के दिखते बड़े, दर्शन के खोटे  हो  गये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

मंगलवार, 14 जनवरी 2014

संक्रांति या क्रांति

                संक्रांति या क्रांति

सूर्य ने राशि बदल ली,आ गयी संक्रांति है
देश की इस राजनीति में भी आयी क्रांति है
नाम पर जनतंत्र के जो राज पुश्तेनी चला ,
हो रही अब धीरे धीरे ,दूर सारी   भ्रान्ति  है
           कर रहा महसूस खुद को,आदमी था जो ठगा
           ऋतू ने अंगड़ाई ली है ,बदलने  मौसम लगा
            हर तरफ फैली हुई आयी नज़र जब गंदगी ,
               हाथ में झाड़ू उठा ,बुहारने उसको लगा
बचपने से चाय जो बेचा करे था रेल में
आज खुल कर आ गया वो राजनीति खेल में
देश को  बंटने न देंगे ,अब धर्म के नाम पे,
भ्रष्टाचारी और लुटेरे ,जायेंगे अब जेल  में
               जब से अपनी शक्ति का ,उसको हुआ अहसास है
                आदमी जो आम था ,अब लगा होने ख़ास है
                क्रांति की ये लहर निश्चित ,अपना रंग दिखलायेगी ,
                हमारे भी दिन फिरेंगे ,हम को ये विश्वास है
सूर्य था जो दक्षिणायण ,उत्तरायण आयेगा
भीष्म सा षर-बिद्ध ,मेरा देश मुक्ती पायेगा
ध्वंस सारे दुशासन सुत ,युद्ध में हो जायेंगे ,
आस है ,विश्वास है,अब तो सुशासन आयेगा      
                  दे रहा है बदलता मौसम यही पैगाम है
                  खूब लूटा देश,उनको ,भुगतना अंजाम है
                  अब न कठपुतली ,मुखौटे ,चलायेगे देश को,
                   शीर्ष पर सत्ता के होगा ,आदमी जो आम है

मदन मोहन बाहेती 'घोटू' 

सोमवार, 13 जनवरी 2014

सांप


              सांप

बहुत रौबीले ,कड़क ,दफ्तर में होते साहब है
घर में भीगी बिल्ली बन कर,रहते वो चुपचाप है
कितना टेड़ा मेडा चलता,फन उठा ,फुंफकारता ,
बिल में जब घुसता है  तो हो जाता सीधा सांप है

घोटू

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