एक सन्देश-

यह ब्लॉग समर्पित है साहित्य की अनुपम विधा "पद्य" को |
पद्य रस की रचनाओ का इस ब्लॉग में स्वागत है | साथ ही इस ब्लॉग में दुसरे रचनाकारों के ब्लॉग से भी रचनाएँ उनकी अनुमति से लेकर यहाँ प्रकाशित की जाएँगी |

सदस्यता को इच्छुक मित्र यहाँ संपर्क करें या फिर इस ब्लॉग में प्रकाशित करवाने हेतु मेल करें:-
kavyasansaar@gmail.com
pradip_kumar110@yahoo.com

इस ब्लॉग से जुड़े

शनिवार, 7 सितंबर 2013

मूंछें -साजन की

            मूंछें -साजन की

मर्दाने चेहरे पर  लगती तो है प्यारी
साजन ,मुझको नहीं सुहाती मूंछ तुम्हारी
        जब होता है मिलन,शूल से मुझे चुभोती
         सच तो ये है ,मुझको बड़ी गुदगुदी होती
लब मिलने के पहले रहती खडी अगाडी
साजन ,मुझको नहीं सुहाती मूंछ तुम्हारी
           बाल तुम्हारी मूंछों के कुछ लम्बे ,तीखे
           कभी नाक में घुस जाते  तो आती छींके
होती दूर ,प्यार करने की इच्छा सारी
साजन मुझको नहीं सुहाती मूंछ तुम्हारी

मदन मोहन बाहेती;घोटू'     

प्यार और जिन्दगी

     प्यार और जिन्दगी

नज़र जब तुमसे मिली
प्यार की कलियाँ खिली
मन मचलने  लग गया
हुआ था कुछ  कुछ नया
प्यार में   यूं  गम  हुए
बावरे हम तुम  हुए
       प्रीत के थे बीज बोये
        तुम भी खोये,हम भी खोये
रात कुछ ऐसी कटी
सुहानी पर अटपटी
ख्वाब में तुम आई ना
नींद हमको  आई ना
और तुमसे क्या कहें
बदलते करवट रहे
           मिलन के सपने संजोये
            जगे हम, तुम भी न सोये
ये हमारी जिन्दगी
थोडा गम,थोड़ी खुशी
आई कितनी दिक्कतें
रहे चलते,ना थके
बस यूं ही बढ़ते रहे
गमो से  लड़ते  रहे
           आस की माला  पिरोये
           हम हँसे भी और रोये

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

शुक्रवार, 6 सितंबर 2013

नेताओं से

         नेताओं से

आप में आया अहम् है
इस तरह जो गए तन है
जिस जगह पर ,आप पहुंचे ,
हमारा  रहमो करम  है
भूल हमको ही गए है ,
आप कितने  बेशरम है
आदमी तो आम है हम,
मगर हम में बहुत दम है
कमाए तुमने करोड़ों,
और हमको दिए गम है
दिक्कतों से जूझते सब ,
आँख सबकी हुई नम है
हुई थी गलती हमी से ,
आ रही ,हमको शरम  है
सुनो ,जाओ सुधर अब भी ,
अब तुम्हारा समय कम है
उठा जन सैलाब जब भी ,
मुश्किलों से सका थम है
वादे कर फुसलाओगे फिर,
आपके मन का बहम है
पाठ सिखला तुम्हे देंगे ,
खायी हमने ये कसम है

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

आज की वर्ण व्यवस्था

       आज की वर्ण व्यवस्था

ब्राह्मण ,क्षत्रिय ,वैश्य ,शुद्र ये,चारों वर्ण हुआ करते थे
अलग अलग सारे वर्णों के ,अपने कर्म  हुआ करते  थे
ब्राह्मण ,पूजा ,शिक्षण करते ,क्षत्रिय वीर लड़ाई लड़ते
वैश्य ,वणिक व्यापारी होते,बाकी काम शुद्र थे  करते
आज शुद्र सब शुद्ध हो गए ,बचा न  कोई शुद्र वर्ण है
सभी मिल गए अन्य वर्ण में,अब बस केवल तीन वर्ण है
तन मन और जमीर बेचते ,वैश्य न,वैश्या बने कमाते
अलग क्षेत्र हित लड़ते रहते ,क्षत्रिय ना,क्षेत्रीय  कहाते
धर्म कर्म को छोड़ आजकल ,ब्राह्मण ना ,हो गए भ्रष्ट मन
पर सत्ता के गलियारे में ,अब भी होता इनका पूजन

मदन मोहन बाहेती'घोटू'

जी हाँ भ्रष्टाचार हूँ मै

        जी हाँ  भ्रष्टाचार हूँ मै

भले कानूनी किताबों में  बड़ा अपराध हूँ
हर जगह मौजूद हूँ मै ,हर जगह आबाद हूँ
रोजमर्रा जिन्दगी का ,एक हिस्सा बन गया ,
हो रहा खुल्लम खुला ,स्वच्छंद हूँ,आज़ाद हूँ
कोई भी सरकारी दफ्तर में मुझे तुम पाओगे ,
चपरासी से साहब तक के ,लगा  मुंह का स्वाद हूँ
घूमता मंत्रालयों में ,सर उठाये शान से ,
मंत्री से संतरी तक के लिए आल्हाद  हूँ
फाइलों को मै चलाता ,गति देता काम को ,
गांधीजी के चित्र वाला ,पत्र ,पुष्प,प्रसाद हूँ
अमर बेलों की तरह,हर वृक्ष पर फैला हुआ ,
खुद पनपता ,वृक्ष को ,करता रहा बर्बाद हूँ 
प्रवचनों में ज्ञान देते ,जो चरित्र निर्माण का ,
ध्यान की उनकी कुटी में ,वासना उन्माद हूँ
मिटाने जो मुझे आये वो स्वयं ही मिट गए ,
होलिका जल गयी मै जीवित बचा प्रहलाद हूँ
जी हाँ,भ्रष्टाचार हूँ मै ,खा रहा हूँ देश को ,
व्यवस्था में लगा घुन सा ,कर रहा बरबाद हूँ

मदन मोहन बाहेती 'घोटू'

हलचल अन्य ब्लोगों से 1-