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शनिवार, 4 जनवरी 2014

गोल गप्पे

              गोल गप्पे

कहीं पर है 'गोलगप्पा' ,तो कहीं 'पानीपताशा'
कहीं 'पानीपुरी' है तो  ,कहीं वो 'पुचका' कहाता
वही फूली,क्षीण काया ,रसीला  पानी भरा है
कभी खट्टा और मीठा ,तो कभी वह चरपरा है
वही हड्डी ,मांस मज्जा से मनुज काया बनी है
रक्त सबका लाल ही है ,फिर अलग क्यों आदमी है
हिन्दू मुस्लिम धर्म,पानी ,खट्टा मीठा स्वाद ज्यों है
एक से सब,धर्म पर फिर,व्यर्थ यह विवाद क्यों है ?

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

पति परमेश्वर

       पति परमेश्वर

बचपन से ही,बार बार
हम में भर दिए जाते है ये संस्कार
सच्चे मन से,
आराधन से और पूजन से ,
जो भी भगवान  को प्रसन्न करता है
परमेश्वर ,उसे वर देता है
 और उसकी हर इच्छा को पूरी करता है
तो बस एक बार परमेश्वर को पटा  लो
और फिर ,जो चाहो ,काम करा लो
इसी शिक्षा से अभिभूत होकर ,
औरतें वर पाती है
 पति को परमेश्वर कहती है 
और अपना हर काम कराती रहती है

घोटू

कौन आया ?

     कौन आया ?

सोई थी मैं ,द्वार किसने खटखटाया
                            कौन   आया?
पा अकेला ,सताने मिला मौका
याद तुम्हारी पवन का बनी झोंका
और उसने हृदयपट को थपथपाया
                            कौन आया ?
मूर्त होकर ,मिलन के सपने सुहाने
लगे उचटा ,नींद से मुझको  जगाने
बावरा,बेसुध हुआ,मन डगमगाया
                           कौन आया?
मधुर यादें,मदभरी  बौछार बन के
भिगोने मुझको लगी है प्यार बन के
बड़ी ठिठुरन ,मिलन को मन,कसमसाया
                                    कौन आया ?
या कि फिर विरहाग्नि की तीव्र लपटें
आगई ,मुझको जलाने ,सब झपट के
मुझे तो हर एक मौसम ने सताया
                            कौन आया ?
रात पूनम की लगी मुझको अमावस
बदलती करवट रही मैं ,मौन बेबस
चमक तारों ने मुझे ढाढस  बंधाया
                             कौन आया ?

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

शुक्रवार, 3 जनवरी 2014

मेरी तेरी ना बनती पर .. .

      मेरी तेरी ना बनती पर .. . 

कहा  बाल्टी   से  कूए  ने ,कि तू मुझे उलीच रही है
जनता खुश तू प्यास बुझाती ,सूखा उपवन सींच रही है
मेरी संचित जलनिधि को तू ,बार बार करती है खाली
मै चुपचाप सहा करता हूँ और  तू   देती रहती गाली
मैं जब चाहूँ ,तुझे डुबो दूं ,तुझे पता है मेरी  ताकत
लेकिन मेरी मजबूरी से बहुत बढ़ रही तेरी हिम्मत
अब लगता है,मैं मूरख  था या फिर मेरी थी नादानी
मैंने अब तक ,केवल ,अपने अपनों को ही बांटा पानी
मोटर पम्प ,हाथ में लेकर ,लोग खड़े है,लिए इरादे
पम्प लगा ,पानी उलीच दें,और कीचड में कमल खिला दें
पड़ा हुआ मैं ,शंशोपज में ,बड़ी राजनैतिक उलझन है
मुझको वो करना पड़ता जो ,नहीं मानता ,मेरा मन है
बड़े विकट हालात हो रहे ,आने को मौसम तूफानी
जोड़ तोड़ कर ,कैसे भी है ,मुझको अपनी साख बचानी
तभी बड़प्पन ,दिखा रहा मैं ,मरता भला क्या नहीं करता
तेरी मेरी ना  बनती पर ,मेरे बिना  काम ना चलता

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

गुरुवार, 2 जनवरी 2014

नया साल - नयी नज्म



सबकुछ न बदले
पर इतना तो बदले,
कि इन्सान अपनी ही
फितरत न बदले...
मौसम न बदले
तो तासीर बदले,
हवाओं का रुख और
खुशबू तो बदले...
जीना न बदले
मरना न बदले
मगर बीच की जंग
का मंजर तो बदले...
रिश्ते न बदलें
जमाना न बद्ले
मगर नकली दिखना
दिखाना तो बदले...
नेता न बदलें
सियासत न बदले
जनता का बातों
में आना तो बदले...
कहते हैं चर्चित
नये साल पर ये
कि यारों का यूं
मुस्कुराना न बदले...

- VISHAAL CHARCHCHIT

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