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बुधवार, 11 दिसंबर 2013

जनता मारती है वोटों से

        जनता मारती है  वोटों से

पोलिस मारती है सोठों से
रईस     मारते  है नोटों से
बड़ी अदा से मुस्करा कर के ,
हसीन ,मारते है होठों  से
बड़ी जालिम ये मार होती है ,
मज़ा आता है इनकी चोंटों से
 राजनीति ये एक जुआ है,
शकुनी मारते है गोटों से
रोज ही चेहरा बदलते है ,
चाहिए बचना इन मुखोटों से
चुनाव हार बोले नेताजी ,
जनता मारती है वोटों से

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

लद रहा हिन्दुस्तान....


गाय भैंस बकरी और लिये साइकिल
लद रहा हिन्दुस्तान यहां वहां आये दिन

रेल अपने बाप की पटरी उखाड़ लेव
काहे की है मुश्किल घर मा बिछाय देव

सब जगह भीड़ है का करे जनता
जल्दी बनाय लेव काम जैसे बनता

हम मनमानी करें गाली खायँ नेता
गाली नहीं खायेगा तो वोट काहे लेता

देश वेश बाद में काम मेरा पहले
तभी वोट दूंगा वर्ना निकल ले

लेन देन सीख लेव आगे बढ़ि जाओ
नाही घरे बैठि के खाली पछताओ

ज्यादा पढ़े लिखेगा तो नौकरी पायेगा
तीन - पांच आयेगा तो देश चलायेगा

कुछ नहीं आता तो बाबा बन जा रे
राम के नाम पर ऐश कर प्यारे

लगा घोर कलियुग कह रहे चर्चित
जितना हो धन बल उतने ही परिचित

- विशाल चर्चित

सोमवार, 9 दिसंबर 2013

hansee

   ये हँसी ,कितनी हसीन है 

जब होता है खुशी  मन ये ,हंसी आती है 
बड़ी आनंद दायक होती ,गुदगुदाती है 
कोई चुपके से  दबी  दबी  हँसी हँसता है 
कोई जब झेंपता ,खिसियानी हँसी हँसता है 
कोई होते है लोटपोट जब वो हँसते है 
कोई के पेट में हंसने से भी बल पड़ते है 
कोई की मुस्कराहट होती है बड़ी धाँसू 
कोई की आँख में हंसने से आ जाते आंसू 
कोई जब हँसता,उसकी हँसी ख़ास होती है 
कभी ठहाका,कभी अट्ठहास होती है 
हसीनो की भी हँसी ,कितनी है  हसीन  होती 
कभी गालों पे पड़ते है डिंपल और  टपकते मोती 
गिराती बिजलियाँ है,उनकी हंसी है कातिल 
हंसी हंसी में लिया उनने चुरा  मेरा दिल 
हम तो बस उनकी हंसी के लिए तरसते है 
क्योंकि वो हँसते है तो फूल बस बरसते है 
कोई जब बड़ी बड़ी डींग मारा करता  है 
उसकी बातों पे ज़माना बहुत ही हँसता है 
होती है जब किसी पे व्यंग या कि तानाकशी 
उड़ाई जाती सबके सामने है उसकी हंसी 
ये हंसी मन में कड़वा जहर भरवा देती है 
और वो महाभारत तक भी करवा देती है 
हम किसी बात पर जब ध्यान नहीं है देते  
 हंसी हंसी  में ही सब बातों को उड़ा देते 
ये भी आदत बड़ी नुकसानदायक होती है 
कितनी ही बातें क्योंकि लाभदायक होती है 
हंसी उड़ाये कोई ,हंसी में उडा देना 
बात ना बढे,समझदारी इसी में है ना 
इससे जीवन ये हंसीखुशी में कट जाता है 
 वर्ना ये ज़माना बड़ी हंसी उड़ाता है 
हंसी पे कोई,किसी का न पहरा होता है 
कोई हँसता है तो हंस हंस के दोहरा होता है 
अलग अंदाज हंसी का,हुआ करता  सब में 
कोई हंसने के जाता है लाफिंग क्लब में 
हंसी सेहत के लिए होती लाभदायक है 
हँसी  होती है हसीं ,इसमें ही  बसता रब है 
बड़े जंजाल है जीवन में,नहीं  उनमे फंसो 
चैन से मै भी हंसू,वो भी हँसे,तुम भी हंसो 

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

शुक्रवार, 6 दिसंबर 2013

खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचेगी


   खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचेगी

चार राज्य में हार ,सभी को कोसेगी
अब खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचेगी
कई करोड़ों रुपिया जनता का लूटा
हुई जागरूक जनता ,जब भाण्डा फूटा
अपनी छवि साफ़ दिखलाने जनता को,
पड़ विपक्ष के पीछे ,उसे  दबोचेगी
अब खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचेगी
कर कितने ही घोटाले ,बदनाम हुए
पांच साल में कितने काले काम हुए
काला मुंह है और हाथ भी काले है,
इतनी कालिख लगी ,कहाँ तक पोंछेगी
अब खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचेगी
दूध मलाई खाई,हजम किया सबको
नौ सौ चूहे मार चली है अब हज़ को
या फिर ये है नाटक उसका कोई नया ,
फिर से मोटा चूहा कोई दबोचेगी
अब खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचेगी
भ्रष्टाचारी भांडा सदा  फूटता है
बार बार तो छींका नहीं टूटता है
बदकिस्मत थी,अबके छींका ना टूटा ,
जोड़ तोड़ कर क्या छींके तक पहुंचेगी
अब खिसियानी बिल्ली खम्बा नाचेगी
खेल पुराना है ये चूहे बिल्ली का
कौन बनेगा अब के राजा दिल्ली का
आदत बिगड़ी  दूध ,मलाई खाने  की ,
खाने का कुछ नया तरीका खोजेगी
अब खिसियानी बिल्ली खम्बा नोचेगी

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

गुरुवार, 5 दिसंबर 2013

शब्दों का जमावड़ा

      शब्दों का जमावड़ा

भावों को प्रकट करता ,शब्दों का जमावड़ा
कविता के रूप में है सबके  सामने  खड़ा
कह देता गहरी बात ये थोड़े से शब्द में ,
लगता सुहाना है ये अलंकार से जड़ा
दो पंक्तियों के दोहे में रहीम ने कहा ,
रसखान ने रस से है भरा ,अपने छंद में
मीरा ने भजन,सूर ने पद में इसे कहा , ,
तुलसी ने समेटा इसे ,मानस के ग्रन्थ में
ग़ालिब ने ग़ज़ल,मीर  ने शेरों  में उकेरा ,
बिलकुल सपाट शब्दों में बोला कबीर ने
केशव ने गहरी बात कही अपने ढंग से,
बिहारी ने सतसैया के ,नाविक के तीर में
वेदों में संजोया था इसे वेद  व्यास ने,
 गीता में बात ज्ञान की है श्लोक में कही,
 कोई ने यमक में कहा ,कोई ने श्लेष में ,
हर रूप में पर ज्ञान की गंगा सदा बही
कोई ने विरह गीत में आंसू से भिगोया,
कोई ने इसे रंग दिया होली के रंग में
कोई ने इसे व्यंग के तीरों सा चुभोया ,
कोई ने भरा वीर रस ,मैदाने जंग में 
भावों का झरना जब झरा ,शब्दों में स्वर बहे,
प्रेमी का प्रेम उभरा है गीतों में प्यार के
कुछ हास और परिहास में ,कुछ लोकगीत में,
कुछ सज के सुरों में किसी नगमा निगार के
गीतों का रूप धर के जब भी गाया  गया है ,
लोगों के मन को भाया है,जुबान पर चढ़ा
जिस पर भी ,जब भी ,सरस्वती जी कृपा हुई,
शब्दों की माला गूंथ कर,माता पे दी चढ़ा
  भावों को प्रकट करता ,शब्दों का जमावड़ा
कविता के रूप में है सबके सामने खड़ा

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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