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बुधवार, 30 अक्टूबर 2013

उम्र है मेरी बहत्तर

   उम्र है मेरी बहत्तर

उम्र है मेरी बहत्तर
है बड़े हालत बेहतर
उंगलिया पाँचों है घी में,
और कढ़ाई में मेरा सर
        न तो चिंता काम की है
        ना कमाई ,दाम की है
        मौज है ,बेफ़िक्रियां  है,
           उम्र ये आराम की है 
कोई भी बोझ न सर पर
उम्र है मेरी बहत्तर
         बच्चे अपने घर बसे है 
         अब हैम दो प्राणी बचे है
        मैं हूँ और बुढ़िया है मेरी ,
         मस्तियाँ है और मज़े है
देखते है टी वी दिन भर
उम्र मेरी है बहत्तर
            अच्छी खासी पेंशन है
             नहीं कोई  टेंशन है
             हममें  बस दीवानापन है,     
             करते जो भी कहता मन है
खाते बाहर ,देखें पिक्चर
उम्र मेरी है बहत्तर
              जब तलक चलता है इंजिन
               सीटियां बजती है हर दिन 
               खूब जी भर ,करे मस्ती ,
               गाडी ये रुक जाये किस दिन
क्या पता ,कब और कहाँ पर
उम्र मेरी है बहत्तर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

अपना हर दिन

        अपना हर दिन

सुन्दर ,प्यारा और सुहाना ,तुम्हारा चेहरा मुस्काता
मुख से जब हटता घूंघट पट ,मुझको चाँद नज़र है आता
                                       अपना तो हर दिन पूनम है
मैं गहरी यमुना सा बहता ,तुम गंगा की उज्जवल धारा
रहता गुप्त,प्रकट ना होता ,सरस्वती सा प्यार  हमारा
                                       अपना तो हर दिन संगम है
मैं घनघोर घटा सा छाता ,कभी गरजता हूँ बादल बन
तुमशीतलजल की बूंदों सी,बरसा करती रिमझिम रिमझिम
                                        अपना तो हर दिन सावन है
मैं कान्हा सा ,यमुना तट पर ,करता मधुर बांसुरी वादन
आती खिंची चली दीवानी ,रास रचाने तुम ,राधा  बन
                                         अपना हर दिन वृन्दावन है
मैं सूखी चन्दन की लकड़ी ,तुम पानी की बूंदे पावन
हम तुम आपस में विलीन हो ,प्रभु चरणो चढ़ते चन्दन बन
                                          अपना हर दिन आराधन है
बाँधा हमें सात फेरों ने ,सात जनम का अपना बंधन
मिलन सरिता का सागर से,नीर क्षीर से एक हुए हम
                                            अपना हर दिन मधुर मिलन है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'   

अंगूर


         अंगूर

पत्नी थी चन्दरमुखी
पतिदेव थे बन्दरमुखी
बहुत उछल कूद करते
रोज गुलाटी भरते
पत्नी से रोज नयी ,
डिश की  फरमाइश करते
पत्नी थी बहुत दुखी  
पति बोले चंद्रमुखी
क्या नयी डिश बनायी
पत्नी अंगूर लायी
बोली ये डिश चखो
मुंह में अंगूर रखो
खाकर के बतलाओ ,
कैसी है मेरे हजूर
पति बोले डिश का नाम ,
पत्नी बोली 'लंगूर के मुंह में अंगूर'
घोटू  

मंगलवार, 29 अक्टूबर 2013

मुझे बूढा समझने की ,भूल तुम किंचित न करना

          मुझे बूढा समझने की ,भूल तुम किंचित न करना

 भले ही ज्यादा उमर है 
झुर्रियों के पड़े  सल है
मुझे बूढा समझने की ,भूल तुम किंचित न करना
तवा है ठंडा समझ कर ,हाथ मत इसको लगाना,
उंगलियां ,नाजुक तुम्हारी ,जल न जाए ,लग तवे पर
बची गर्मी आंच में है ,और तवा है गर्म इतना ,
रोटियां और परांठे भी ,सेक सकते आप जी भर ,
खाओगे ,तृप्ती मिलेगी
भूख तुम्हारी  मिटेगी
कभी अपने प्यार से तुम ,मुझे यूं वंचित न करना
मुझे बूढा समझने की ,भूल तुम किंचित न करना
दारू ,जितनी हो पुरानी ,और जितनी 'मेच्युवर' हो,
उतना ज्यादा नशा देती ,हलक से है जब उतरती
पुराने जितने हो चावल,उतने खिलते ,स्वाद होते
जितनी हो 'एंटीक'चीजें,उतनी ज्यादा मंहगी मिलती
पकी केरी आम होती
बड़ी मीठी स्वाद होती
उमर का देकर हवाला ,मिलन से वर्जित न करना
मुझे बूढ़ा समझने की ,भूल तुम किंचित न करना

मदन मोहन बाहेती'घोटू' 

रविवार, 27 अक्टूबर 2013

फूल और पत्थर

         फूल और पत्थर

      तुम कोमल सी कली प्रिये और मै हूँ पत्थर
      तुम महको गुलाब सी और मै संगेमरमर
मै छेनी की चोंटें खाकर ,बनता मूरत ,
                      और तीखी सी सुई छेदती बदन तुम्हारा
श्रद्धा और प्रेम से होती मुझ पर अर्पण ,
                       मेरे उर से आ लगती तुम,बन कर  माला
         दोनों को ही चोंट ,पीर सब सहनी पड़ती ,
         तब ही होता ,मिलन हमारा ,प्यारा ,सुखकर
        तुम कोमल सी कली प्रिये और मै हूँ  पत्थर
मै धरता शिव रूप,कृष्ण या राम कभी मै ,
                          कभी तुम्हारा रूप धरू बन सीता,राधा
तुम आती ,मुझ पर चढ़ जाती ,और समर्पण ,
                            तुम्हारा प्यारा ,मेरा जीवन महकाता
             कितना प्रमुदित होता मन,मेरी प्रियतम तुम,
              मिलती मुझसे ,कमल,चमेली ,चम्पा बन कर
              तुम कोमल सी कली प्रिये और मै हूँ पत्थर
मै चूने के पत्थर जैसा ,पिस पिस करके ,
                              ईंट ईंट जोड़ा करता हूँ,घर बनवाता
और कभी भट्टी में पक कर बनू सफेदी ,
                              घर भर को पोता करता ,सुन्दर चमकाता
                और पान के पत्ते पर लग ,कत्थे के संग
                 तुम्हे चूमता ,लाली ला ,तुम्हारे लब  पर
                तुम कोमल सी कली प्रिये और मै हूँ पत्थर

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

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