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सोमवार, 6 जनवरी 2014

बोतल में जिन

         बोतल में जिन

बोतल में जिन,व्हिस्की या रम
ये तो जानते है हम
और ये सब शराबें,
हमारे गले भी उतरती है
पर बोतल में ऐसा जिन भी होता है,
जो आपके इशारों पर ,
सारे काम देता है कर
ये बात  गले नहीं उतरती है
पर जबसे ,ये 'लेपटॉप' या 'टेबलेट 'आयी है,
ये बात हमें सच लगने लगी है
जब एक बटन दबाने से ,
सारी दुनिया मुठ्ठी में नज़र आने लगी है

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

दिन कब बदलेंगे ?

     दिन कब बदलेंगे ?

कभी दिन बड़ा होता है
कभी दिन छोटा होता है
कभी सर्दी का दिन
कभी गर्मी का दिन
कभी बरसात का दिन
यह है प्रकृति का नियम
मौसम के साथ बदलते है दिन
फिर भी हम,
ज्योतिषी,संत,और पंडितो से ,
यह पूछने क्यों जाते है ,
'हमारे दिन कब बदलेंगे ?'

'घोटू '

क्यों ?

          क्यों ?
             १
डेढ़ रूपये का सिनेमा टिकिट ,
डेढ़ सौ का होगया ,
दाम सौ गुना बढ़ गए
पर पब्लिक ने ,न हड़ताल की ,
न प्रदर्शन किये
पर प्याज की कीमत जब ,
थोड़ी बढ़ जाती है
तो इतना हो हल्ला और प्रदर्शन होते है,
कि सरकारे तक गिर जाती है
क्यों?
                २
बड़ी बड़ी होटलों में लाइन लगा कर,
चार सौ रूपये की एक प्लेट ,दाल या सब्जी पाकर ,
और चालीस पचास की एक रोटी खाकर
हम तृप्त होकर,बड़े खुश होते है
पर आलू ,प्याज थोड़े भी मंहगे हुए ,
तो मंहगाई का रोना रोते है
क्यों?

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

शनिवार, 4 जनवरी 2014

वरिष्ठ -गरिष्ठ

     वरिष्ठ -गरिष्ठ

वरिष्ठ हो गए है,गरिष्ठ हो गए है ,पचाने में हमको ,अब होती है मुश्किल
मियां, बीबी,बच्चा ,है परिवार अच्छा ,कोई अन्य घर में ,तो होती है मुश्किल 
सभी काम करते ,मगर डरते डरते ,रहो बैठे खाली ,तो होती है मुश्किल
जिन्हे पोसा पाला ,लिया  कर किनारा ,देने में निवाला ,अब होती है मुश्किल
चलाये जो टी वी ,कहे उनकी बीबी ,कि बिजली के खर्चे बहुत बढ़ गए है
कहीं आयें ,जाये ,तो वो मुंह फुलाये ,उनके दिमाग,आसमा चढ़ गए है
करो कुछ तो मुश्किल,करो ना तो मुश्किल,बुढ़ापे में कैसी ये दुर्गत हुई है
भले ही बड़े  है ,तिरस्कृत पड़े है ,न पूछो हमारी क्या हालत हुई है
हमारी ही संताने ,सुनाती हमें  ताने,भला खून के घूँट,पीयें तो कबतक
वो हमसे दुखी है ,हम उनसे दुखी है,भला जिंदगी ऐसी ,जीयें तो कब तक

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

अरज -पिया से

           अरज -पिया से

प्रियतम! तुम मुझे,
'प्रिया' कहो या 'प्रनवल्ल्भे '
'जीवनसंगिनी 'या 'अर्धांगिनी'
'पत्नी' या 'वामांगनी'
'भार्या' कहो या' भामा'
या बच्चों की माँ कह कर बुलाना
कह सकते हो 'बीबी' ,'वाईफ' या 'जोरू'
पर मैं आपके हाथ जोडूं
मुझे 'घरवाली'कह कर मत बुलाना 
वरना मैं कर दूंगी हंगामा
क्योंकि घरवाली कहने से ये होता है आभास
कोई बाहरवाली भी है आपके पास
और सौतन का बहम
भी मैं नहीं कर सकती सहन
और घरवाली शब्द में ,
घरवाली मुर्गी का होता है अहसास
जो लोग कहते है होती है दाल के बराबर
और मैं प्राणेश्वर !
दाल के बराबर नहीं ,
दिल के बराबर स्थान पाना चाहती हूँ
इसलिए ,आप कुछ भी पुकार ले,
घरवाली नहीं कहलाना चाहती हूँ

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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